20 फ़रवरी, 2021

खोज में हूँ एकांत की

 

                                      खोज में हूँ एकांत की 

 पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ 

जंगल की  राह जब भी  पकड़ी

प्रकृति  ने खोले  दरवाजे सभी चराचरों  के लिए |

इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया

 वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर

कुछ समय आनंद आया

 झरने के कलकल की आवाज सुन | 

 फिर मन उचटा राह पकड़ी नदी की ओर

जा बैठा उस ऊंचे टीले पर

 बहती दरिया के किनारे 

सोचा  यहाँ अपार शान्ति होगी |

केवल मंद आवाज लहरों  की होगी 

 लिखना चाहा कापी खोली

 पर अजब सी बेचैनी हुई 

अनचाही  बातों ने दिमाग का पीछा न छोड़ा था अब तक  

बहुत हताशा हुई जब पुनह विचार किया |

एक वही कारण समझ में आया

मन की शान्ति है आवश्यक लिखने पढ़ने के लिए

 घर हो या बाहर वह कहीं भी मिल सकती है

यदि हो नियंत्रण  मन पर |

आशा

19 फ़रवरी, 2021

कौनसा मार्ग चुनूं


 

धर्म कर्म की अति करदी

पर  हर बार कमी रह  जाती

द्वार तुम्हारे जब भी आती

वे  खुल न पाते मेरे लिए |

है यह कैसा न्याय प्रभू

सभी ने एक से यत्न किये

किसी के लिए पट खुले

हम अधर में ही रहे |

दिल से दान किया था

धर्म में भी पीछे न रहे

सच्चे मन से अरदास की

कमी कहाँ  रही  न जान सकी |

कुछ तो इशारा किया होता

अधर में लटकी  मेरी नैया

ढूंढे न मिला खिवैया

 कैसे विश्वास करू किसी पर

जब तुमने ही राह न दिखाई

 मुझ पर करुणा ना दर्शाई |

किसी ने कहा बिन गुरु मोक्ष न होय

 सोचा किसी गुरू कोही  अपना लूं

तभी मेरी  नैया पार लग पाएगी

भव सागर से मुक्ति मिले पाएगी

पर ऐसा  गुरू कहाँ खोजूं

जो सच्चे मन से शिक्षा दें

भवसागर के  प्रपंचों से दूर कर

मोक्ष का  मार्ग प्रशस्त करें |

आशा

18 फ़रवरी, 2021

सीमा सुरक्षा है प्राथमिकता

 


सागर पार  से  आया हूँ  

तुम्हारा प्यार पाने की चाहत में  

यही एक अरमान रह गया शेष

 तुम्हें अपनाने का वादा किया था  

वह भूला नहीं हूँ उसे ही निभाने आया हूँ |

 समय न मिल पाया था अब तक

 सीमा की चौकसी थी प्राथमिकता पर  

 कैसे तुम्हें यह  समझाऊँ ?

मुझे अवकाश न मिल पाया था

 देश की सीमा पर तैनाती थी   

उसकी निगह्बानी पहले  जरूरी थी|

अब जा  कर  अवकाश मिला है

अब मुझे अन्य चिंता नहीं है

 मैंने  वादा जो तुमसे किया था

 उसे ही पूरा करने आया हूँ |

आशा

17 फ़रवरी, 2021

अलबिदा सर्दी का मौसम

                                      अलबिदा मौसम सर्दी  का  अलबिदा

 इस  बार  बहुत कष्ट दिया तुमने

बिना गर्म कपड़ों के फुटपाथ  पर

रात कैसे गुजरती होगी  वहां रहने वालों से पूंछो |

एक दिन मुझसे ही भूल हुई

पूंछा तुम कैसे  ऐसी  सर्द  रात में  गुजारा  करती हो

उसके दोनो नयन भर आए

बस एक दिन यहाँ खड़े हो कर देखिये |

जान जाएंगी है कैसी हमारी जिन्दगी

दिन भर महनत करते हैं

फिर अपने घर को लौटते हैं

यह फुटपाथ ही है घरोंदा हमारा |

यदि पैसे हुए रूखा सूखा खा कर

यहीं चूल्हा जला कर खाना बनाते है

यदि नहीं मिला कुछ तब पानी पी सो जाते हैं

बच्चों की तरसती निगाहें देखी नहीं जातीं |

फटे टूटे कपडे देते हैं सहारा उन्हें

सर्दी से बचाव के लिए

भोर होते ही किसी पेड़ पर

 रात की रही शेष  रोटी खा कर

अपना सामान  समेट  कर टांग देते हैं |

बच्चों का क्या वे सड़क पर खेलते

खाते  ही  पल जाते हैं

कभी शाला का मुंह देखते ही नहीं

यदि दस्तखत करने हों अंगूठा लगाते हैं |

पर मेरे बेटे को यह अच्छ नहीं लगा

मम्मा इसे भी किताबें  दिला दो

मैं इसे पढ़ाऊंगा लिखना इसे सिखाऊँगा

यह भी शाला जाएगा मेरे साथ खेलेगा |

यह तो है एक कहानी

 न जाने ऐसे कितने लोग होंगें

उनकी व्यथा देख मन उदास हो गया

जीवन सरल नहीं होता यह आभास हो गया |

आशा



16 फ़रवरी, 2021

आया वसंत आई बहार

 

आया वसंत आई बहार

वृक्षों ने  किया नवश्रृंगार हरे भरे पत्तों से 

वे खेले वासंती पवन के झोंकों से 

 हुई धरा सराबोर  रंग वासंती में

खेतों में पीले सफेद पुष्प खिले

हरियाली छाई धरणी पर 

वृक्षों ने ली है अंगडाई उन पर छाई तरुणाई|

बसंती  रंग के परिधानों  से सजे बालक वृन्द 

गृहणी ने भी पहने  पीत  वसन

की मां सरस्वती के पूजन की तैयारी |

कहीं बच्चों का पट्टी पूजन हुआ

किये वादे विध्या की देवी  के समक्ष  

पढ़ने में कमी न करने के लिए  |

कई युगल  बंधे विवाह बंधन में

कच्चे धागे से बंधे सदा के लिए

जन्म जन्म का  साथ निभाने को  

 वचन बद्ध हुए  साथ जीने मरने के लिए |

यह दिन है ही ऐसा  प्रसन्नता से भरा

शंकर से रति ने पति काम देव के  लिए

पूजन अर्चन कर प्रार्थना  की थी

तभी से नाम कामदेव का हुआ अनंग |

क्षणिका

 


                                                            है शक्ति तुम्हारी राधा  रानी 
                                                            भक्ति रूप में मीरा पहचानी 

   शेष  हुए    अनुयाई तुम्हारे

 क्या कोई रिक्त स्थान नहीं 

  बचा है हमारे लिए |

२-प्रतिभा की कोई कद्र नहीं 

अकुशल सर पर नाच रहे 

है यह कैसा न्याय प्रभू 

तुम हमें क्यूँ नकार रहे |

३-तुम्हारे दर पर खड़ा याचक

चाहता वरद हस्त तुम्हारा 

,कोई कितनी भी आलोचना करे 

पर तुम न बदल जाना |

४-बासंती पवन चली चहुओर  

खेतों  में और खलियानों में

वासंती पुष्पों ने घेरा सारे परिसर  को 

मन हुआ अनंग किया विचरण बागों में |

आशा  

 

15 फ़रवरी, 2021

पेम प्रीत स्नेह प्रणय भक्ति

 


प्रेम,प्रीत प्यार भक्ति स्नेह  केअर्थों में

  थोड़ा ही अंतर होता है वह भी जिस ढंग से

प्रयोग किये जाएं कैसे सही प्रयोग हो

किस के लिए उपयोग में आएं |

मन में उठती  आकर्षण की  भावनाएं

मोहताज नहीं होतीं किसी संबोधन की 

हर शब्द है अनमोल

 


उन्हें व्यक्त करने के लिए |

प्रीत  प्रेम होते  निहित भक्ति में

अवमूल्यंन उसका नहीं किया जाता

स्नेह है शब्द बहुत सीधा सरल

बडे छोटे सभी के लिए उपयोग में आता |

इसमें आसक्ति की भावना नहीं होती

प्रियतम प्रिया आसक्ति दर्शाते अपनों में

सामान उम्र के लोगों   को प्रिय होते

पर हर रिश्ते के लिए नहीं |
एक ही शब्द भावात्मकता दर्शाता

 जिसकी है जैसी नजर वही उसे वैसा नजर आता  

प्रणय प्रीत की भावना होती केवल अपनों के लिए

गैरों के लिए किये उपयोग गलत मनोंव्रत्ति दरशाते |

आशा

14 फ़रवरी, 2021

प्रणय दिवस

दिल से दिल मिले

मन बगिया में फूल खिले

पर एक कमी रही आज  

लाल गुलाब नहीं मिले |

 सोचा लाल गुलाब ही विशेष क्यूँ ?

 प्रणय दिवस के इजहार के लिए

 एक ही सप्ताह किस लिए ?

क्या  जिन्दगी पर्याप्त नहीं है

प्यार के इजहार के लिए |

प्यार के लिए योवन ही क्यों ?

बचपन बुढापे में इससे दूरी क्यूँ ?

गुलाब का लाल रंग ही

केवल प्रेम नहीं दर्शाता

हैं सभी रंग के पुष्प

 परिचायक प्रेम प्रीत के |

आशा

13 फ़रवरी, 2021

तुम्हारा वंदन

 


 हे हरी तेरा वंदन

 मन को बड़ा सुकून देता

ज़रा समय भी बदलता

बेचैन किये रहता है |

है कितना आवश्यक

सुमिरन तुम्हारा

 समय पर ध्यान तुम्हारा   

आदतों में सुधार होता है |

 फिर पूजा करो या अर्चना

 प्रातः उठते ही  

याद आ जाता है

आज क्या करना है |

एक तो नियमित जिन्दगी होती

सभी कार्य समय पर  होते   

किसी का  कोई तंज

 सहना नहीं पड़ता |

अब जिन्दगी बेजान

 नजर नहीं आती

जिन्दगी में रवानी आती|

 है यही उपलब्धी बड़ी

जो  जाने अनजाने में

आदत में शुमार हो जाती 

 अपना पंचम फहराती |

 बहुत सी समस्याएँ

हल  हो जाती हैं  

कष्ट कम होते जाते हैं

तुम्हारे पास होने से |

वरदहस्त तुम्हारा जब  रह्ता सिर पर

 मै  वही नहीं रह्ती

तुममें इतनी खो जाती हूँ

दुनियादारी से दूर चली  जाती हूँ |

अपनी इच्छाओं अभिलाषाओं को  

जानने  लगती हूँ

है क्या स्वनियंत्रण

पहचानने लगती  हूँ |

आशा 

11 फ़रवरी, 2021

फूलों के रक्षक


 जब मिलना चाहो फूलों से

काँटों पर से गुजरना होगा 

काँटे है संरक्षक उनके

पहले उनसे निवटना होगा |

शूल की चुभन सहना सरल नहीं है

वह ह्रदय की व्यथा बढा देते हैं

पर उनपर से गुजरने की

 असलियत समझा देते हैं |

उनके सानिध्य में आने से क्यूँ डरते हो

फूलों तक पहुँचने के लिए

उनसे मित्रता तो करनी ही  होगी

नहीं तो यह प्रेम कहानी

अधूरी ही रह जाएगी |

आशा