जब द्रढ़ता मन में न हो
खुद पर भरोसा हो केसे
जिस पर भी भरोसा किया
वही उस योग्य न निकला |
कितनी बार धोखा खाया
मन ने भी रोकना चाहा
कौन सत्य पर चलता
किस पर झूट का साया |
यही यदि समझ लिया होता
कभी मात न खाती
इस रंग बिरंगी दुनिया को
सरलता से पार कर पाती |
यही मेरी कमजोरी
है
अति विश्वास सब पर जल्दी से
चाहे हो अनजान और मिठबोला
सही गलत की पहचान न मुझको |
जितनी बार विश्वास किया
हर बार भरोसा टूट गया
अब मुझे किसी पर विश्वास नहीं
हरबार यही लगता है
कहीं यहाँ भी फरेव की दुकान न हो |
हो जाती हूँ असहज
किसी अजनवी पर भरोसा कर
अब जानना भी नहीं चाहती
उस अजनवी के बारे में
चाहे कितना भी विश्वास दिलाए |
आशा