26 अप्रैल, 2022

कीमत मिट्टी की



कण कण मिट्टी का है बड़ा उपयोगी

किसी ने कभी ध्यान ही नहीं दिया

हरियाली ने किसी का ध्यान आकृष्ट किया

तभी ख्याल आया इस का |

 मिट्टी हर पल ही उपयोगी होती

चाहे जिस रूप में भी हो

 बहुआयामी होते इसके करतब

जहां उपयोग की जाती

 अपना महत्व दर्शाती |  

पूजा के लिए दीपक बनाए जाते

स्नेह से भर दीप जलाए जाते 

वे जगमगाते  घर को रौशन करते

त्यौहार नहीं मन पाते इनके बिना |

 मटका ग्रीष्म ऋतु में जल 

 भरने के काम आता

कभी अनाज भी भरा जाता इसमें 

जाने कितनी आत्माएं तृप्त करता

जब उन्हें जल प्रदान करता

मिट्टी महिमा के बखान

 जितने भी करो कम है|

मानव जीवन  है आश्रित उस पर

खेती के बिना अनाज कहां से उपजता

जब उर्वरा मिट्टी होती

तभी यह संभव हो पाता |

पञ्च तत्व से बना मानव का  

जीवन भर अपने कार्यों में व्यस्त  रहता

अंत समय आते ही

फिर मिट्टी में मिल जाता|

मिट्टी में जन्मा खेला कूदा बड़ा हुआ

फिर नियति में जो लिखा था 

उसे पा संतुष्ट हुआ

यही विधि का विधान रहा |

 मिट्टी तो मिट्टी है

गुण इसके इतने हैं अधिक   

हर पग पर मानव के साथ होती है

पर्यावरण के संरक्षण में  |

आशा

  

25 अप्रैल, 2022

ख़ारा जल समुन्दर का


 

खारा जल समुन्दर का इतना

रहा बटोही प्यासा

प्यासा आया गया भी प्यासा ही 

मन में मलाल बढाया |

सोचा यूँ ही समय बर्बाद किया

जल की एक बूँद का भी यदि

उपयोग कर लिया होता

तनिक भी दुःख न होता |

पर फिर भी सोचा

क्या लाभ इतने खारे जल का

फिर घिरा अनगिनत सवालों से

उनके उत्तरों से |

देखा कई सवाल अभी भी थे अनुत्तरित

पर मिले उत्तरों से जो संतुष्टि मिली

मेरी क्षुधा  तृप्त हो पाई

मुझे अपनी जल्दबाजी पर हँसी आई |

किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में

जल्दबाजी किस लिए

यदि मन में धैर्य न हो

किसी को छेड़ना नहीं चाहिए |

आशा

संस्कार तुम्हारे

 


समय कुसमय को न देखा

बिना सोचे अनर्गल बोलते रहे

अरे यह क्या हुआ ?

क्या किसी ने न बरजा |

क्या हो समकक्ष सभी के

कोई बड़े छोटे का ख्याल नहीं

उम्र का तनिक भी लिहाज नहीं

भी ग्लानि  भी नहीं होती |

क्या आत्मा भी जड़ हुई तुम्हारी

या किसी गुरू की शिक्षा भी न मिली

या संस्कारों में कमीं रह गई

किसी ने न रोका टोका |

तुमने मन को दुःख पहुंचाया

मुझे यह कहने में  

असंतोष भी बहुत हुआ

लगा क्या तुम मेरे ही बेटे हो |

कल्पना न थी तुम

संस्कारों को  भूल जाओगे

आधुनिकता के साथ अपने

 चलन को भी तिलांजलि दोगे|

मुझे  बहुत शर्म आई

तुम दूर हुए कैसे उनसे

अपने दिए संस्कारों को न भूल पाई

कहाँ रही कमी आज तक न सोच पाई |

आशा  

 

24 अप्रैल, 2022

 

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इजहार -
इजहारेदिल किया उसने

बिना किसी संकोच के
प्रतिउत्तर में वह हारी बेचारी

कहा गया मुह फट उसे |

मन को किसी के आगे खोलना

अपनी बात का इजहार करना

कोई गुनाह है तब हाँ उसने गुनाह किया

पहले किसी ने बरजा नहीं उसे |

तब उसे स्पष्टवक्ता कहा जाता था

मन में जो सोचती थी

वही उसके शब्दों में झलकती थी

तारीफों की कमीं न थी तब

शब्दों की कमी हो जाती थी

उसके तारीफों के कशीदे पढ़ते |

पर अब कहा जाता है

तुम बच्ची नहीं हो जब मंह खोलो

सोच समझ कर बोला करो

अपनी हद न छोड़ा करो |

आशा

आशा

23 अप्रैल, 2022

पृथ्वी


                                                                    पृथ्वी  तो पृथ्वी है 

बहुरंगी सुन्दर सी 

 यहाँ सा स्वर्ग कहीं और  

कभी देखा नहीं |

 वैज्ञानिक जीते कल्पना में 

नए प्रयोग करते 

हल्का सा परिवर्तन 

जब भी देखते अन्तरिक्ष  में 

 महिमा मंडन उसका करते |

जब तक लोहा गर्म होता 

चोट हतौड़े की सहता 

उसके  ठंडा होने पर 

उसका अस्तित्व  है कहीं भूल जाते |

आज तक इस धरती पर 

कोई नया प्राणी  

आया नहीं अजनवी सा 

फिर कैसे कल्पना हो साकार |

 किसी  अन्य गृह पर 

जीवन का  होगा या 

जीव  रहते होंगे  पृथ्वी  की तरह 

लगती है केवल कल्पना |

कल्पना की उड़ान भी 

अच्छी लगती है 

पर कुछ तो तथ्य हो 

कभी नेत्रों को 

झलक मिली हो इनकी |

पृथ्वी सा स्वर्ग 

कभी न मिला 

आज तक वहां

  सारी कल्पना रहती 

कुछ दिन चर्चा में |

फिर कोई नाम तक 

  नहीं लेता उनका 

वे विस्मृत हो जातीं 

यहीं की गलियों में |

मेरी  एक ही बात

 समझ में आई है 

धरती से रमणीय

कोई  गृह नहीं आज तक |

आशा 



22 अप्रैल, 2022

शबनम


 



अल सुबह घूमने का मन बनाया

मखमली हरी दूब पर कदम जमाया

नर्म सा एहसास हुआ

पूरी  लॉन  डूबी थी शबनम मैं |

 पत्तियों पर नन्हीं बूंदे शबनम की

नाचती थिरकती खेलना चाहती आपस में

धीरे धीरे नभ में सूर्योदय की आहट से

रश्मियाँ झांकती पत्तियों के बीच से |

शबनम उनसे  भी उलाझा करती दुलार से

यह दृश्य भी मनोरम होता

निगाहें नहीं हट पातीं उस नज़ारे से

अनुपम प्राकृतिक दृश्य समा जाते

 मन के कैनवास में |

मोर का नृत्य कोयल की कुहू कुहू 

चार चाँद लगाती उसमें

मोर नाचता छमाछम

 नयनों से अश्रु झरते निरंतर उसके

यही सारे नज़ारे बांधे रखते मुझे वहां पर

घर लौटने का मन न होता 

वह कहता तनिक ठहर जाओ |

हरश्रंगार के वृक्ष के नीचे 

बिछी श्वेत चादर पुष्पों की

कहती तनिक ठहरो 

यहाँ की सुगंध का भी तो आनंद लो

यह स्वर्णिम  अवसर भी न छोडो

 कुछ और देर ठहरो

महकती मोगरे की क्यारी भी

रुकने को कहती |

बढ़ते कदम ठहर जाते

 घर पर कार्यों का अम्बार नजर आता

मन को नियंत्रित कर 

कल बापिस आने का वादा करती

जल्दी जल्दी कदम बढाती


घर पहुँच कर ही सांस लेती |

आशा 

21 अप्रैल, 2022

नियामत बक्शी प्रभु ने


 



ईश्वर ने यह रूप  दिया हैं तुम्हें 

तुमने कुछ चाहा नहीं

 न की अपेक्षा कोई उससे

तुम सरल चित्त हो तभी |

 कोमल भावों से भरा

 है मन तुम्हार 

 जब भी की प्रार्थना ईश्वर से

 यही मांगा परमात्मा से

सब मानव रहे सदा सुख से |

हो मानव जाति का

 कल्याण सदा  

भव सागर हो पार

 सरलता से

छल छिद्र निकट ना आवें

मोह माया से रहें दूर |

सदा रहें व्यस्त सदकर्मों में  

मन कर्म  बचन में हो शुद्धता

सभी कार्य सदइच्छा से हों

रहें दूर बुराइयों से |

यही नियामत मिली 

तुमको इस जन्म में

 पूर्व जन्म में किये सदकर्मों का फल 

यहीं दिखाई देता है |

जिसकी छाया इस जन्म में

  दिखाई दी है|

इसी सरलता से तुमने जीता

 सारी कठिनाइयों को 

प्रभु के सदा करीब रहे

कभी दूर न हो पाए

 उसके वरद हस्त से 

उसके चरणों के स्पर्श से |

तुमने जीत लिया 

दुनियादारी के प्रपंचों को | 

 आशा