24 दिसंबर, 2021

तुमसे सीखा


                                    तुमसे  सीखा कठिन परिश्रम
                                      दृढ़ निश्चयी होना सीखा 

कितनी भी कठिनाई आए

मार्ग से विचलित न होना सीखा |

कायर सा मुहं छिपाकर

भूमिगत हो जाना न सीखा

किसी की कही बात पर

ध्यान न देना नहीं सीखा |

यही गुण मेरे जीवन के बने आधार

 कभी भी  मात न खाई

ना  कभी कोई कठिनाई आई

मैं सरलता से उससे उभर पाई |

बस एक बात मुझे खली

तब तुम न थे साथ मेरे

मुझे प्रोत्साहित  करने को

 प्रगति में सहायक होने को |

तब भी तुम्हारी  कमीं ने मुझे

जो सहन शक्ति की प्रदान तुमने 

किसी का एहसान न लेना सिखाया

अपने पैरों पर खडी हुई  |

 यही जिन्दगी का फलसफा हुआ

अब भी खड़ी हूँ अडिग सच्चाई पर

 झूट से कौसों दूर रही  हूँ

तुम्हारी सीख को  भूली नहीं हूँ |

आशा  


कोई कठिनाई नहीं


 

किया कुछ और 

चाह थी किसी और की 
किया तुम्हारा अनुकरण 
फिर भी कोई कठिनाई न हुई |
जीवन में आते व्यवधानों से सीखा
उन का मनन किया
गलत विचार को नकारा
सही पर ही ध्यान दिया |
आज जहां हूँ संतुष्ट हूँ
कल कठिन परीक्षा से गुज़री
अब उसे याद क्यूँ करूं
किस लिए करूं |
लोगों ने मेरा भाग्य सराहा
मुझे प्रोत्साहित किया
है अनुग्रह तुम्हारा भुलाना चाहा
पर मैंने ऐसा न किया |
हूँ तुम्हारी अनुगामीन
तुम्हारा बरद हस्त है
जब सर पर मेरे
मुझे चिंता नहीं है |
आशा


21 दिसंबर, 2021

अधूरे जीवन में परिवर्तन


 

जीवन में आती धूप छाँव

सुबह और शाम

 कोई परिवर्तन न देखा

यही क्रम जारी रहा जीवन भर |

 आते व्यवधानों से जिन्दगी में 

  चलना सीखा काँटों से बच कर 

ऊबड़ खाबड़ कन्टकीर्ण सड़क पर  

जिसे पार करना सरल न था |

मुझे  ठोकर लगी जब 

उसी ने  सहारा दिया 

 गिरने पर सम्हाला

 बड़े जतन  से उठाया |

 मुझे गंतव्य तक पहुंचाया

कोई तो है मददगार मेरा

 वही मेरा हमराज हुआ 

बोझ मन का कम हुआ |

जब वक्त पर आ खड़ा  हुआ 

 बैसाखी बन कर सहारा दिया 

मुझमें साहस का संचार हुआ 

खुद पर विश्वास जाग्रत हुआ |

मेरे अधूरे जीवन में बहार आई  

उसकी जरासी सहायता से 

 जिन्दगी मेरी सवर गई 

उसके हाथ बढाने से |

अधूरे जीवन में परिवर्तन आया  

सुबह और शाम में

धुप और छाँव में स्पष्ट 

अंतर नजर आया |  

आशा

20 दिसंबर, 2021

फूल गुलाब का

                                                                                                                                  

                                         


                                         खिला गुलाब                                              

बाग़ में  डाल पर 

सोचता रहा 

उसके जीवन की 

 क्या कहती कहानी 

कभी कली रही थी 

पत्तों में छुपी 

पत्तियों  के कक्ष से 

झांकती कली 

खिली पंखुड़ी सारी 

फूल खिला है 

हुआ  लाल गुलाब 

वह अकेला  नहीं 

झूलता रहा

रक्षक रहे  पास 

बचाते रहे 

उसको  बैरियों से 

तितलियों की 

भौरों की छेड़ छाड़

उसे  भाती है 

प्यार दुलार उनका 

स्वीकार किया 

वायु बेग सहना 

भी सीख लिया 

 उससे बचने की 

कोशिश न की 

विरोध की क्षमता 

नहीं  है अब 

देख लिया  जीवन 

मन मुदित

हुआ जीवन पूर्ण 

प्रभु के  चरण में 

खुद को वहां    

  अर्पित कर दिया  |  

आशा 



19 दिसंबर, 2021

आत्मकथा पुष्प की




 दिन डाली पर झूल बिताया 

रात भर सोया चैन से 

सुबह  ओस से नहाया 

हुआ मुग्ध  अपने रूप रंग पर|

हुआ  जब समय डाल से बिछुड़ने का 

माली ने सजाया  सवारा

  मेरे श्वेत लाल  पुष्प गुच्छों को 

प्यार से दुलराया  फिर विदा किया |

अब मिला स्थान मुझे 

   गुलदस्ते के एक कौने में  

जो  गया एक हाथ से दूसरे  में  

पर मुझे सराहना कोई न भूला 

   महिमाँ  मंडन खूब  हुआ मेरा 

गर्व   हुआ अपने आप पर  |

कड़ी धुप सहन की फिर भी न मुरझाया 

किया सूर्य किरणों  से मुकाबला 

बचने में  खुद को सक्षम पाया 

मेरा मन बल्लियों उछला |

मैंने  माली का  धन्यवाद किया 

जिसने प्यार से पाला पोसा 

मुझे सक्षम बनाया

 अपने पैरों पर खड़ा किया |

 मुझे यहीं जीने का

 सच्चा  आनन्द मिला 

अपनी क्षमता जान सका   

खुद को पहचान सका |

जब  देखा शहीदों की अर्थी पर  सजा खुद को 

मन में   देश भक्ति जाग्रत हुई   

मेरा सही उपयोग देख  

मुझे  फिर से  बहुत  गर्व   हुआ |

आशा 






18 दिसंबर, 2021

महिमा अधूरी रह जाती


                                  प्रभु की  महिमा अधूरी रह जाती 

बिना चुने हुए अल्फाजों के

गीत तो गाए जाते पर

 बिना धुन और लय ताल के |

सतही यह गीत संगीत ताल

दिल से जब शब्द न निकले

सभी दिखावे से लगते

जब मन को न छू पाते |

खिलती कलियों का नेह निमंत्रण

 फिर भी आकर्षित करता

फूलों का रंग अपनी ओर खीचना चाहता

और मैं खिचता चला जाता वहां |

मुझे आभास ही  नहीं होता कब

 सुगंध के सहारे मैं पहुंचता वहां 

 इस दृश्य का आनंद लेने  |

फुलों पर उड़ते भौंरे और तितलियाँ

नाचते थिरकते  मोरऔर मोरनी संग 

ताल में तैरते श्वेत बकुल और सारस  

अपनी ओर करते आकृष्ट मुझे 

समा रंगीन होता उस बगिया का |

रंगबिरंगे परिधान में सजा बचपन

दौड़ लगाता जब हरे भरे मैदान में  

तरह तरह की स्वर लहरी गूंजती

अपनी ओर आकृष्ट करतीं मुझे |

 मन चाहता कुछ देर  बैठूं यहां   

जब हाथों में हो कैनवास ,कूची 

 और विविध रंगों का खजाना

दृश्य को उकेर कर सजालूँ अपने उर में |

कुछ और की चाह नहीं है  

ये पल यदि ठहर  जाएं

भर लेता  अपनी बाहों में

जीवन को सार्थक कर लेता |

चाहर पूरी  हो जाती मेरी 

फिर तुम्हारी महिमा गाता

मधुर स्वर लय  और  ताल में

मन खुश हो नाचने लगता | 

आशा 

17 दिसंबर, 2021

रिश्तों की पहचान



कभी अपना दिल टटोलाना

क्या उससे कभी कोई

गलती हुई ही नहीं

 वह कभी पशेमा हुआ ही नहीं |

 अपने तक ही सीमित रहा

किसी और का दुःख न बाँट सका

प्यार है किस चिड़िया का नाम

खुद उसे पहचान न सका |

सतही रिश्तों से खोखला हुआ

उनकी गहराई तक न पहुँच पाया

उसे किसी का अपनापन न भाया

सतही रिश्तों को समझ दर किनारे किया |

कितने रिश्ते निभाए जा सकते है

यह भी कभी सोचा नहीं

या सभी को सतही समझा

उन्हें खुद से दूर किया |

पर एक बात तो स्पष्ट हुई

रिश्तों के बिना जीवन फीका लगता

बेरंग जीवन होता जाता

खालीपन आ जाता नन्हें से दिल में |

यह अभाव कैसे पट पाता

सोचा का विषय हुआ

फिर से पलट कर देखोगे

तब समझ पाओगे इनकी अहमियत |

रिश्ते हैं जीवन के

अभिन्न अंग जान जाओगे

इनके बिना जीवन अधूरा

पहचान जाओगे |

आशा