जीवन में आती धूप छाँव
सुबह और शाम
कोई परिवर्तन न देखा
यही क्रम जारी रहा जीवन भर |
आते व्यवधानों से जिन्दगी में
चलना सीखा काँटों से बच कर
ऊबड़ खाबड़ कन्टकीर्ण सड़क पर
जिसे पार करना सरल न था |
मुझे ठोकर लगी जब
उसी ने सहारा दिया
गिरने पर सम्हाला
बड़े जतन से उठाया |
मुझे गंतव्य तक पहुंचाया
कोई तो है मददगार मेरा
वही मेरा हमराज हुआ
बोझ मन का कम हुआ |
जब वक्त पर आ खड़ा हुआ
बैसाखी बन कर सहारा दिया
मुझमें साहस का संचार हुआ
खुद पर विश्वास जाग्रत हुआ |
मेरे अधूरे जीवन में बहार आई
उसकी जरासी सहायता से
जिन्दगी मेरी सवर गई
उसके हाथ बढाने से |
अधूरे जीवन में परिवर्तन आया
सुबह और शाम में
धुप और छाँव में स्पष्ट
अंतर नजर आया |
आशा