02 दिसंबर, 2022

कब क्या कैसे कितने


 

कब तक कहाँ कैसे कितने

इतने  सारे शब्द हैं जिन से

प्रारम्भ किया जा सकता है

 स्रोत  अभिलाशा का  |

जिस से जब भी पूंछा जाता

यह प्रयोग कैसा लगा

वह  थोड़ा सा मुस्कुरा देता

फिर अपना अभिमत देता |

अरे भाई सब से क्या पूंछना

जो भी लिखो दिल से लिखो

कभी पसंद न आने पर

उसे भूल जाओ सदा के लिए |

जब भूलना न चाहो

 बार बार प्रयत्न करो 

कभी तो सफलता मिलेगी  

असफलता से भय कैसा |

यही तो कुंजी है सफलता की

मनोरथ को तरजीह दो

इसी से साहस आएगा

वही  होगा  सही गलत का फैसला  |

जितनी भी कोशिश करोगे

सफलता तक पहुंचोगे

चाहे समय कितना भी लगे

कभी हार न मानोंगे |

यही प्रतिफल होगा तुम्हारे यत्नों का 

जब किसी को अपनी रचना सुनाओगे

वाह वाह की गूँज उठेगी

तुम्हें लगेगा तुमसा कोई नहीं |

01 दिसंबर, 2022

अहम उसका

 


उसने दिखाया जलवा अपना

किसी से कम अपने को न समझा

 यही आदत उसे ले डूबी

अपने अहम् के डबरे  में |

कितनी बार समझाया उसको

किसी से अंटस लेना सही नहीं

हर बार अहम् हारा  झगड़े में

मन को झटका लगा दिल टूटा |

किसी की  दया का पात्र न बन पाया

उसका कार्य असफल रहा अधूरे में

मन को दूसरा झटका लगा जब  

 वह पहुंचा एक  समाज के कार्यक्रम में |

उसने खुद को बहुत कुछ समझा था

तब यही गलतफ़हमी पाली थी उसने

था कुछ भी  नहीं पर खुद को

 सीमा से अधिक  समझा था   |

यहीं  उसने मात खाई

जब  एक जलजला आया

वह उसके  बहाव में बहता गया

 असफल रहा वह  भवसागर छोड़ने  में |

अब मन को झटका लगा अंतिम

सर उठा न  पाया वह

अहम से  जूझता रहा आखिर तक

उससे पार पा नहीं सका |

 

आशा सक्सेना

30 नवंबर, 2022

जब हंसी का पात्र बना


 


पहले फिसलना

फिर  गिरना

और  सम्हल कर

 उठने का प्रयत्न  करना |

कुछ भी नया नहीं

बड़ा सामान्य सा कार्य

 बचपन में होता

 आए दिन का कार्य  |

 जब उम्र बढ़ने लगती

  हास्यप्रद स्थिति में    

 परिवर्तित होती गई  |

बहुत कठिन होता

साधारण से कार्य का

जगजाहिर होना

किसी को  हंसने का अवसर

खोजना न पड़ता |

एक दिन सड़क पर

पानी भरा था

पर पैर फिसला

गहरी चोट लगी |

उठना कठिन हुआ

पास वाले भाईसाहब ने  

अपना हाथ बढाया

सम्हाल कर उठाया |

मदद तो की पर

हंसने का अवसर न छोड़ा

शरीर बहुत गोल मटोल था

उस पर ही हँसी आई |

यही बात उनने सुनाई

रस ले कर  पड़ोसियों को

मन में कुंठा भरी

पर क्या करता | 


आशा सक्सेना 

 

29 नवंबर, 2022

बचपन

 

 कहाँ  से आया वह 

 भोला भाला  प्यारा सा बचपन 

किसी ने न ध्यान  दिया उस पर  

वह धूल में खेला सड़क पर दौड़ा

तब किसी ने  न टोका उसको  |

कभी टोकने पर प्रलय ही मचा दी उसने

हंसने रोने में अंतर न समझा

किसको प्यार करे या न करे

 उसको यह भी पता नहीं |

क्या सच में वह भी  दुनिया की रीत नहीं जानता

केवल अपने तक ही सीमित रहता

या किसी प्रलोभन में फँस जाता

बचपन में कुछ विभेद न कर पाता  |

कौन अपना कौन पराया

मन से मीठे बोल बोलता

मुझे पुष्प ही अच्छा लगता

काश वह  लौट कर आता |

ऐसा बचपन खोजे न मिलता

जो माँ का प्यार ही समझता

पिता से दूरी भी  न सह पाता

उसने  अपने पराए का अंतर न जाना |

  नहीं चाहता अपने प्यार को  किसी से  बांटना

उसे बड़ा दुःख होता जब कोई बाधा बन कर आता

उससे प्रतिस्पर्धा चाहता

 यह है एकाधिकार का मांमला

उसको कोई समझ न पाता |

आशा

 

28 नवंबर, 2022

कब तक निहारते रहोगे

 

तुम कब तक निहारते रहोगे उसे 

जब श्याम ने समझाया तुम्हें

इतनी समझ न आई तुम्हें

क्या लाभ तुम्हें समझाने का |

मीठी मधुर वाणी तुम्हारी

कटु से कटुतर होती गई

उसके कारण मन विद्रोही हुआ

 किसी की कदर न जानी उसने |

यही कमी प्रारम्भ से थी उसमें

तुमने कभी टोका नहीं उसको

उसने सर उठाया अब तो

क्या फायदा ऎसा हटधर्मी होने का |

ना तो  माँ ने कुछ  सिखाया उसे

ना ही कुछ औरों से सीखना चाहा उसने

उसके व्यबहार से लोगों ने बुरा भला कहा उसे  

मन को और संतप्त किया |

इसमें किस का अहित हुआ

पर तुम तो समझदार थे

तब भी  न समझा पाए उसको

कह दिया वह तो मनमानी करती है |

सोचो हो तुम किसके गुलाम 

उसके या अपनी भावनाओं की तल्खी के

कितना भी गलत हुआ तुमने किया या उसने 

उसको समझाने से क्या फायदा हो जो कुबुद्धि |

 हो बुद्धि का अभाव जिसमें वह किस काम का

हो हुस्न के दीवाने या अन्य आकर्षण तुम्हें रिझाता 

खुद सोचना उसको भी समझाना

क्या सही क्या गलत उसी से सलाह लेना |

आशा सक्सेना

27 नवंबर, 2022

आवाज सुनो अंतर आत्मा की

 



                                                         अपने को जानो पहचानो 

किसी की सलाह ना भी  मानो 

पर सुन कर तो देखो समझो 

कोई तुम्हारा दुश्मन  नहीं होगा |

नेक सलाह ही देगा तुमको 

है तुम्हारा अंतरंग मित्र 

कभी भी न बदलेगा पाला 

न ही गलत सलाह देगा  तुमको |

तुम हो भारत के कर्तव्य निष्ट सपूत 

वह  तुम्हारी जन्म जन्मों की साथी 

कभी अपने कर्तव्यों से न भागी

 उसे  यही संस्कारों की थाती मिली है 

जिम्मेदारी समझी अपनी 

पर तुम ही कदम न बढा पाए 

जो सात जन्मों का  

साथ निभाने का वादा किया था 

बहुत पीछे रह गए उससे

 उसका साथ न दे पाए |

फिर देते हो दुहाई वादाखिलाफी की  

यह तो सोचो किसने वादा तोड़ा 

और  सही राह न दिखाई तुमको |

पहले उसका साथ न दे पाए 

अब उसे ही  इल्जाम दे रहे हो 

झूठा सबित कर रहे हो |

हो तुम कच्ची बुद्धि के  इंसान 

कभी अपने जीवन की  किताब के 

पन्ने पलट कर देखना 

सही क्या है गलत क्या है 

 मैंने कुछ बढा चढ़ा कर नहीं कहा है 

जो भी सलाह दी है  

 तुम्हारे हित के लिए ही दी है |

आशा सक्सेना 




26 नवंबर, 2022

किसने क्या कहा


 

किसीने क्या कहा 

किस किस को दे सफाई

यही बात उसके मन को रास न आई 

आधी जिन्दगी बीती कोई उसे समझ न  पाया |

ना उसके  प्यार  को समझा

ना ही तुम्हारे इकरार  को  जाना

कटू भाषण ही पहचाना |

मानसिक तनाव इतना बढ़ा कि

जीना हराम हो गया  उसका

यह कैसी तुम्हारी भाषा

उसके तुमसे  संबंधों की परिभाषा |

जब तक वह  मौन रहेगी

गुत्थि सुलझ न पाएगी

दोनो एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहोगे 

और अपने आप  पर गर्व |

जब तक दोनो आपस में बात न करेंगे

समझेंगे समझाएंगे नहीं

खुश हाल  जीवन जी न पाएंगे दोनो 

सब के मन को ठेस पहुंचाएंगे |

यह बात समझ से बाहर हुई  

बुद्धि कैसे न आई तुम दौनों में

जब प्यार किया था सोचा नहीं था

अब घर को युद्ध का बनाया या  अखाड़ा |

 किसी  की बात न सुनी  ना ही समझी  

कारण रहा अनजान कोई न जान सका उसको

 गुत्थि उलझी ही रह  गई  सुलझ न पाई

सब के प्रयत्न विफल रहे  |

आशा सक्सेना