04 नवंबर, 2021

रिश्ते कैसे कैसे

 


01 नवंबर, 2021

रिश्ते कैसे कैसे

 


किसी ने बेटी माना दिल से 

 स्नेह का दान दिया  

मैंने कुछ  न चाहा

ना ही जानना चाहा क्या उपहार मिला  |

मैंने प्यार किया दिल से

बिना किसी आडम्बर के

यही क्या कम है

उसे कोई न नाम दिया |

जिन्दगी में कुछ रिश्ते होते ऐसे

जो जन्म से नहीं होते

पर जब बन जाते हैं

 कभी नष्ट नहीं होते  |

अहमियत होती बहुत

इन रिश्तों की

जो निभाता उन्हें

वही इनकी कद्र जानता |

ये सतही नहीं होते

पनपते ही जीवन के

साथ जुड़ जाते

और अंत तक बने रहते |

इनकी मिठास को

 मापा नहीं जा सकता

किसी  प्रलोभन से इन्हें

बांटा नहीं जा सकता |

प्यार दुलार ममता 

इसे क्यों नाम दें

हमारे मन को

 जब चाहे उपहार दें |

आशा   

 

03 नवंबर, 2021

रूप चौदस

                                 पहले  घर स्वच्छ किया सजाया 

आज के दिन भोर होते ही स्नान किया 

नवीन वस्त्र धारण किये

 सजाया सवारा खुद को  |  

बड़ों के  चरण स्पर्श कर

 आशीष लिया उनसे  

दीपक लगा कर ध्यान  किया |

सारा सोंदर्य निखर कर आया

देखा जब दर्पण में खुद को 

आज रूप चौदस है

 दूसरा दिन इस पर्व का | 

देवी के स्वागत के लिए

अपनाया सभी प्रसाधनों को 

देखते ही नजरें  न टिकती थीं 

यही करिश्मा हुआ अब तक |

 रूप की चमक दमक देखी जब

आशीरवाद  दिया लक्ष्मीं  ने  

सदा ऐसी ही बनी रहो

रहो सदा सौभ्यवती

रहो हमेशा भाग्य शाली |

वरदान दिया लक्ष्मीं ने 

सुख समृद्धि से दामन भरे

 सफल जीवन जियो 

आने वाले कल में |

आशा   

02 नवंबर, 2021

पांच दिवसीय दीपावली त्यौहार

 

पांच दिवसीय दीपावली के त्यौहार पर आप सब को हार्दिक बधाई |

चंद पंक्तियाँ  प्रस्तुत हैं-



अपने  घर में चलाया है

 वार्षिक स्वच्छता अभियान 

 घर का कौना कौना पोता  बुहारा

श्री लक्ष्मीं के आगमन की प्रतीक्षा है  |

 दीप प्रज्वलित किये घर बाहर  के 

दीपों की चमक दमक से स्वागत के लिए 

आने वाली देवी लक्ष्मी का   |

खुद सजे बच्चों को सवारा नए परिधानों से

शगुन की फुलझाड़ियाँ लाए

 दीपमाला से धर को सजाया

दरवाजे पर चौक बनाया रंगोली से |
अब इंतज़ार है खील बताशों का 

गुजिया पपड़ी  यदि बन पाएं 

 मजा तो आना ही है |

घर ऐसे चमक रहा है मानों नया बना है  

सब खुश होते  हैं 

एक दूसरे से मिल कर

यही है विशेषता इस  त्योहार की |

दीपावली मनाने की 

नया कुछ लाने की 

पूरे वर्ष इन्तजार रहता इसका 

 है पर्व ही ऐसा |

आशा 

 

   

  

 

31 अक्तूबर, 2021

हूँ तुम्हारी अनुगामिनी



 

 

 

 

 

 

 

 

                                      तुम दीपक मैं बाती

                जब कि  हूँ तुम्हारी अनुगामिनी 

तुममें मुझमें है अंतर

तुम स्नेह की महिमा बिसरा बैठे |

मैं स्नेह के साथ भी बंधी हूँ 

यह तुमने न जाना 

स्नेह के बिना

खुद को अधूरा पाया मैंने |

उसने वह कार्य  किया

जिसकी सदा  रही  अपेक्षा मुझे

स्नेह  सेतु बंध का कार्य

 पूर्ण निष्ठा से करता |

उसके बिना खुद को अकेला पा

कुछ कर न पाती 

वायु का सहयोग भी रहा

 नितांत आवश्यक

हम दौनों के संगम में|

वह यदि कुपित होती

 कभी साथ न देती 

वायु का बेग जागृत 

 न होने देता हमें 

उजाला कैसे होता |

सब एक दूसरे से

 जब सहयोग करते

तभी सफल हो पाते

फिर भी तम

तुम्हारे नीचे रह ही जाता |

 आशा 

 


30 अक्तूबर, 2021

नैना छलके


 

नैना छलके

अश्रु बहने लगे द्रुत गति से 

मन को लगी ठेस

उसके  वार  से|

कभी न  सोचा था

किसी से प्यार किया

तब क्या होगा |

जब भी स्वीकृति चाही 

मन की  चाहत गहराई 

इन्तजार में

 जवाब नहीं पाया| 

कारण जानना चाहा 

ना में जवाब पाया    

मन विब्हल हुआ

नैना  छलके

 अश्रु बह निकले

 द्रुत गति से| 

फिर से उफने हैं

बहती नदिया  की

 लहरों की तरह 

खोज रहा हूँ कारण|

उसके इनकार का

और अधिक बलवती

हुई  है चाहत

 प्यार के इजहार की |

आशा 


29 अक्तूबर, 2021

अनुसूचित

 


अनुसूचित जान कर भी बचपन में 

 क्यों पहले  किया परहेज मुझ से  

मन को बड़ा संताप हुआ

 क्यों छला मुझे |

मैंने कोई अपेक्षा न  की थी

आगे हाथ न बढाया कभी

किस बात की सजा मुझे मिली 

 नादानी का क्यों लाभ उठाया तुमने?

क्या मैंने  अपनी मर्जी से

कोख चुनी थी माँ की  

या किसी पूर्व जन्म की

मुझे सजा मिली थी |

मैं सोच न पाई अब तक

मन हुआ अशांत जब जाना

अपना स्थान समाज में पहचाना

 निम्नतम स्तर था मेरा |

पर क्या यह था मेरे हाथ में

कहाँ जन्म हुआ पली बड़ी हुई

अब हुआ ज्ञान मुझे

तुम में मुझ में अंतर है क्या ?

किसी ने न बतलाया पहले

जाति धर्म में है क्या अंतर

मैंने  पहले सुना था

मनुष्य मनुष्य  सब एक से |

पर अब फर्क नजर आया

जब तुमने मेरे साथ  की दुभात

मेरे  मन को कष्ट पहुंचाया

ऊँच नीच का अंतर समझाया |

आशा

28 अक्तूबर, 2021

वन्दना

 

एहसास तेरी महिमा का है उसे 

 

वह  मंदिर की घंटी की गूँज से

तेरी उपस्थिति जान लेती है 

तुझे पहचान लेती है |

मंद हवा का झोका  जब आता 

उसमें बसती सुगंध में   

वह अपनी हाजरी दर्ज कराती 

मन को वहीं खींच ले जाती |

प्यारी सी छवि तेरी हे माँ

उसके मन को छू गई 

उसमें डूबे रहने में 

उसे बड़ा सुकून मिलता|

यदि कभी मन

 होता वह गाती गुनगुनाती 

तार वीणा के झंकृत होते 

वह तुझ में खो जाती |

जब से तेरा वरद हस्त है सर पर 

मन को बड़ी संतुष्टि मिली उसे 

चाहती सुख  शान्ति चहु ओर

दिन रात खोई रहती तेरी वन्दना में | 

आशा