08 फ़रवरी, 2022

कुछ हाइकु


                                           किया किसी से 

कभी भी  बैर नहीं 

दी है  ममता  


सारी दुनिया 

 सोती थी बेखबर   

 तुम  अचेत 


जल नेत्रों का 

 बहता सरिता सा  

मन  भिगोया  


मन बेकल 

हुआ बड़ा  उदास 

दुखद लगा 


शांति आत्मा की 

सरल नहीं पाना 

इस जग में  


गीत संगीत 

कानों में गूँजता  है 

वर्षों बरस 


तुम सा स्नेही 

ममता वाला वहां  

 कोई नहीं  है 


सरल नहीं 

है तुम जैसा होना 

की थी तपस्या 


स्वर सम्राज्ञी 

संगीत की  पारखी  

तुम ही हो 


तुम लता जी 

  हो मधुर  भाषिणी  

 विशेष यही 


आशा 


07 फ़रवरी, 2022

लता युग की समाप्ति


 

सब तुम्हें याद करेंगे   

जब भी बाग से गुजरेंगे

गीतों की एक एक लाइन से

 दूरी न सह पाएंगे प्यार से गुनगुनाएंगे |

तुम्हारा गीत संगीत और सुर तरंग  

मन में घर करते ऐसे

 कभी भुला न पाते

उन में खो कर रह जाते |

मैं प्रतिदिन वहां जाने का

तुमसे मिलने का मन बनाती

 कोई अवसर न छोड़ती

 प्रतीक्षारत रहती तुसे मिलने को |

कब भोर हो और मैं वहां पहुंचूं

जहां तुमसे हो साक्षात्कार

 मन को अपूर्व सुकून मिले तुमसे मिल

है विशेषता तुम्हारी सादगी  भरी इस उम्र की|

 तुम्हारे संगीत की महक का आनंद लूं

मन में बसालूँ सरस्वती के इस अवतार  को

तुम्हें एहसास  न होगा है कितना लगाव रहा

 संगीत प्रेमियों को तुम्हारे मीठे  स्वरों से |

जब तुम्हारे  गीतों से दूर होती हूँ

 मन उदास रहता है 

मन नहीं लगता

जब  दूर होती हूँ उनसे |

बुरा हाल हुआ है कलम रुक गई है

तुम्हारे बिछुड़ने के बाद  शब्द नहीं मिलते

मन की बात लिखने को

जब से तुम इस दुनिया से रूठीं हो |

 नम नेत्रों से जब दी विदाई

तुम हुई विलीन पञ्च तत्व में  

नहीं रहा सरस्वती का

यह अवतार हमारे साथ |

अनमोल रत्न को  खो दिया    

अतुलनीय  क्षति हुई देश को

 स्वर कोकिला से हो दूर     

हुआ समाप्त संगीत का लता युग |

आशा 

06 फ़रवरी, 2022

मन की बेचैनी

 



मन हुआ बेकल बेचैन

 कोई कार्य सम्पन्न न कर पाया

किसी कार्य से न जुड़ कर

 खुद का आकलन न कर पाया  |

 आस्था की ओढ़ी चादर

बहने लगा  भक्ति की नदिया में

मन को व्यस्त रखने को  

बेचैनी से बचने को |

सरिता की गति सी बहा बहता गया   

तेज बहाव की गति के तालमेल के साथ

भक्ति की नैया में हो कर  सवार

 किनारा कब आएगा आज तक  पता नहीं |

जब उम्र का यह पड़ाव भी पार किया

मन में हुई उथलपुथल बेहद

जाने कब बुलावा आ जाए

हलचल है दिल में कुछ भी निश्चित नहीं |

05 फ़रवरी, 2022

फूल और कांटे


 

फूल और कांटे एक साथ रहते

कभी साथ न छोड़ते

भ्रमर तितलियाँ गातीं गुनगुनातीं

पास आ मौसम का आनंद उठातीं |

 जब भी पुष्पों पर आता संकट

कंटक उनकी करते रक्षा

खरोंच तक न आने देते  

सदा साथ बने रहते |

होते इतने होशियार कंटक

अपना कर्तव्य निभाने में  

कोई फूल तक न पहुँच पाता

उनसे बच कर जा न पाता |

जो प्यार पुष्पों से करता

कैसे भूलता संरक्षक काँटों को

कितना बचता कैसे बचता 

उनसे  दूर न रह पाता |

स्नेह तनिक भी कम न होता  

वह  धन्यवाद देना न भूलता

 कंटकों को पूरी क्षमता से 

अपना कर्तव्य निभाने के लिए |

 आशा

04 फ़रवरी, 2022

रैना बैरन हुई

 



रैना बैरन हुई उसकी 
पलकें न झपकीं एक पल भी
इन्तजार किसी का करते  
रात्रि कब बीती मालूम नहीं  |
भोर हुआ जब मुर्गा बोला
पक्षियों ने बसेरा छोड़ा
चल दिए भोजन की तलाश में
सर पर खुले आसमान में |  
धूप खिलते ही तंद्रा टूटी उसकी  
जल्दी किया प्रातःवंदन
फिर कियी जलपान तैयार हुई
  चल दी अपने कार्य स्थल की ओर|

किसी कारण जब मन होता विचलित  

उसका असामान्य  व्यवहार देख
 सब उत्सुक रहते कारण जानने  को 
किसे बताती क्यों निदिया बैरन हुई |
उसे समझने में देर न लगती
क्या कारण रहता रात्रि जागरण का  
तुम्हारी राह देखना मंहगा पड़ता 
बहुत लज्जा आती पर क्या करती |
बहाने भी कितने बनाती
भारी पलकें सब बतातीं   
घुमा फिरा जब बातें होतीं
सच्चाई सामने आ ही जाती |
फिर भी पूरी बात बता ना पाती
वह कहाँ उलझी रही किन बातों में
मन कैसे उलझा उन सब में
हुई बैरन रात यह कैसे बताती |

आशा 

01 फ़रवरी, 2022

दोपहर की धूप और वटवृक्ष की छाया

 


मैं दोपहर की धूप धनी 

तुम घनेरी छाया वटवृक्ष की

असंख्य जीव लेते आनंद

तुम्हारी छाया में रुक कर |

मुझ से सब दूर भागते

कोई न आता पास मेरे

जल जाने के भय से

यही दुःख सालता रहता मुझे |

विचार सोचने को करता बाध्य   

 सब मेरे ही साथ क्यूँ किस लिए?

 मेरा किसी से कोई वैर नहीं है

 समय पर सब मेरा भी उपयोग करते 

अब तो जानते हुए भी दुःख न होता

कि हूँ तपती धूप दोपहर की

जिससे जलता तन सब का

सभी धन्यवाद दिए बिना ही चले देते|

मतलब की है दुनिया सारी

किसी से क्या गिला शिकवा करूं

मतलब होता तो रिश्ते बना लेते

पर पलट कर याद तक नहीं करते |

 यही अच्छाई तुम्हें सब से जुदा करती

 किसी से कोई अपेक्षा नहीं तुम्हें  

आया जो पास तुम्हारे

उसे भी समेटा बाहों में तुमने |

शीतल करती तन छांव तुम्हारी 

सब देखते आशा से तुम को

 छाँव की  उन्हें  अपेक्षा रहती    

वही जीवन में रस भरती |

आशा

31 जनवरी, 2022

उलझन मन की


 

उलझन होती जब मन में

कुछ भी नहीं होता सोच विचार में 

 सोचते ही बनी बात बिगड़ जाती है 

 उलझन और बढ़ती जाती |

जब भी मंथन किया मन का 

 जानना चाहा इतनी बेचैनी क्यूँ ?

 उत्तर जान ना पाई निराशा हुई 

मन और बोझिल हो गया |

 अनर्गल बातों ने लिया विकराल रूप  

किया बेचैन मन को नींद का टोटा हुआ

 आई न नींद स्वप्न सुहाने भी खो गए   

किये नैन बंद कब भोर हुई याद नहीं |

चिड़ियाँ चहकीं प्रातःकिया वंदन 

भुवन भास्कर ने खुश हो स्वीकारा  

 रश्मियाँ आईं खिडकी से झांकती

अनजानी व्यथा ने घर किया मन में |

डरती हूँ अस्थिर है मन चंचल 

आगे क्या होगा इसके विचलन से

क्या वह स्थान मुझे मिल पाएगा ?

जिसकी अपेक्षा रही मुझे बचपन से |

मुझे कौन बचाएगा इस उलझन से

 चित्र न बना पाई उसका कैनवास पे

सातों रंग न भर पाई जीवन के  

जितनी की कोशिश व्यर्थ हुई |

असफलता हाथ लगी

 कुछ न कर पाई  

मन संतप्त हो खोने लगा अस्तित्व अपना 

डूबी स्वयं अपने  आप में |

कहाँ भूल हुई मुझ से

 जिसकी याद नहीं  

 उलझनें ही उलझनें हैं 

जिनसे मुक्ति नहीं |

  आशा