
वही उसके शब्दों में झलकती थी
तारीफों की कमीं न थी तब
शब्दों की कमी हो जाती थी
उसके तारीफों के कशीदे पढ़ते |
पर अब कहा जाता है
तुम बच्ची नहीं हो जब मंह खोलो
सोच समझ कर बोला करो
अपनी हद न छोड़ा करो |
आशा
वही उसके शब्दों में झलकती थी
तारीफों की कमीं न थी तब
शब्दों की कमी हो जाती थी
उसके तारीफों के कशीदे पढ़ते |
पर अब कहा जाता है
तुम बच्ची नहीं हो जब मंह खोलो
सोच समझ कर बोला करो
अपनी हद न छोड़ा करो |
आशा
बहुरंगी सुन्दर सी
यहाँ सा स्वर्ग कहीं और
कभी देखा नहीं |
वैज्ञानिक जीते कल्पना में
नए प्रयोग करते
हल्का सा परिवर्तन
जब भी देखते अन्तरिक्ष में
महिमा मंडन उसका करते |
जब तक लोहा गर्म होता
चोट हतौड़े की सहता
उसके ठंडा होने पर
उसका अस्तित्व है कहीं भूल जाते |
आज तक इस धरती पर
कोई नया प्राणी
आया नहीं अजनवी सा
फिर कैसे कल्पना हो साकार |
किसी अन्य गृह पर
जीवन का होगा या
जीव रहते होंगे पृथ्वी की तरह
लगती है केवल कल्पना |
कल्पना की उड़ान भी
अच्छी लगती है
पर कुछ तो तथ्य हो
कभी नेत्रों को
झलक मिली हो इनकी |
पृथ्वी सा स्वर्ग
कभी न मिला
आज तक वहां
सारी कल्पना रहती
कुछ दिन चर्चा में |
फिर कोई नाम तक
नहीं लेता उनका
वे विस्मृत हो जातीं
यहीं की गलियों में |
मेरी एक ही बात
समझ में आई है
धरती से रमणीय
कोई गृह नहीं आज तक |
आशा
अल सुबह घूमने का मन बनाया
मखमली हरी दूब पर कदम जमाया
नर्म सा एहसास हुआ
पूरी लॉन डूबी थी शबनम मैं |
पत्तियों पर नन्हीं बूंदे शबनम की
नाचती थिरकती खेलना चाहती
आपस में
धीरे धीरे नभ में सूर्योदय
की आहट से
रश्मियाँ झांकती पत्तियों
के बीच से |
शबनम उनसे भी उलाझा करती दुलार से
यह दृश्य भी मनोरम होता
निगाहें नहीं हट पातीं उस
नज़ारे से
अनुपम प्राकृतिक दृश्य समा जाते
मन के कैनवास में |
मोर का नृत्य कोयल की कुहू कुहू
चार चाँद लगाती उसमें
मोर नाचता छमाछम
नयनों से
अश्रु झरते निरंतर उसके
यही सारे नज़ारे बांधे रखते मुझे
वहां पर
घर लौटने का मन न होता
वह
कहता तनिक ठहर जाओ |
हरश्रंगार के वृक्ष के नीचे
बिछी श्वेत चादर पुष्पों की
कहती तनिक ठहरो
यहाँ की
सुगंध का भी तो आनंद लो
यह स्वर्णिम अवसर भी न छोडो
कुछ और देर ठहरो
महकती मोगरे की क्यारी भी
रुकने को कहती |
बढ़ते कदम ठहर जाते
घर पर कार्यों का अम्बार
नजर आता
मन को नियंत्रित कर
कल बापिस आने का वादा करती
जल्दी जल्दी कदम बढाती
आशा
ईश्वर ने यह रूप दिया हैं
तुम्हें
तुमने कुछ चाहा नहीं
न की अपेक्षा कोई उससे
तुम सरल चित्त हो तभी |
कोमल भावों से भरा
है मन तुम्हार
जब भी की प्रार्थना ईश्वर से
यही मांगा परमात्मा से
सब मानव रहे सदा सुख से |
हो मानव जाति का
कल्याण सदा
भव सागर हो पार
सरलता से
छल छिद्र निकट ना आवें
मोह माया से रहें दूर |
सदा रहें व्यस्त सदकर्मों में
मन कर्म बचन में हो शुद्धता
सभी कार्य सदइच्छा से हों
रहें दूर बुराइयों से |
यही नियामत मिली
तुमको इस जन्म में
पूर्व जन्म में किये सदकर्मों का फल
यहीं दिखाई देता है |
जिसकी छाया इस जन्म में
दिखाई दी है|
इसी सरलता से तुमने जीता
सारी कठिनाइयों को
प्रभु के सदा करीब रहे
कभी दूर न हो पाए
उसके वरद हस्त से
उसके चरणों के स्पर्श से |
तुमने जीत लिया
दुनियादारी के प्रपंचों को |
आशा
मौसम ने ली अंगड़ाई
मन हर्षित हुआ क्यूँ
कारण न जान पाई |
सर्द सा मौसम है
वर्षा आने को है
व्योम में बदरा छाए है
जिनमें ओले भरे पड़े हैं |
अचानक बादल आपस में टकराए
बिजली चमकी बादल गरजे
तेज हवा का झोंका आया
टप टप ओले टपके
बच्चे उन्हें खाने को दौड़े |
ओले आए कहां से ?
प्रश्न मुंह बाए खड़ा है
बेमौसम बरसात हुई है
शायद यही मावठा है |
आशा
मैंने क्या सोचा
क्यों किसी को दिल दिया
प्यार किस चिड़िया को कहा
अब तक अर्थ न समझा |
|दूर के ढोल सुहाने होते
कहावत सही नजर आई
जब उस प्यार ने
सर पर चढ़ घंटी बजाई |
जितने भी अनुभव हुए
मन को दुखी करते गए
कोई मिठास नहीं थी
उन शब्दों की टोकरी में |
मैंने तो फूल चुने थे
सुन्दर और सुगन्धित
पुष्प गुच्छ बनाने को
कैसे बदलाव आया अनोखा |
न गंध है न सौन्दर्य
उस ढाई अक्षर में
पर फिर भी सारा जग
बहक रहा है प्यार के चक्कर
में |
जीवन में होती इसकी भी
जररूरत
भोजन व् जल के जैसी
बिन पानी भोजन के जीना
मुश्किल हुआ जाता है |
प्यार के दर्शन बिना प्राण
अधर में लटक जाता है
यही प्रश्न मन को बेचैन
किये रहते
किसे दूं प्राथमिकता |
भावनाओं को या यथार्थ को
अब तक निश्चित नहीं कर पाई
सभी के ख्याल जाने
पर फिर भी निष्कार्ष नही
निकला
आशा
मैंने क्या सोचा
क्यों किसी को दिल दिया?
प्यार किस चिड़िया को कहा
अब तक अर्थ न समझा |
दूर के ढोल सुहाने लगते
कहावत सही नजर आई
जब उस के प्यार ने
सर पर चढ़ घंटी बजाई |
जितने भी अनुभव हुए
मन को दुखी करते गए
कोई मिठास नहीं थी
उन शब्दों की टोकरी में |
मैंने तो फूल चुने थे
सुन्दर और सुगन्धित
पुष्प गुच्छ बनाने को
कैसे बदलाव आया अनोखा |
न गंध है न सौन्दर्य
उस ढाई अक्षर में
पर फिर भी सारा जग बहका
प्यार के चक्कर में |
जीवन में होती इसकी भी
जररूरत
भोजन जल मकान जैसी
बिन पानी .भोजन ,सर पर छत के बिना
जीना मुश्किल हुआ जाता है
कैसे क्या करें रोएँ या हंसे
प्यार के दर्शन बिना प्राण
अधर में लटक जाता है |
यही प्रश्न मन को बेचैन
किये रहते
किसे दूं प्राथमिकता
भावनाओं को या यथार्थ को
अब तक निश्चित नहीं कर पाई|
सभी के ख्याल जाने
पर फिर भी निष्कार्ष नही
निकला
क्या है जरूरी खुशहाल जिन्दगी के लिए |
आशा