31 अगस्त, 2011
माँ की ममता
30 अगस्त, 2011
श्री अन्ना हजारे
28 अगस्त, 2011
यह पड़ाव कब पार हो
देखे कई उतार चढ़ाव
अनेकों पड़ाव पार किये
फिर भी विश्वास अडिग रहा |
कभी हार नहीं मानी
जीवन लगा न बेमानी
जटिल समस्याओं का भी
सहज निदान खोज पाया |
आशा निराशा के झूले में
भटका भी इधर उधर
कभी सफलता हाथ लगी
घर असफलता ने घेरा कभी |
अनेकों बार राह भूला
फिर उसे खोज आगे बढ़ा
ऊंची नींची पगडंडी पर
जीवन यूँ ही चलता रहा |
जीवन इतना दूभर होगा
इस अंतिम पड़ाव पर
कभी सोचा न था
ना ही कल्पना की इसकी |
आज हूँ उदास ओर बेचैन
यह राह कब समाप्त हो
कर रहा हूँ इन्तजार
यह पड़ाव कब पार हो |
आशा
27 अगस्त, 2011
सादगी
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |
आशा
25 अगस्त, 2011
क्या पाया
सब जान कर अनजान बना रहता
यूं वैमनस्य लिए कब तक जियेगा
आज नहीं तो कल
सत्य उजागर होगा |
बिना बैर किये जो जी लिया
कुछ तो अच्छा किया
जिंदगी नासूर बनने न दी
चंद क्षण खुशियों के भी जिया |
कुछ नेक काम भी किये
जो जिंदगी के बाद भी रहे |
जिसने नज़र भर देखा उन्हें
उसे भरपूर सराहा याद किया |
जिसके ह्रदय में बैर पनपा
कुछ नहीं वह कर पाया
खुद जला उस आग में
दूसरों को भी जलाया उसी में |
आत्म मन्थन तक न किया
आत्म विश्लेषण भी न कर पाया
बस मिट गया यह सोच कर
क्या चाहा था क्या पाया ?
आशा
23 अगस्त, 2011
जब आँख खुली
21 अगस्त, 2011
कान्हा
द्वापर में भादों के महीने में
काली अंधेरी रात में
जन्म लिया कान्हा ने
मथुरा में कारागार के कक्ष में |
था दिवस चमत्कारी
सारे बंधन टूट गए
द्वार के ताले स्वतः खुले
जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ |
बेटे को बचाने के लिए
गोकुल जाने के लिए
वासुदेव ने जैसे ही
जल में पैर धरा
जमुना की श्रद्धा ऐसी जागी
बाढ आ गई नदिया में |
बाहर पैर आते ही
कान्हा के पैरों को पखारा
जैसें ही छू पाया उन्हें
अद्भुद शान्ति छाई जल में |
सारा गोकुल धन्य हो गया
कान्हा को पा बाहों में
गोपिया खो गईं
मुरली की मधुर धुन में |
बंधीं प्रेम पाश में उसके
रम कर रह गईं उसी में
ज्ञान उद्धव का धरा रह गया
उन को समझाने में |
वे नहीं जानती थीं उद्देश्य
कृष्ण के जाने का
कंस के अत्याचारों से
सब को बचाने का |
अंत कंस का हुआ
सुखी समृद्ध राज्य हुआ
कौरव पांडव विवाद मैं
मध्यस्थ बने सहायता की |
सच्चाई का साथ दिया
युद्ध से विचलित अर्जुन को
गीता का उपदेश दिया
आज भी है महत्त्व जिसका |
जन्म दिन कान्हा का
हर साल मनाते हैं
श्रद्धा से भर उठाते हैं
जन्माष्टमी मनाते हैं |
आशा