कागज़ के गुलों को
महकाना पड़ता है
यदि सम्बन्ध सतही हों
मन हो न हो
मुंह पर मुखोटा
लगाना पड़ता है
जब चहरे अपरिचित
हों अजीब हों |
जितना करीब जाओ
अंतस को छानो
मन को जितना
समझाने कि कोशिश करो
हर बार कि तरह
गलत सवाली ही मिलते है
दिल के घाव भरते नहीं
और गहरे हो जाते है |
धीरे धीरे अनुत्तरित
प्रश्नों का भार बढ़ता जाता
वे असहाय की तरह
अपनी असफलता को गले लगा
मन ही मन टूट जाते हैं
बिखर जाते हैंकागज़ के फूल से
न तो सुगंध रह जाती है
ना ही आकर्षण केवल रंग
आशा|