भूली सारे राग रंग
पड़ते ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा
ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही
वास्ता
दिन पहले रंगीन
हुआ करते
थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों
की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी
नहीं
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा
जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ
दिया
और कूद पडी अग्नी में
सत्य की परिक्षा के
लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात
होती
वह जान नहीं पाती
अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता
दिया
बाती जिसकी घटती
जाती
कसमसाती बुझने के
लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा
लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा