26 दिसंबर, 2021
हूँ कवी कोई शायर नहीं
25 दिसंबर, 2021
बड़ा दिन आया
बड़े इन्तजार के बाद
चिलमन से झांकते छिपते छिपाते
कोरोना के उपद्रव से
भयभीत रहा पहले |
कहीं यह त्यौहार भी ना फीका हो जाए
फिर से हुआ यदि लौक डाउन
कहीं सान्ता क्लाज न
फँस जाए
आज के झमेलों में |
हमने बहुत सी तैयारियां
की है
उसके स्वागत के लिए
हैं बड़े उत्साहित कब वह आए
हमें मन चाहे
पुरुस्कार दे पाए |
जो खुशी उससे हमें मिलती
बयान करने को शब्द नहीं मिलते
उनकी गरिमा कुछ और
ही होती
तभी होती इतनी बेकरारी
इस के आने की राह देखने की |
आशा
24 दिसंबर, 2021
तुमसे सीखा
तुमसे सीखा कठिन परिश्रम
कितनी भी कठिनाई आए
मार्ग से विचलित न होना सीखा |
कायर सा मुहं छिपाकर
भूमिगत हो जाना न
सीखा
किसी की कही बात पर
ध्यान न देना नहीं
सीखा |
यही गुण मेरे जीवन के बने आधार
कभी भी
मात न खाई
ना कभी कोई कठिनाई आई
मैं सरलता से उससे उभर पाई |
बस एक बात मुझे खली
तब तुम न थे साथ
मेरे
मुझे
प्रोत्साहित करने को
प्रगति में सहायक होने को |
तब भी तुम्हारी कमीं ने मुझे
जो सहन शक्ति की प्रदान तुमने
किसी का एहसान न लेना सिखाया
अपने पैरों पर खडी हुई |
यही जिन्दगी का फलसफा हुआ
अब भी खड़ी हूँ अडिग सच्चाई पर
झूट से कौसों दूर रही हूँ
तुम्हारी सीख को भूली नहीं हूँ |
आशा
कोई कठिनाई नहीं
किया कुछ और
21 दिसंबर, 2021
अधूरे जीवन में परिवर्तन
जीवन में आती धूप छाँव
सुबह और शाम
कोई परिवर्तन न देखा
यही क्रम जारी रहा जीवन भर |
आते व्यवधानों से जिन्दगी में
चलना सीखा काँटों से बच कर
ऊबड़ खाबड़ कन्टकीर्ण सड़क पर
जिसे पार करना सरल न था |
मुझे ठोकर लगी जब
उसी ने सहारा दिया
गिरने पर सम्हाला
बड़े जतन से उठाया |
मुझे गंतव्य तक पहुंचाया
कोई तो है मददगार मेरा
वही मेरा हमराज हुआ
बोझ मन का कम हुआ |
जब वक्त पर आ खड़ा हुआ
बैसाखी बन कर सहारा दिया
मुझमें साहस का संचार हुआ
खुद पर विश्वास जाग्रत हुआ |
मेरे अधूरे जीवन में बहार आई
उसकी जरासी सहायता से
जिन्दगी मेरी सवर गई
उसके हाथ बढाने से |
अधूरे जीवन में परिवर्तन आया
सुबह और शाम में
धुप और छाँव में स्पष्ट
अंतर नजर आया |
आशा
20 दिसंबर, 2021
फूल गुलाब का
खिला गुलाब
बाग़ में डाल पर
सोचता रहा
उसके जीवन की
क्या कहती कहानी
कभी कली रही थी
पत्तों में छुपी
पत्तियों के कक्ष से
झांकती कली
खिली पंखुड़ी सारी
फूल खिला है
हुआ लाल गुलाब
वह अकेला नहीं
झूलता रहा
रक्षक रहे पास
बचाते रहे
उसको बैरियों से
तितलियों की
भौरों की छेड़ छाड़
उसे भाती है
प्यार दुलार उनका
स्वीकार किया
वायु बेग सहना
भी सीख लिया
उससे बचने की
कोशिश न की
विरोध की क्षमता
नहीं है अब
देख लिया जीवन
मन मुदित
हुआ जीवन पूर्ण
प्रभु के चरण में
खुद को वहां
अर्पित कर दिया |
आशा
19 दिसंबर, 2021
आत्मकथा पुष्प की
रात भर सोया चैन से
सुबह ओस से नहाया
हुआ मुग्ध अपने रूप रंग पर|
हुआ जब समय डाल से बिछुड़ने का
माली ने सजाया सवारा
मेरे श्वेत लाल पुष्प गुच्छों को
प्यार से दुलराया फिर विदा किया |
अब मिला स्थान मुझे
गुलदस्ते के एक कौने में
जो गया एक हाथ से दूसरे में
पर मुझे सराहना कोई न भूला
महिमाँ मंडन खूब हुआ मेरा
गर्व हुआ अपने आप पर |
कड़ी धुप सहन की फिर भी न मुरझाया
किया सूर्य किरणों से मुकाबला
बचने में खुद को सक्षम पाया
मेरा मन बल्लियों उछला |
मैंने माली का धन्यवाद किया
जिसने प्यार से पाला पोसा
मुझे सक्षम बनाया
अपने पैरों पर खड़ा किया |
मुझे यहीं जीने का
सच्चा आनन्द मिला
अपनी क्षमता जान सका
खुद को पहचान सका |
जब देखा शहीदों की अर्थी पर सजा खुद को
मन में देश भक्ति जाग्रत हुई
मेरा सही उपयोग देख
मुझे फिर से बहुत गर्व हुआ |
आशा