07 दिसंबर, 2022

घर की रोनक


 


मनु  को कभी ना तुमने समझा

ना ही मेरा अस्तित्व पहचाना

समझा उसे  एक नादान बच्चा

और मुझे उसकी आया |

यदि हम यहाँ  नहीं  होते

 घर कभी घर नहीं  हो पाता

 उसमें  कोई बस्ती  नहीं  होती

जब तुम आते घर वीरान नजर आता |

कोई ना आता पास तुम्हारे 

 घर की बस्ती होती वहां रहने वालों से

 यदि हम ना होते घर कभी घर नहीं होता

 घर का कोई वजूद नहीं होता |

जब तक तुम नहीं आते घर वीरान नजर आता

कोई ना आता पास तुम्हारे |

किसी की वर्जनाएँ बाल मन   सह नहीं  पाता

यदि किसी ने कुछ कहा बड़ा शोर होता 

वह किसी से न सम्हलता दोष मुझ पर आता |

यदि तुमने उसे न समझाया होता वह नाराज होता रूठा रहता

 लम्बे समय तक अकड़ा रहता

दो  चॉकलेट  लेकर ही शांत होता

फिर गले से लिपटा  जाता |

आशा सक्सेना

 


04 दिसंबर, 2022

एक झलक प्यार की

 

यदि प्यार की एक झलक भी

उसने  देखी होती

जीवन में गति आती  

किसी बात में 

कुछ कमी नहीं  रह पाती |

कभी सोचा नहीं  था

 मन में छिपा कर 

कभी रखा नहीं 

 जब यह परिवर्तन आया |

 गुलाब सुगंध कहीं खो गई 

उसमें ज़रा भी गंध नहीं आई 

कहा तो जाता है 

अनेक गुण गुलाब में हैं  

वे कभी भी उपयोग में लाए जा सकते |

पर देखा कुछ और

मन में मलाल आया बड़ा संताप आया 

जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं |

यही क्या कम है कि  वह है यहीं

पर पुष्प  की  सुगंध कहीं खो गई है 

यदि वह होती यहाँ कितना अच्छा होता

जीवन जीने की गति भी अवरुद्ध नहीं होती |

हुआ उसे यह एहसास वह खुश हो गई  

लौटा मन का सुकून

 जो कहीं खो गया था |

बार बार अपनी कमियाँ खोजने लगी 

 पर असंतुलित किया  खुद के मन को 

शांत नहीं रख पाई |

व्यर्थ की बाधाएं आईं सामान्य नहीं हो पाई

खुद को असंतुलित किया दूसरों को भी दुःख पहुंचाया 

चैन से जीने नहीं  दिया |

आशा सक्सेना 

मीरा

 

मन के मंदिर में वह बैठी 

किसी के इंतज़ार में

कभी कुछ भी पढ़ा नहीं

 दो शब्दों  का प्यार बहुत है यही कहा मीरा ने|

  प्यार ही सबकुछ है और कुछ  नहीं

उसे लगाव है ज्ञान  से

वह पढ़ पाती नहीं

पर लगाव है इतना कि

किसी और से बाँट भी नहीं  पाती  |

यही आप सब ने भी देखा होगा

यह है मन से है किसी ने कहा नहीं 

फिर भी कहा अज्ञानी उसे |

जब उसकी आँखों को भरे देखा   

मन को गहन  दुःख  हुआ 

अश्रू बहाने से क्या लाभ

जब किसी ने उसे समझा नहीं | 

फिर भी ममता  कहीं छुपी रही 

उसके दिल के कोने   में  | 

 





आशा सक्सेना 

03 दिसंबर, 2022

नई जगह घूमने जाना



कहाँ जाना है क्या है वहां

जो सुख घर में है वहां कहाँ

कितनी बार सोचा था पर

कारण नहीं जान पाई |

जब भी अवकाश होता

बाहर जाने का मन होता

पर जल्दी ही मन उचट जाता

बार बार अपना घर याद आता |

जब कि ऐसा कुछ नया

 नहीं देखा जाता वहां

बस मन को संतुष्टि मिल पाती

बाहर जाने की कहानियां  सुनाने की |

जब तब  मन में होड़ करता रहता वहां की कहानियों  में

 यही आनंद रह जाता जब लौट कर आते

वहां की कहानियां  अपने ही ढंग से कहते 

बड़ी खुशी  होती  वहां की कहानी सुनाने में |

आशा सक्सेना

02 दिसंबर, 2022

कब क्या कैसे कितने


 

कब तक कहाँ कैसे कितने

इतने  सारे शब्द हैं जिन से

प्रारम्भ किया जा सकता है

 स्रोत  अभिलाशा का  |

जिस से जब भी पूंछा जाता

यह प्रयोग कैसा लगा

वह  थोड़ा सा मुस्कुरा देता

फिर अपना अभिमत देता |

अरे भाई सब से क्या पूंछना

जो भी लिखो दिल से लिखो

कभी पसंद न आने पर

उसे भूल जाओ सदा के लिए |

जब भूलना न चाहो

 बार बार प्रयत्न करो 

कभी तो सफलता मिलेगी  

असफलता से भय कैसा |

यही तो कुंजी है सफलता की

मनोरथ को तरजीह दो

इसी से साहस आएगा

वही  होगा  सही गलत का फैसला  |

जितनी भी कोशिश करोगे

सफलता तक पहुंचोगे

चाहे समय कितना भी लगे

कभी हार न मानोंगे |

यही प्रतिफल होगा तुम्हारे यत्नों का 

जब किसी को अपनी रचना सुनाओगे

वाह वाह की गूँज उठेगी

तुम्हें लगेगा तुमसा कोई नहीं |

01 दिसंबर, 2022

अहम उसका

 


उसने दिखाया जलवा अपना

किसी से कम अपने को न समझा

 यही आदत उसे ले डूबी

अपने अहम् के डबरे  में |

कितनी बार समझाया उसको

किसी से अंटस लेना सही नहीं

हर बार अहम् हारा  झगड़े में

मन को झटका लगा दिल टूटा |

किसी की  दया का पात्र न बन पाया

उसका कार्य असफल रहा अधूरे में

मन को दूसरा झटका लगा जब  

 वह पहुंचा एक  समाज के कार्यक्रम में |

उसने खुद को बहुत कुछ समझा था

तब यही गलतफ़हमी पाली थी उसने

था कुछ भी  नहीं पर खुद को

 सीमा से अधिक  समझा था   |

यहीं  उसने मात खाई

जब  एक जलजला आया

वह उसके  बहाव में बहता गया

 असफल रहा वह  भवसागर छोड़ने  में |

अब मन को झटका लगा अंतिम

सर उठा न  पाया वह

अहम से  जूझता रहा आखिर तक

उससे पार पा नहीं सका |

 

आशा सक्सेना

30 नवंबर, 2022

जब हंसी का पात्र बना


 


पहले फिसलना

फिर  गिरना

और  सम्हल कर

 उठने का प्रयत्न  करना |

कुछ भी नया नहीं

बड़ा सामान्य सा कार्य

 बचपन में होता

 आए दिन का कार्य  |

 जब उम्र बढ़ने लगती

  हास्यप्रद स्थिति में    

 परिवर्तित होती गई  |

बहुत कठिन होता

साधारण से कार्य का

जगजाहिर होना

किसी को  हंसने का अवसर

खोजना न पड़ता |

एक दिन सड़क पर

पानी भरा था

पर पैर फिसला

गहरी चोट लगी |

उठना कठिन हुआ

पास वाले भाईसाहब ने  

अपना हाथ बढाया

सम्हाल कर उठाया |

मदद तो की पर

हंसने का अवसर न छोड़ा

शरीर बहुत गोल मटोल था

उस पर ही हँसी आई |

यही बात उनने सुनाई

रस ले कर  पड़ोसियों को

मन में कुंठा भरी

पर क्या करता | 


आशा सक्सेना