बैठ पार्श्व में अपनत्व जताया
केशपाश में ऐसा बंधा
जाने की राह ना खोज पाया
कुछ अलग सा अहसास हुआ
परी लोक में विचरण करती
उनकी रानी सी लगी
उसी पल में जीने लगी
पलकें जब भी बंद हुईं
वही दृश्य साकार हुआ
पर ना जाने एक दिन
कहीं गुम हो गया न लौटा
ना ही कोई समाचार आया
एकाकी जीवन बोझील लगा
हर कोशिश बेकार गयी
है जाने कैसी माया
उस अद्भुद अहसास से
दूर रह नहीं पाती
मोह छूटता नहीं
आस मिटती नहीं
इधर उधर चारों तरफ
वही उसे नजर आता
जैसे ही दूरी हटना चाहती
अंतर्ध्यान हो जाता
सालने लगे अधूरापन व रिक्तता
हर बार यही विचार आता
क्या सत्य हो पाएगा
वह दृश्य कभी |