25 फ़रवरी, 2021

स्वप्नों का इतिहास



 स्वप्नों का इतिहास सजीला

कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा मैंने

इतिहास तो इतिहास है

मैंने भूगोल में  भी पढ़ा है|

प्रतिदिन जब सो कर उठती हूँ

अजब सी खुमारी रहती है

कभी मस्तिष्क रिक्त नहीं रहता

 उथल पुथल तो रहती ही है |

यदि एक स्वप्न ही 

रोज रोज आने लगे

  कहीं कोई अनर्थ न हो जाए

शुभ अशुभ के चक्र में फंसती जाती हूँ |

कई  पुस्तकें टटोलती हूँ

कहीं कोई हल मिल जाए

पर कभी कभी ही

यह  सपना सच्चा होता है |
महत्व बहुत दर्शाता है

 स्वप्नों का आना जाना

हर स्वप्न कुछ कह जाता है

ऐसा इतिहास बताता है |

 बड़े युद्ध हुए है इन के कारण

खोजे गए शगुन

अपशगुन के कारण |

पर  यह भी  कहा जाता

मन में हों जैसे विचार

 वैसे ही सपने आते  

वही इतिहास की पुस्तकों में

सजोकर रख दिए जाते हैं |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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24 फ़रवरी, 2021

इमली खट्टी है



हे इमली के पेड़

तुम्हारे स्वभाव में

इतनी खटास क्यूँ ?

क्या तुम कभी

 मीठे हुए ही नहीं |

क्या तुम्हें  मीठी बाते

 पसंद नहीं आतीं

हर समय खटास

 भरी रहती है

तुम्हारे मन में |

यहाँ तक कि

 पत्तियाँ भी खट्टी

इतनी खटास क्यूँ ?

क्या कभी मीठे फल

चखे ही नहीं

या तुम्हारे दिल ने ही

 स्वीकारे  नहीं |

कभी तो मन तुम्हारा भी

 होता होगा  

कि जो तुम्हें खाए

तारीफ करे अरे वाह

कितनी मीठी है इमली |

पर वह है स्वप्न

तुम्हारे लिए

ना कभी मीठे हुए

ना भविष्य में होगे

जैसे हो वैसे ही रहोगे |

आशा 

23 फ़रवरी, 2021

कान्हां तुम न आए


                                                             कान्हां तुम  न आए मिलने

जमुना किनारे

वट वृक्ष के नीचे

 रोज राह देखी तुम्हारी

 पर तुम न आए |

इतने कठोर कैसे हुए

यह रंग बदला कैसे

तुमने वादा किया था

आने का यहीं पर  |

आए  पर छिपे रहे  करील की

 झाड़ियों के पीछे

है यह कैसा न्याय प्रभू

 तुमने बिसराया मुझे | 

कहाँ तो कहा  कहते थे

जी न पाओगे मुझसे बिछुड़ कर

पर मैंने तुम्हें पहचान लिया है

तुम रह नहीं सकते

बांस की मुरली के  बिना  |

तुमने मुझे भरमाया

अपनी शक्ति मुझे बताया

पर यही गलत फहमी रही

मैंने तुम्हारी बात को सच माना |

राह देखी दिन रात तुम्हारी

पर तुम न आए

तुम तो मथुरा के हो गए

फिर लौट न पाए दोबारा |

मेरा विरही मन

 तुम्हारी राह देखता रहा

नयन धुधले हुए हैं 

वाट जोहते जोहते |

 श्याम तुम कब आओगे

मेरी मनोकामना पूर्ण करोगे

तुम भूले हो अपना वादा

पर मैं नहीं भूली अब तक  |

आशा

 

22 फ़रवरी, 2021

स्वप्नों की चौपाल

स्वप्नों की चौपाल सजी है
कोई व्यवधान न आने दूंगी
बंद आँखों पर चश्मा चढ़ा है
चित्र धूमिल न होने दूंगी |
एक ही अरमां रहा शेष अब
जागते हुए भी उसी में खोई रहूं
मेरा है विश्वास अडिग यह
भावनाओं पर नियंत्रण रखूँ |
केवल कल्पना ही कल्पना हो
और न हो कोई ठोस कार्य
क्या यह गलत नहीं है ?
दिन रात सपनों में खोए रहना
जीवन ऐसे नहीं चलता है |
मनुज को अकर्मण्य बना देता है
इसी लिए ठोस धरातल पर
सजाऊँगी चौपाल स्वप्नों की
वहीं उन्हें साकार करूंगी |
आशा

21 फ़रवरी, 2021

चंचल चपला हिरणी जैसी

 


कभी चंचल चपल हिरनी जैसी

दौड़ती फिरती थी  बागानों में

अब उसे  देख  मन में  ईर्षा होती

क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |

इतनी जीवन्त न हो पाई

बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने

लम्बा  समय काट दिया है 

अब घबराहट होने लगती है |

और कितना समय रहा शेष

कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए

क्या बीता समय लौट कर आएगा

मुझमें साहस का संचार होगा |

फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा

पर शायद यह मेरी कल्पना है

कभी सच न हो पाएगी

जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |

आशा  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

20 फ़रवरी, 2021

खोज में हूँ एकांत की

 

                                      खोज में हूँ एकांत की 

 पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ 

जंगल की  राह जब भी  पकड़ी

प्रकृति  ने खोले  दरवाजे सभी चराचरों  के लिए |

इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया

 वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर

कुछ समय आनंद आया

 झरने के कलकल की आवाज सुन | 

 फिर मन उचटा राह पकड़ी नदी की ओर

जा बैठा उस ऊंचे टीले पर

 बहती दरिया के किनारे 

सोचा  यहाँ अपार शान्ति होगी |

केवल मंद आवाज लहरों  की होगी 

 लिखना चाहा कापी खोली

 पर अजब सी बेचैनी हुई 

अनचाही  बातों ने दिमाग का पीछा न छोड़ा था अब तक  

बहुत हताशा हुई जब पुनह विचार किया |

एक वही कारण समझ में आया

मन की शान्ति है आवश्यक लिखने पढ़ने के लिए

 घर हो या बाहर वह कहीं भी मिल सकती है

यदि हो नियंत्रण  मन पर |

आशा

19 फ़रवरी, 2021

कौनसा मार्ग चुनूं


 

धर्म कर्म की अति करदी

पर  हर बार कमी रह  जाती

द्वार तुम्हारे जब भी आती

वे  खुल न पाते मेरे लिए |

है यह कैसा न्याय प्रभू

सभी ने एक से यत्न किये

किसी के लिए पट खुले

हम अधर में ही रहे |

दिल से दान किया था

धर्म में भी पीछे न रहे

सच्चे मन से अरदास की

कमी कहाँ  रही  न जान सकी |

कुछ तो इशारा किया होता

अधर में लटकी  मेरी नैया

ढूंढे न मिला खिवैया

 कैसे विश्वास करू किसी पर

जब तुमने ही राह न दिखाई

 मुझ पर करुणा ना दर्शाई |

किसी ने कहा बिन गुरु मोक्ष न होय

 सोचा किसी गुरू कोही  अपना लूं

तभी मेरी  नैया पार लग पाएगी

भव सागर से मुक्ति मिले पाएगी

पर ऐसा  गुरू कहाँ खोजूं

जो सच्चे मन से शिक्षा दें

भवसागर के  प्रपंचों से दूर कर

मोक्ष का  मार्ग प्रशस्त करें |

आशा