09 नवंबर, 2021
शमा जली सारी रात
झूटे वादे
यूँ तो कोई
वादे नहीं करते
यदि वादे कर लिए
पूरे नहीं करते |
उनको निभाने का
नाम न लेते
यह झूटी बातें किसलिए
किसे बहकाने के लिए |
होता क्या लाभ
इन ऊंची नीची बातों का
क्या जानते नहीं
ऎसी बातें कभी छिपती नहीं |
जब उजागर होती हैं
सब की निगाहों से
गिर जाते हैं
इज्जत नहीं होती समाज में
हो जाते हंसी के पात्र |
तब मन को
बहुत कष्ट होता है
शर्म से नत मस्तक
होने के सिवाय
कुछ भी प्राप्त नहीं होता |
वादा करो कोई वादा किया यदि
पूरी निष्ठा से निभाओ
तभी तुम्हारी
बातों की कद्र होगी बातों के पक्के
माने जाओगे |
आशा
08 नवंबर, 2021
जीवन अधूरा
वह नहीं जानती
किसी की दुर्वलता पर हंसना क्या होता है
जिसने इसे भोगा नहीं इसी जिन्दगी में |
जीवन कटुता से भरा हो
जब हो हाल बेहाल
हंसने का कोई कारण तो हो |
यही कुछ बीते जब खुद पर
सोचो जीवन कैसा होगा |
न प्यार न इकरार
ना हीं मान मनुहार
रूठना मनाना कुछ काल का
होता है शहादत
प्यार के इजहार का |
कभी शब्द नहीं होते
क्षमा माँगने के लिए
इन प्रपंचों से बचकर निकलने के लिए
जीवन सुखमय करने के लिए |
यही समस्या है आम आदमीं की
भूल करता नहीं हो जाती है
इससे कैसे बचे कोई तो उपाय हो|
कभी अहम् आड़े आता है
क्षमा और शब्दों के बीच
झुकने नहीं देता उसे |
उसके अहम् को ठेस पहुँचती
किसी भी समझोते पर विश्वास नहीं होता
प्रयत्न जब असफल ही रहते हैं
जीवन अधूरा रह जाता है |
आशा
07 नवंबर, 2021
वर्ण पिरामिड
तेरी
सुघड़
छवि वही
तुझ में बसी
दूर न मुझ से
सब से प्यारी मुझे
बहुत न्यारी प्यारी है
कोई और नहीं चाहिए |
तेरी
सुप्रिया
हमदम
हम सफर
ख्यालों में बसी हूँ
कभी नजारों में हूँ
हूँ इतने करीब कि
मैं तुझसे दूर नहीं हूँ |
एक
कारवा
जानेवाला
देशाटन को
मुझे जाना होगा
खोज रहा सुकून
दूर नहीं मेरा गाँव
कुछ तो परिवर्तन हो |
आशा
06 नवंबर, 2021
भूली विसरी यादेँ
है ऐसा क्या
उन यादों में
स्वप्नों में भी
यादों से बाहर
न निकल पाई |
लाखों जतन किये
सब हुए व्यर्थ
मैं ना खुद सम्हली
न किसी को
उभरने दिया |
जितनी भी कोशिश की
सब व्यर्थ हो गई
यादों का दलदल
पार न कर पाई
उसी में डूबती
उतराती रही |
किसी ने जब
हाथ बढाया
बचाने के किये
झटका हाथ |
फिर से वहीं
डूबती रह गईं
कोशिश का मन
अब न हुआ
उसमें ही खो गई |
यही यादें बनी
जीने का संबल मेरा
कहाँ समय बीता
अब याद नहीं |
आशा
05 नवंबर, 2021
गेंदे के फूल की खेती
तुम गेंदे के फूल
मैं पंखुड़ी तुम्हारी
मन में बसा रहता |
त्यौहार तुम बिन
रहता है अधूरा
जब भी तुम्हारी
आती बहार फूलों की |
खेतों और बागीचों में
जिधर निगाहें जातीं
तुम्हारे बिना
उन्हें अधूरा पातीं |
मेरी प्रसन्नता का
ठिकाना न रहता
बागों में बहार
देख पुष्पों की |
क्यारी जब सूनी होती
मन को बहुत दुःख पहुंचाती
रंग तुम्हारा मन को भाता
और मन को बहलाता |
आशा
04 नवंबर, 2021
दीपावली
कुम्हार से माटी के
दीपक लाया
कपास की बाती बनाईं
स्नेह डाला उन में |
श्याम को रंगोली के चौक पर
दीपक रखे
पूजन के लिए तैयारी की
विधि विधान से |
खील बताशे सजाए
पूजा की थाली में
कुमकुम अक्षत मेंहदी कलावा
सजाया एक थाली में
पुष्प और फुलझड़ी
सजाई दूसरी में
चौक पर चावल रखे
उन पर दिया रखा |
की तैयारी पूर्ण जब
खुद सजने की बारी आई
अब है बेसब्री से इन्तजार
देवी लक्ष्मीं के आगमन का |
धन धान्य से भरे वरद हस्त का
है आज पर्व दीपावली का
क्यूँ न खुशियां मनाएं
मिलें जुलें सब से स्नेह से |
अपनी परम्परा निभाएं
कल होगी गोवर्धन पूजा
परसों है भाई दूज की यम यमुना की पूजा
समापन पांच दिवसीय दीपावली पर्व का |
आशा