13 अगस्त, 2022
तिरंगा
11 अगस्त, 2022
बरसात का आलम
उमढ घुमड़ जब बादल आए
वायु जब मंद मंद चले महकाए
मेरे बदन में सिहरन सी दौड़े
एक अनोखा सा एहसास हो
जो छू जाये तन मन को |
कभी लगाने लगता है
आगन में दौडूँ या खेलूँ घूम मचाऊँ
पूरी ताकत से गीत गाऊँ गुनगुनाऊँ
बचपन के आने का एहसास करा के
माँ के आँचल का एहसास कराऊँ
मा का एहसास करा कर निमंत्रण दूं
तुम्हेंअपने पास आने का
इस माँ ने ही झूले में झुलाया था
गोदी में प्यार से सुलाया था
जब भी जिद्द पर आई
बहुत धेर्य से माँ ने समझाया था | \
जब से मैं बड़ी हो गई हूँ
चाहे जब डाट कहानी पढती है
फिर भी जग की रीत निभानी पड़ती है
अब मन मानी नहीं चल पात
पर माँ की बहुत याद आती है |
इसबार मुझे माँ छोड़ गई है
भाई ने भी मुख मोड़ लिया है
है अव घे घर खाली खाली वीरान सा
कान्हां के सिवाय किसे राखी बांधू |
आशा
09 अगस्त, 2022
बंधन राखी का
बंधन राखी का
जाने
कितने भावों को समेटा है
मैंने
अपने आगोश में
फिर
भी मन नहीं भरता किसी
तरह
बार
बार एक
ही धुन लगी
रहती है |
एक
ही रतन लगी रहती है
तुम
कब आओगे कहाँ आओगे
एक
ही चिंता रहती है
कहीं
मुझे भूल तो न जाओगे |
पर
मुझे विश्वास है तुमपर
कभी
भुला तो न पाओगे मुझको
क्यों
कि मैंने कच्चा धागा बांधा है
तुम्हारी
कलाई पर |
जिसमें
कोई आडम्बर नहीं है
दिखावा
नहीं है
बस
केवल सात्विक प्रेम है
प्यारे
भाई का स्नेह है अटूट |
08 अगस्त, 2022
हम जैसा कोई नहीं
तब एक भी समस्या न हुई
|कभी जिन्दगी बेरंग न हुई
जब खुद को सक्षम पाया मैंने
यदि होती दृढ़ता मुझ में तुम में
कोई गला नहीं पकड़ता बिना बात
सारी शिकायतें दूर होती चुटकी में |
जान गई हूँ डरने से कोई लाभ न होता
हिम्मत से तार जुड़ते जाते है
कोई उंगली उठा नहीं सकता
किसी गलत या सही शिकायत पर
बस झटका जरूर लगता है दिल पर |
क्या हमारी इतनी औकात न थी
हमने क्या किया था बता पाते
पर हमारे हाथ में कुछ न था
अब बेकस मजबूर हो कर रह गए थे |
आशा
06 अगस्त, 2022
संगम कविता का कविता से
कविता से कविता का संगम
जब भी होता एक अनोखा रंग
सभी के जीवन में होता
यही सोचना पड़ता
यह कैसे हुआ कब हुआ |
जो भी हुआ जाने क्यों हुआ
पर रंग महफिल में जमा ऐसा
बेचैन मन को सुकून मिला
जिसकी तलाश थी मुझे बरसों
से |
जब भी बेकरार होती हूँ
मेरा मन बुझा बुझा सा रहता
है
नयनों का तालाब भर जाता है
छलक जाता तनिक अधिक वर्षा
से |
एक यह ही समस्या है ऐसी
जो मुझे उलझाए रहती अपने आप में
कुछ सुधार नहीं होता अधीर मन ममें
अच्छी बुरी सब बातों का जमाव
उद्वेलित करता मेरे मन को
होती जाती दूर् कविता के संगम से
जिसकी मुझे आवश्यकता थी |
आशा
आशा
04 अगस्त, 2022
यही है प्यार की रीत
03 अगस्त, 2022
तेरी तस्वीर
तेरी तस्वीर मेरा मन में
कुछ ऎसी समाई कि
उससे छुटकारा न पाने की
मैंने कसम सी खाई |
जब भी मैं कहीं जाती
तेरी यादों मैं खोई रहती
इस तरह कि मैं भूल ही जाती
क्या करने आई थी क्या कर डाला |
यही बेखुदी मुझे खुद की समस्याओं में
उलझाए रखती उबरने न देती
अपने आप में समेटे रखती
मुझे असामाजिक बनाती जाती |
मैं कहीं की न रहती
उलझनों में फंसी रहती
सब की दृष्टि में गिर जाती
किसी से नजरें न मिला पाती |
आशा