24 दिसंबर, 2021
कोई कठिनाई नहीं
21 दिसंबर, 2021
अधूरे जीवन में परिवर्तन
जीवन में आती धूप छाँव
सुबह और शाम
कोई परिवर्तन न देखा
यही क्रम जारी रहा जीवन भर |
आते व्यवधानों से जिन्दगी में
चलना सीखा काँटों से बच कर
ऊबड़ खाबड़ कन्टकीर्ण सड़क पर
जिसे पार करना सरल न था |
मुझे ठोकर लगी जब
उसी ने सहारा दिया
गिरने पर सम्हाला
बड़े जतन से उठाया |
मुझे गंतव्य तक पहुंचाया
कोई तो है मददगार मेरा
वही मेरा हमराज हुआ
बोझ मन का कम हुआ |
जब वक्त पर आ खड़ा हुआ
बैसाखी बन कर सहारा दिया
मुझमें साहस का संचार हुआ
खुद पर विश्वास जाग्रत हुआ |
मेरे अधूरे जीवन में बहार आई
उसकी जरासी सहायता से
जिन्दगी मेरी सवर गई
उसके हाथ बढाने से |
अधूरे जीवन में परिवर्तन आया
सुबह और शाम में
धुप और छाँव में स्पष्ट
अंतर नजर आया |
आशा
20 दिसंबर, 2021
फूल गुलाब का
खिला गुलाब
बाग़ में डाल पर
सोचता रहा
उसके जीवन की
क्या कहती कहानी
कभी कली रही थी
पत्तों में छुपी
पत्तियों के कक्ष से
झांकती कली
खिली पंखुड़ी सारी
फूल खिला है
हुआ लाल गुलाब
वह अकेला नहीं
झूलता रहा
रक्षक रहे पास
बचाते रहे
उसको बैरियों से
तितलियों की
भौरों की छेड़ छाड़
उसे भाती है
प्यार दुलार उनका
स्वीकार किया
वायु बेग सहना
भी सीख लिया
उससे बचने की
कोशिश न की
विरोध की क्षमता
नहीं है अब
देख लिया जीवन
मन मुदित
हुआ जीवन पूर्ण
प्रभु के चरण में
खुद को वहां
अर्पित कर दिया |
आशा
19 दिसंबर, 2021
आत्मकथा पुष्प की
रात भर सोया चैन से
सुबह ओस से नहाया
हुआ मुग्ध अपने रूप रंग पर|
हुआ जब समय डाल से बिछुड़ने का
माली ने सजाया सवारा
मेरे श्वेत लाल पुष्प गुच्छों को
प्यार से दुलराया फिर विदा किया |
अब मिला स्थान मुझे
गुलदस्ते के एक कौने में
जो गया एक हाथ से दूसरे में
पर मुझे सराहना कोई न भूला
महिमाँ मंडन खूब हुआ मेरा
गर्व हुआ अपने आप पर |
कड़ी धुप सहन की फिर भी न मुरझाया
किया सूर्य किरणों से मुकाबला
बचने में खुद को सक्षम पाया
मेरा मन बल्लियों उछला |
मैंने माली का धन्यवाद किया
जिसने प्यार से पाला पोसा
मुझे सक्षम बनाया
अपने पैरों पर खड़ा किया |
मुझे यहीं जीने का
सच्चा आनन्द मिला
अपनी क्षमता जान सका
खुद को पहचान सका |
जब देखा शहीदों की अर्थी पर सजा खुद को
मन में देश भक्ति जाग्रत हुई
मेरा सही उपयोग देख
मुझे फिर से बहुत गर्व हुआ |
आशा
18 दिसंबर, 2021
महिमा अधूरी रह जाती
प्रभु की महिमा अधूरी रह जाती
बिना चुने हुए अल्फाजों के
गीत तो गाए जाते पर
बिना धुन और लय ताल के |
सतही यह गीत संगीत ताल
दिल से जब शब्द न निकले
सभी दिखावे से लगते
जब मन को न छू पाते |
खिलती कलियों का नेह निमंत्रण
फिर भी आकर्षित करता
फूलों का रंग अपनी ओर खीचना चाहता
और मैं खिचता चला जाता वहां |
मुझे आभास ही नहीं होता कब
सुगंध के सहारे मैं पहुंचता वहां
इस दृश्य का आनंद लेने |
फुलों पर उड़ते भौंरे और तितलियाँ
नाचते थिरकते मोरऔर मोरनी संग
ताल में तैरते श्वेत बकुल और सारस
अपनी ओर करते आकृष्ट मुझे
समा रंगीन होता उस बगिया का |
रंगबिरंगे परिधान में सजा बचपन
दौड़ लगाता जब हरे भरे मैदान में
तरह तरह की स्वर लहरी गूंजती
अपनी ओर आकृष्ट करतीं मुझे |
मन चाहता कुछ देर बैठूं यहां
जब हाथों में हो कैनवास ,कूची
और विविध रंगों का खजाना
दृश्य को उकेर कर सजालूँ अपने उर में |
कुछ और की चाह नहीं है
ये पल यदि ठहर जाएं
भर लेता अपनी बाहों में
जीवन को सार्थक कर लेता |
चाहर पूरी हो जाती मेरी
फिर तुम्हारी महिमा गाता
मधुर स्वर लय और ताल में
मन खुश हो नाचने लगता |
आशा
17 दिसंबर, 2021
रिश्तों की पहचान
कभी अपना दिल टटोलाना
क्या उससे कभी कोई
गलती हुई ही नहीं
वह कभी
पशेमा
हुआ ही नहीं |
अपने तक ही सीमित रहा
किसी और का दुःख न बाँट सका
प्यार है किस चिड़िया का नाम
खुद उसे पहचान न सका |
सतही रिश्तों से खोखला हुआ
उनकी गहराई तक न पहुँच पाया
उसे किसी का अपनापन न भाया
सतही रिश्तों को समझ दर किनारे किया |
कितने रिश्ते निभाए जा सकते है
यह भी कभी सोचा नहीं
या सभी को सतही समझा
उन्हें खुद से दूर किया |
पर एक बात तो स्पष्ट हुई
रिश्तों के बिना जीवन फीका लगता
बेरंग जीवन होता जाता
खालीपन आ जाता नन्हें से दिल में |
यह अभाव कैसे पट पाता
सोचा का विषय हुआ
फिर से पलट कर देखोगे
तब समझ पाओगे इनकी अहमियत |
रिश्ते हैं जीवन के
अभिन्न अंग जान जाओगे
इनके बिना जीवन अधूरा
पहचान जाओगे |
आशा
16 दिसंबर, 2021
जीवन कैसा हो
हंस कर काटें पल दो पल
जीवन में और रखा क्या है
जिन्दगी की राह भरी है कंटकों से
बिना चुभे रह नहीं सकते |
किसी का नेह भी
लगता है खारा नमक सा
किसी के कटु वचन भी
मीठे लगते शहद से |
है यह कैसी विडम्बना
मेरी समझ से परे है
जीवन हुआ है एक रस
उसमें जहर भरा है |
कभी खुशियों की तमन्ना थी जहां
हुई काफूर वह भी कहीं
बरसों बाद उसके दर्शन हुए
सुकून मिला है मन को |
वृन्दावन में मोहन की बाँसुरी
राधा रानी का नृत्य संगीत
गलियों में दूध दही की महक
पहुँचने लगी है ग्वालवालों तक |
शायद जीवन खुश रंग हो जाए
फिर से उसमें बहार आए
यही चाह है मन की
कुछ और अधिक की चाह नहीं |
आशा