स्वप्नों का इतिहास सजीला
कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा
मैंने
इतिहास तो इतिहास है
मैंने भूगोल
में भी पढ़ा है|
प्रतिदिन जब सो कर
उठती हूँ
अजब सी खुमारी रहती है
कभी मस्तिष्क रिक्त
नहीं रहता
उथल पुथल तो रहती ही है |
यदि एक स्वप्न ही
रोज रोज आने लगे
कहीं कोई अनर्थ न हो जाए
शुभ अशुभ के चक्र
में फंसती जाती हूँ |
कई पुस्तकें टटोलती हूँ
कहीं कोई हल मिल जाए
पर कभी कभी ही
स्वप्नों का आना जाना
हर स्वप्न कुछ कह
जाता है
ऐसा इतिहास बताता है
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बड़े युद्ध हुए है इन के कारण
खोजे गए शगुन
अपशगुन के कारण |
पर यह भी
कहा जाता
मन में हों जैसे
विचार
वैसे ही सपने आते
वही इतिहास की
पुस्तकों में
सजोकर रख दिए जाते
हैं |
आशा
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