हुई पूर्ण फिर भी
क्यूँ खुशी नहीं
मुख मंडल पर
मुझे बताओ
मन में विचार क्या
पलने लगा
होता यदि मालूम
शायद जानू
मैं तुम्हें पहचानू
मदद करो
किसी काबिल बनू
जीतूँ विश्वास
गोरे सुर्ख गालों की
मुस्कान पर
लगी मेरी मोहर
किसी और से
मैं कैसे उसे बाटूं
आशा
हुई पूर्ण फिर भी
क्यूँ खुशी नहीं
मुख मंडल पर
मुझे बताओ
मन में विचार क्या
पलने लगा
होता यदि मालूम
शायद जानू
मैं तुम्हें पहचानू
मदद करो
किसी काबिल बनू
जीतूँ विश्वास
गोरे सुर्ख गालों की
मुस्कान पर
लगी मेरी मोहर
किसी और से
मैं कैसे उसे बाटूं
आशा
खोज रहा एकांत
ठहरे जहां
चंद पलों के लिए
भूले भूकंप
भयावह सुनामी
सोचता रहा
कब हो छुटकारा
उलझनों से
दुनिया की यातना
सह न पाता
कैसे बचे इससे
बैरागी मन
ठहर नहीं सके
भटका जाए
एक ही स्थान पर
हो कर
मुक्त
यहाँ के प्रपंचों से
है राह भूला
फिर नहीं भटके
सही दिशा हो
बंद आंखो से खोजे
वही मार्ग
हो
आशा
कितना पानी
हटा पाया अब तक
मन ने सोचा
तेरा उत्साह देख
आज की नारी
कमजोर थी कभी
अब नहीं है
छलके अश्रु मेरे
दौनों नैनों से
है सक्षम सफल
नहीं ज़रूरी
बैसाखी वाकर की
नहीं चाहिए
उंगली की पकड़
अपनी शक्ति
पहचान गई है
आज की नारी
समय का साथ पा
परख रही
है कितने पानी में
श्याम सुन्दर कान्हां
मन को भाया
2-तेरी
ये माया
तूने क्यूँ भरमाया
न जान पाया
3-कैसी
ममता
कितना भरा प्यार
क्या है स्नेह
4-खुशी
भी तेरी
दुखी भी तुम नहीं
फिर है क्या
५-राधा है शक्ति
मदन मोहन की
मीरा है भक्ति
६-माँ यशोदा
वासुदेव पिता हैं
घनश्याम के
७- श्याम सलोने
मोहन राधा जी के
श्याम दुलारे
आशा
किस ने कहा तुमसे हर बात
जैसी की तैसी ही मान लो |
अपनी बुद्धि भी कभी तो खर्च करो
ज्यादा नहीं तो कुछ तो लाभ हो |
केवल कानों से सुने और निकाल दें
यूँ ही आडम्बर जान यह भी ठीक नहीं |
कभी सच्ची बात नजर नहीं आती
जब झूटी अपना फन फैलाती |
मुस्कान तिरोहित हो जाती जब सच्चाई समक्ष आती |
सच झूट में दूरी है बहुत कम जान लो
आँख और कान का है जितना फासला पहचान लो |
मेरे भाग्य में क्या
लिखा है ?
जब भी आकलन करना
चाहूँ
स्वयं पर हंसी आती
है मुझे |
क्या फिजूल की बातें ले बैठा
विचारों की कोई सीमा
नहीं है
वे बहते हैं नदी के
जल के प्रवाह से
कभी रुकते हैं किसी
बड़ी बाधा से |
पर कभी उस का भी
प्रभाव नकार देते हैं
मनमानी करने की
जिद्द ठान लेते हैं
दोराहे पर खडा हूँ किसे अपनाऊँ
पर बड़ा दुःख दे जाते
हैं
यही मुझे सालता रहता है |
इस झमेले से कैसे निजात पाऊँ
खुद सम्हल कर पाँव बढाऊँ
जब खुद पर ही
नियंत्रण नहीं रहा मेरा
किसी और को क्या
समझाऊँ |
आशा
शिवजी की बरात निकली
बहुत धूमधाम से
शिव पार्वती मिलन
हुआ
विधि विधान से |
पार्वती ने पाया था
मनोनुकूल वर
कठिन तपस्या से
तभी नाम हुआ अपर्णा उनका
|
रूप अनूप जोड़ी का
देखते नहीं थकते दृग
दर्शन हुए बड़े भाग्य
से |
हर वर्ष मनाया जाता
विवाह उत्सव उनका
शिवरात्रि के रूप में |
बेल पत्र व् पुष्प चढ़ाते
हल्दी कुमकुम दूध चढाते
भोग लगाया जाता
विधि विधान से |
उपवास दिन भर रखते
फल फूल से पेट भरते
भोले नाथ की माला
जपते
बहुत यत्न से |
मन चाहा पाने की
लालसा सदा
रही मन में
वरद हस्त प्रभू का
सर पर हो
सदा
यही रहा मन में
|
आशा