29 नवंबर, 2023

भूलभुलैया

 



 जीवन की राह हुई भूल भुलिया जैसी

जब भी कदम बढाए उसमें फँस कर रह गई

जब भी आगे बढ़ना चाहां  राह नजर ना आई

कदम बढाए दीवार से टकराई आगे बढ ना पाई |

बचपन में कोई कठिनाई ना थी जीवन चलता रहा सरलता से पर

मुझे आगे के जीवन का अंदाजा न था

 जब उम्र बढी जीवन में  झमेले ने  रोका

जितनी कोशिश की उतनी ही उलझती गई

भूल भुलैया से निकलने में किसी ने मार्ग दर्शन ना दिया |

दो कदम भी ना बढे मेरे मैं जहां थी वहीं रही

जहां से अन्दर प्रवेश किया था वहीं  खुद को खडा पाया

 कुछ समय  बाद अपने को वहीं पाया आगे कोई राह ना मिली

जितना आगे बढ़ती वहां का  मार्ग बंद हो जाता   |

कोई सीधा मार्ग नजर ना आया

 ऐसी भूल भुलैया में फँस कर रह गई

कोई सीधा मार्ग न मिला

जीवन में आगे बढ़ने  की राह अवरुद्ध हुई  |

आशा सक्सेना 


28 नवंबर, 2023

मकान आत्मा का


यह काया  है मकान आत्मा की

है  सुन्दर अंतह  पुर इसका

वाह्य आवरण प्यारा सा  इसका

लोगों को ईर्ष्या  होती इसका रूप देख  |

जब झाँक कर देखा इसके अन्दर

और अधिक आकर्षक लगा वहां

यही आकर्षण आया ऐसा

 घर छोड़ने का मन न हुआ |

एक समय ऐसा आया तन थका मन हारा  

 पुराना  घर छोड़ने का मन बनाया

ईश्वर से की प्रार्थना देह छोडी

निकला नए घर की तलाश में |

जैसे ही नया धर मन के लायक मिला

फिर नया घर  देखा पसंद लिया

पहुंचने की तैयारी की अब यादें ही बाक़ी रहीं

आत्मा कभी परमात्मा से मिली नया घर पसंद नहीं आया |

आशा सक्सेना

27 नवंबर, 2023

अंतर दौनों में

 


कभी मुझे भी उस दृष्टि से देखा होता

मुझ में और भैया में अंतर ना किया होता

मैं भी तुम्हारी अपनी होती दो कुल की प्यारी होती

मैं भी अपने  कर्तव्य निभाती |

पूरे मन से  सब के समक्ष आती  

ससुराल में वही सन्मान पाती

 दूसरों को दिल से अपनाती

तुम्हारा  सर उन्नत होता

जब  दो कुलों में प्यार बांटती |

यूँ तो कहते हो बेटी और बेटे  में

 कोई भेद नहीं किया कभी तुमने

पर अब स्पष्ट दिखाई देता है

कितना अंतर है  मुझ में और भैया में |

जब भी कोई बात होती मुझे पराई कहकर

 कर मन को ठेस पहुंचाई जाती

कभी पराया धन कहा जाता

कहीं मैं इस  घर को भी अपना ना समझ लूं |

आई हूँ महमानों की तरह वही हो कर रहूँ

अपनी सीमाएं नहीं भूलूँ

 यही बचपन से  सिखाया गया मुझको

मैंने भी अंतर को समझा मन में सहेजा है  |

आशा सक्सेना 


26 नवंबर, 2023

सागर का नजारा

 

सागर तट पर विचरण करता

यहाँ वहां घूमता फिरता

कभी जल में पैर  डालता

लहरों से टकराता आनंद लेता |

मन में भय न होता जब भी

ठन्डे पानी को  छूकर

मन में उत्साह जाग्रत होता

लहरों के साथ बहना चाहता |

 लोगों को जल क्रीडा करते देखता

उसका मन भी होता जल में जाने का

जब प्यास लगती पानी अंजुली में ले  कर

पीने के लिए मुंह खोलता |

 स्वाद में इतना खारा  होगा जल

कल्पना से दूर होता

प्यासा ही रह जाता एक भी घूँट जल

 कंठ के नीचे न उतर पाता |

वह  सोचता इतने बड़े जल स्त्रोत का क्या लाभ

जब प्यास ही ना बुझ पाए प्यासा ही  रहना पड़े  

 फिर उसकी अच्छाई का आकलन करता

कई संपदा छिपी हुई हैं उस जल  में |

वह धरती के लिए

 जल संचित करता बादल के रूप में

जब बादल बरसता झमाझम

धरती होती तर बतर जल में भीग कर |

आशा सक्सेना 

25 नवंबर, 2023

उड़ते बादल


नीलाम्बर में उड़ते बादल

पक्षियों को साथ ले कर

कहीं ठहरने का स्थान नहीं वहां  

फिर भी उत्साह कम नहीं है |

आगे बढ़ने की चाह मैं

हुए व्यस्त मार्ग खोजने में

बादलों का अनुसरण करते में

 हुए सफल गंतव्य तक पहुँचने में |

खुशियों की सीमा नहीं रही

वहां पहुँच कर पेड़ पर डेरा डालने में

इस लिए ही तो रेस लगाई बादलों संग

खुशियाँ बाहों में आईं उनके

मधुर धुन गुनगुनाई तन्मय हो कर |

समा रंगीन हुआ वहां का

कुछ अनुभवों को जान लिया

दूसरों को भी सलाह दी अपनी

बड़ा आनद आया नए स्थान पर ठहर कर |

आशा सक्सेना 

24 नवंबर, 2023

हलके हलके ठुमके लगाओ

 

हलके हलके ठुमके लगाओ

लहराओ झूम जाओ

जीवन में खुशियाँ भर दो

फिर से मुस्कुराओ |

अखवार में जब तस्वीर छपेगी

लोगों में प्रशस्ति बढ़ेगी

तुमको जाना जाएगा

कवि  लेखक के रूप में |

हमें बहुत खुशी होगी

जब लोग तुम्हें जानेगे

तुम्हारा लेखन पहचानेगे

हमें गर्व होगा तुम्हारे पुरस्कार पाने पर |

आशा सक्सेना 

सखी आई है


मेरी सखी आई है

अनुभवों की दुकान साथ  लाई है

यह तक नहीं सोचा उसने |

उसके अनुभव और हम

में कोई तालमेल है या नहीं

मन में इच्छा हो या नहीं

पर उसको तो सुनना ही है |

जो कुछ सुना  उस का

 पालन भी करना है

यदि ऐसा नहीं किया

वह  नाराज हो जाएगी |

फिर उसे मनाना होगा मुश्किल

बहुत नखरों के बाद

वह मन पाएगी

फिर से खुशी आ पाएगी |

आशा सक्सेना