कभी कोई राज न छिप पाया
जब मिल बैठे दो मित्र साथ
कुछ उसने कही कुछ हमने सुनी
किसी के कहने सुनने से |
कोई बात का हल न निकला
बातों का अम्बार जुटा
हम दौनों के अंतर मन में
इस विरोधाभास का अर्थ क्या है |
ना तो हम जान पाए
नही सर पैर मिला किसी बात का
अपनी बातों पर अड़े रहे
अपनी बात ही सही लगी
दूर हुए आपसी बहस बाजी से
जब अन्य लोगों ने भी दखलंदाजी की
उन ने भी बहस में भाग लिया |
बात का बतंगड़ बनता गया
आपस में दूरी होती गई
यह क्या हुआ मन को क्षोभ हुआ
अशांति ने पीछा न छोड़ा
वह मुद्दा भी हल न हो पाया
फिर हमने अपने आप को समझाया |
इन छोटी बातों को कोई महत्व न दे
बातों में उलझने का इरादा छोड़ा
कोई सकारात्मक सोच को
अपनाने का फैसला किया |
वातावरण एक दम से बदला
बहुत खुश हाल हुआ
मन में खुशहाली छाई
स्वस्थ मनोरंजन हुआ |
आशा सक्सेना