खोज में हूँ एकांत की
पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ
जंगल की राह जब भी पकड़ी
प्रकृति ने खोले दरवाजे सभी चराचरों के लिए |
इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया
वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर
कुछ समय आनंद आया
झरने के कलकल की आवाज सुन |
फिर मन उचटा राह पकड़ी नदी की ओर
जा बैठा उस ऊंचे टीले पर
बहती दरिया के किनारे
सोचा यहाँ अपार शान्ति होगी |
केवल मंद आवाज लहरों की होगी
लिखना चाहा कापी खोली
पर अजब सी बेचैनी हुई
अनचाही बातों ने दिमाग का पीछा न छोड़ा था अब तक
बहुत हताशा हुई जब पुनह विचार किया |
एक वही कारण समझ में आया
मन की शान्ति है आवश्यक लिखने पढ़ने के लिए
घर हो या बाहर वह कहीं भी मिल सकती है
यदि हो नियंत्रण मन पर |
आशा