दोनो ओर के रिश्ते
धन और ऋण से होते
पर जताते नहीं कभी
वे कैसे होते |
हैं सतही या खून के
जब आवश्यकता होती
तभी दिखाई देते
समय पर पहचाने जाते |
कभी विरोधाभास होता दौनों में
कमी उजागर हो जाती
जब बरता जाता दौनों को
हैं इतने नाजुक कच्चे सूत से |
इन्हें निभाना है एक कला
अधिकाँश होते अनजान
कुछ गिने चुने लोगों के सिवाय
वे ढोल पीटना जानते |
रिश्ते की नजाकत
जब नहीं समझते
कहाँ तक सोचें कितना निभाएं
वाडे निभाएं जान से ज्यादा
बरसाती मेंढक से नहीं |
वही सही रिश्ते निभा पाते
अपने पराए का भेद समझाते
बुरे वक्त में साथ रह हिम्मत दिलाते |
आशा