खिली सुबह की धुप सी
बाली उम्र की रूपसी
डूबी प्यार में ऐसी
वह चंचला झुकती गयी
फूलों से लदी डाली सी
दुनिया से बेखबर
लिपटी आगोश में
जाने कब डाली टूटी
धराशायी हुई
जब चर्चे आम हुए
गलती का अहसास हुआ
पश्च्याताप में डूबी
शर्म से सिमटी छुईमुई सी
जब समय पा दुःख भूली
आगे बढ़ कर किसी ने
दिया सहारा हौले से
लाल गुलाब का फूल दे
मनोभाव पढ़ना चाहे
पहले सहमी सकुचाई
फिर धीमें से मुस्काई
हाथ थाम बढ़ाए कदम
एक नई राह पर
अजनवी राह चुनी
गहन आत्मविश्वास से
एक नई राह पर
अजनवी राह चुनी
गहन आत्मविश्वास से
वह अब अनजान नहीं
जीवन की सच्चाई से
भरम उसका टूट चुका है
स्वप्नों की दुनिया से |
आशा
आशा