यह
दिवस मनाते कब से हैं
इसकी यादें
बसती हैं मन में
एक पेड़ सी
घने वृक्ष के जैसी
गहरी जड़ें
फैल रही धरा में
फैली शाखाएं
देती हरियाली है
नव पल्लव
खिल जाते डालों पे
सजते सोच
शब्द सहेजे जाते
उड़ते पक्षी
विभिन्न कथन हैं
छिपे उनमें
शब्दों से बने गीत
भूल न
पाते
उनके हैं सन्देश
दिल में रहे
तभी यह दिवस
मनाया जाता
आशा
है जब तक
प्राणों का आकर्षण
भरमाया सा
मद मोह माया से
छला जाता हूँ
मन के मत्सर से
अनियंत्रित हूँ
बेहाल हुआ
मेरे वश में नहीं
न अपना है
नहीं चंचल चित्त
ना ही वर्जना
तब भी अपनों ने
टोका ही नहीं
अनजान व्यक्ति ने
दी है हिम्मत
बढाया मनोबल
शूरवार हो
फिर कायरता कैसी
साहस बढ़ा
अंतर आत्मा
जागी
कर्मठ हुआ
निर्मल जीवन का
समझा अर्थ
हुआ कर्तव्य निष्ठ |
आशा
कितनी बाते
कहने करने को
समय कम
होने लगता जब
बहुत कष्ट
देता जाता मन को
तुम्हारा दिल
कंटकों से भरता
पुष्प किसी का
भाग्य बदल देता
तुम्हीं अछूते
रह जाते उनसे
जानना चाहा
सजा किस कारण
मैंने किया क्या
मालूम नहीं हुआ
रहा अशांत
कभी खोजने
की भी
चाहत होती
कितना लाभ होता
जान कर भी
नहीं है कुछ लाभ
मन अशांत
होता ही रह जाता
आशा
दीवाना हुआ
तेरी छवि देखते
खोया ख्यालों में
बनाली है तस्वीर
मस्तिष्क में भी
क्यों हुआ हूँ अधीर
दोगे दर्शन
हम सब को साथ
तुम्हारे हाथ
होंगे मेरे ऊपर
ख्यालों में डूब
जाता
तन बदन
ठहर जाता मन
एक स्थल पे
जाना नहीं चाहता
जन्म ले कर
फिर से धरा पर
जन्म मृत्यु के
चक्र व्यूह में फंसा
मुक्ति मार्ग का
मैं रहा अनुरागी
दीवाना फिर भी हूँ
पाया है जिसे
बहुत जतन से
फिर से खोना
नहीं मंजूर मुझे |
आशा
पहने पीताम्बर
श्यामल गात
अधरों पर मधुर
मुस्कान लिए
घूमते गली गली
माखन खाते
खुद खाते खिलाते
ग्वालवाल को
लिए साथ जब भी
एक गजब
कहानी बन जाती
गिला शिकवा
शिकायत तो होते
पर क्षमा की
गुहार भी लगाते
सीधे साधे हो
जाते
कोई कहता
माखन चोर कान्हां
नन्द किशोर
यशोदा के दुलारे
मोहन प्यारे
बाँसुरी बजा रिझाते
गोप गोपियां
रंग रसिया होते
राधा बिना अधूरे
मोहन होते
आशा
चाह तुम्हारी
हुई पूर्ण फिर भी
क्यूँ खुशी नहीं
मुख मंडल पर
मुझे बताओ
मन में विचार क्या
पलने लगा
होता यदि मालूम
शायद जानू
मैं तुम्हें पहचानू
मदद करो
किसी काबिल बनू
जीतूँ विश्वास
गोरे सुर्ख गालों की
मुस्कान पर
लगी मेरी मोहर
किसी और से
मैं कैसे उसे बाटूं
आशा
रमता जोगी
खोज रहा एकांत
ठहरे जहां
चंद पलों के लिए
भूले भूकंप
भयावह सुनामी
सोचता रहा
कब हो छुटकारा
उलझनों से
दुनिया की यातना
सह न पाता
कैसे बचे इससे
बैरागी मन
ठहर नहीं सके
भटका जाए
एक ही स्थान पर
हो कर
मुक्त
यहाँ के प्रपंचों से
है राह भूला
फिर नहीं भटके
सही दिशा हो
बंद आंखो से खोजे
वही मार्ग
हो
आशा