गीत गाता रहा गुनगुनाता रहा
एकांत में
मन के भाव पिरोए हैं
बंद कमरे में |
झांका तक नहीं बाहर
किसी अनजान को
मुझे किसी की दखलन्दाजी
अच्छी नहीं लगती
किसी भी काम में |
जिस कार्य को पूर्ण करने का
बीड़ा उठाया है
उसे पूरा करने की
क्षमता भी है मुझ में |
अधूरा कार्य छोड़ना
उससे पलायन करना
नहीं लगता
न्यायसंगत मुझे |
उस के साथ अन्याय
मुझे पसंद नहीं
गीत कहाँ तक सफल हुआ
कैसे जानूं
जब सुने कोई
खुद को पहचानूं |
है अपेक्षा यही कि
गीत परिपूर्ण हो
यदि सफलता मिले उसमें
और नया गीत बने |
अधिक उत्साह से
कुछ और लिखूं
धुन बनाऊँ गुनगुनाऊँ
जो मन को छुए ऐसा गीत रचूं|
आशा