है कैसी रीत
नश्वर जगत की
चाहो जिसको
दूर हो कर रहे
अधिक पास आता
आने लगता
कोई युक्ति
नहीं है
दूर रहने की
उससे बचने
की
जिसे चाहते
रहे मेरे पास ही
करीब मेरे
उसी से दूर होते
दिल टूटता
मन चोटिल होता
कब किसकी
मृत्यु हो जाएगी
इस नश्वर
पञ्च तत्व
निर्मित
तन से मुक्त
आत्मा कहाँ जाएगी
न जान पाया
तीर में तुक्का लगा
जानकार कहला
खुद को जान
आसानी से कहता
बुलावा आया
उम्र पूरी होते ही
जाना ही है
कोई तो सीमा होगी
अधूरा ज्ञान
सोच की परीक्षा में
असफल था |
इस में नया क्या है?
मन पर कितना
हुआ असर
यह भी नहीं सोचा |
आशा