वीणा वादिनी
वर दे ध्यान तेरा
कमलासनी
सिंह वाहनी
ऊंचा भवन तेरा
कैसे पहुंचूं
मैं मीरा नहीं
केवल आराधना
उद्देश्य मेरा
चाहिए मुझे
तुम्हारा उपकार
अनजाने में
हे महावीर
की अरदास तेरी
करो सफल
भवसागर
पार लगाते चलो
मस्तक झुके
परमात्मा का
सर पे हाथ होना
सौभाग्य मेरा
मुरली वाले
मोहा तुमने मुझे
मैं वारी जाऊं
भोले भंडारी
है त्रिशूल हाथ में
शीश पे गंगा
आशा करती
भक्ति में डूबी रही
सुख तो मिले
आशा