28 अप्रैल, 2018

बाहों में









आ मेरी बाहों में आ जा
सब कि नज़रों से तुझे दूर रखूँ 
नजर का काला टीका लगाऊँ
जब भी कोई कष्ट आए
कष्ट से दूरी इतनी हो कि
वह तेरी छाया तक को न छू पाए
जिंदगी के हर पड़ाव पर
तेरी देखरेख मैं ही करूं
उसमें कोई कमी न रहे
 यदि ऐसा हो तब मुझे
मेरा  ईश्वर भी क्षमा नहीं करे 
जो सुकून तेरे आने से मिला है
उसकी कोई बराबरी नहीं है 
जितनी शांति मन को मिली है 
उसकी कोई मिसाल नहीं है 
तेरा  बालपन है बेमिसाल 
तुझे आँचल में छिपालूँ
तभी मुझे  करार आए 
तू रहे जहां कहीं भी 
मेरी छाया सदा साथ रहे |
आशा


25 अप्रैल, 2018

अस्तित्व







 प्रसन्न थी अपना
 घर  संसार बना कर
व्यस्तता ऎसी बढ़ी कि
खुद के वजूद को ही भूली
वह यहाँ आ कर ऐसी उलझी
 समय ही न मिला
 खुद पर सोचने का
जब भी सोचना प्रारम्भ किया
मन में हुक सी उठी
वह क्या थी ?क्या हो गई ?
क्या बनाना चाहती थी ?
क्या से क्या होकर रह  गई ?
 अब तो वह है निरीह प्राणी
सब के इशारों पर
 भौरे सी नाचती है
रह गई है उनके हाथ की
कठपुतली हो कर
ना सोच पाई
 इस से   अधिक कुछ
कहाँ खो  गई
 आत्मा कि आवाज उसकी
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी बातें
 जब आती हैं
 मन  को ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व
अतीत में  गुम हो गया है
उसे  खोजती है या
 अस्तित्व उसे खोजता है
कौन किसे खोजता है
है बड़ी पहेली
 जिसमें उलझ कर रह गई है |
आशा





24 अप्रैल, 2018

होती यदि किताब


होती यदि किताब तुम्हारी
दिन रात हाथों में रहती
एक एक शब्द से मन मोहती
कभी बिछुड़ कर दूर न जाती
कभी मन से कभी बेमन से
तुम पढ़ते या खोल कर बैठते
 तुमसे किताब सुख नहीं छीनती
जब तुम किसी को देने की सोचते
मैं पुस्तकों में गुम हो जाती
केवल तुम्हारे हाथों में ही सजती |

23 अप्रैल, 2018

सोच के चोराहे पर














सोच के चोराहे पर खड़ा है
 विचारों में डूबा हुआ सा
 खल रहा अकेलापन  उसे
दुविधा में है कहाँ खोजे उसे
जो कदम से कदम
 मिला कर चले
केवल सात कदम चल कर
साथ निभाने का वादा
लगता बड़ा सरल
होता उतना ही जटिल
  नहीं सब के बस का
उस राह पर चलना
हमराही  की खोज है
 उतनी ही कठिन
जज्बातों में बह कर
 झूठे वादे करना
कदम से कदम मिला के
जो चलने में  हो समर्थ
है सोचने को विवश
  किस राह पर जाय ?
आज के संदर्भ में
सभी चाहते ऐसा साथी
जो कदम से कदम
 मिला कर चले
 दोनों का जीवन
निर्वाध गति से चले |

आशा



22 अप्रैल, 2018

कागज़ के फूल


कागज़ के गुलों को
 महकाना पड़ता है
यदि सम्बन्ध सतही हों
 मन हो न हो
मुंह पर मुखोटा
 लगाना पड़ता है
जब चहरे अपरिचित
 हों  अजीब  हों |
जितना करीब जाओ
 अंतस  को छानो 
मन को जितना
  समझाने कि कोशिश करो
हर बार कि तरह
 गलत सवाली ही मिलते है 
दिल के घाव भरते  नहीं 
 और गहरे हो जाते है | 
धीरे धीरे अनुत्तरित 
 प्रश्नों का भार बढ़ता जाता 
वे असहाय की तरह 
अपनी असफलता को गले लगा
 मन ही मन टूट जाते हैं 
बिखर जाते हैंकागज़ के फूल से
न तो सुगंध रह जाती है
 ना ही आकर्षण केवल रंग
आशा|

 

13 अप्रैल, 2018

बदला मिजाज मौसम का




मौसम का बदला मिजाज
अचानक बादल आ गए
थोड़ी सी ठंडक देने को
पर गलत हुआ सोच
गर्मीं की तल्खी और बढ़ गई
धरती की नमीं खोने लगी 
बड़ी बड़ी दरारें पडीं वहां
दोपहर में यदि बाहर निकले
पैरों में छाले पड़ गए
यही हाल रात में होता
नींद नहीं आती आधी रात तक
अब तो बदलाव मौसम का
बदलता है रूप पल पल में
हर बार  विचार करना पड़ता है
क्या करें क्या न करें
देखो ना पानी बरसा नाम  को
फसल हुई प्रभावित क्या करें ?
सोचना पड़ता है |
 अनुसार उसी के  चलना पड़ता
जो हो ईश्वर की मरजी |
आशा

11 अप्रैल, 2018

डर




 मन का भय के लिए इमेज परिणाम
बचपन से ही डर लगता है
आदी नहीं  किसी वर्जना की
ऊंची आवाज से भयभीत हो
 अपने अन्दर सिमट जाती है
उस पर   है प्रभाव है इस कदर
अँधेरे में  सिहर जाती है
रात  में  नहीं जाती बाहर
 डर जाती है अपनी ही छाया से
जानती है वहां कोई नहीं है
अकेली है वह
अकेलेपन  से जूझती रहती  
पर ज़रा सी आहट से
काँप जाती सर से पाँव तक
दूर कैसे करे मन के डर को
सब समझा कर हार गए हैं
 है स्वयं ही डर की सृजनकर्ता
 भय मन से जब दूर होगा
ओढ़ा डर का आवरण
 झाड़ झटक बाहर करेगी
 वह   दृढ निश्चय  करेगी
सभी से सामना करने की
 क्षमता है उसमें तब ही
किसी से नहीं डरेगी |
आशा  

हाईकू


१-मन प्रसन्न 
रखना आवश्यक 
आज कि सोच 

२-सच कहा है 
मिठास जब होती 
कटुता आती 

३-खोखले रिश्ते 
निभाना है दूभर 
इन से बचो 

४-तुम्हारा स्नेह  
है अटूट बंधन 
जीवन भर 

५-सुगंध नहीं 
सूखे पुष्प सारे ही 
उजड़ा बाग 

६-आशा निराशा 
मन के दो पहलू 
बेचैनी बढ़ी


7-मन मयूर
नाचता छम छम
हो के प्रसन्न

८-दूरीबहुत
मन सह न सके
उलझन है

९-तुम क्या जानो
बेटी है अनमोल
भाग्य से मिली



आशा

09 अप्रैल, 2018

सुख दुःख




सुख दुःख आ गले मिले
बड़े प्रेम से आज
पर दौनों में बहस छिड गई
है वर्चस्व किसका 
सुख ने तर्क रखा बड़ी गंभीरता से
यूं तो मैं कम समय रुकता हूँ पर
जब तक रुकता हूँ 
जीवन में रहता है 
वर्चस्व  बहार का 
दुःख ने कुछ सोचा फिर बोला
अवधी  मेरी है अधिक
 यदि मैं न रहता 
 तुम्हारी ओर
ध्यान किसी का न जाता
लोग कैसे जानते तुमको
मान लो मैं हूँ तुम्हारा सहोदर
मुझसे ही है पहचान तुम्हारी
पहले सुख सोच में पड़ गया
फिर मान ली हार अपनी
है कटु सत्य यही कि
यदि दुःखों  के पहाड़ न टूटते
 सुख का अनुभव कैसे होता
सुख  प्यार से गले मिला दुःख से  
दोनों अपनी अपनी राह चल दिए |
आशा