अपने आप में उलझा हुआ सा
है विस्तार ऐसा आकलन हो कैसे
कोई कैसे उनमें जिए |
रूप रंग आकार प्रकार
बार बार परिवर्तन होता
एक ही इंसान कभी आहत होता
कभी दस पर भारी होता |
सागर के विस्तार की
थाह पाना है कठिन फिर भी
उसे पाने की सम्भावना तो है
पर स्वप्नों का अंत नहीं |
हैं असंख्य तारे फलक पर
गिनने की कोशिश है व्यर्थ
पर प्रयत्न कभी तो होंगे सफल
कल्पना में क्या जाता है |
स्वप्न में बदलाव पल पल होते
यही बदलाव कभी हीरो
तो कभी जीरो बनाते
याद तक नहीं रहते |
बंद आँखों से दीखते
खुलते ही खो जाते
याद कभी रहते
कभी विस्मृत हो जाते |
उस अद्दश्य दुनिया में
असीम भण्डार अनछुआ
बनता जाता रहस्य
विचारक के लिए |
आशा