31 मई, 2022

जीवन जीने की कला


 


माना तुम हो हसीन

 किसी से कम नहीं

पर यह खूबसूरती जाने कब बीत जाएगी

यह भी तो पता नहीं |

 तुम सोचती ही रह जाओगी  

जब दर्पण में अपना बदला हुआ रूप देखोगी

मन को बड़ा झटका लगेगा   

कहाँ गया  यह  रूप योवन  

जान तक न पाओगी |

एक दिन तो बुढापा आना ही है

कोई न बच पाया इससे

तुम यह भी न  जान पाओगी |

योवन तो क्षणिक होता है

कब आता है जीवन से विदा हो जाता है

कुछ दिन ही टिक पाता है |

यही हाल है बचपन का

जीवन में ये दिन बड़ी मस्ती के होते हैं

कई बातें तो भूल भी जाते हैं

 पर जितनी यादे रह जाती है

ताउम्र बनी रहतीं है

 यादों की धरोहर में सिमट कर 

जीवन का रंगीन पहलू दिखाई देता है उनमें |  सबसे कठिन  है वृद्धावस्था में जीवन व्यापन  

अपने को जीवित समझना उसके अनुकूल ही समझते रहना सदा खुश रहना

मन में किसी को झांकने न देना

अपने दुःख सुख किसी से न बांटना

यही है इस काल में जीने की कला | 

आशा  


28 मई, 2022

सम्मान मिले न मिले



कभी भूल कर भी

 न जाना उस ओर

जहां नहीं मिलता सम्मान

यह भी जान लो |

सम्मान माँगा नहीं जाता

स्वयं के गुण ही उसे पा लेते  

वे जहां से गुजरते

 वह बिछ बिछ जाते |

मन को अपार प्रसन्नता होती

जब बिना मांगे 

चाहा गया मिल जाता

समाज में सर उन्नत होता |

यही प्रतिष्ठा की अभिलाषा रहती

आत्म सम्मान ही धरोहर होती

या यूं कहें संचित धन राशि होती

जिसके लिए रहना दूर  पड़ता

 गलत आचरण से  |

आशा 


आशा 

25 मई, 2022

किसी से कुछ न चाहिए

 

मुझ को कुछ न चाहिए

 सब  मिला है भाग्य से |

 और कुछ न चाहिए 


किसने कहा कि मैं हूँ अक्षम     

मैं भी हूँ सक्षम हर कार्य में

पहाड़ हिला  सकती हूँ

आज की नारी हूँ

किसी से कम नहीं हूँ  |

ऊंची उड़ान हँ ध्येय मेरा

उसमें सफल रहूँ

 हार का मुह न देखूं

बस रहा यही अरमान मेरा |

यदि सफलता पाई

जीवन में आगे बढूंगी 

जीत लूंगी सारा जग 

पलट कर पीछे न देखूंगी |

आशा 

20 मई, 2022

यादों का पिटारा




 

बरसों बरस होती

संचय की आदत सब में

यादों के रूप में

यही मेरे साथ हुआ है |

पुरानी यादों को

बहुत सहेज कर रखा है

अपनी यादों के पिटारे में

यह पिटारा जब भी खोलती हूँ

बहती  जाती हूँ

विचारों के समुन्दर में|

इससे जो सुख

दुःख  मुझे मिलता 

है इतना अनमोल कि

उसको किसी से बांटने का

मन नहीं  होता  |

बचपन की मीठी यादे मुझे ले जाती उस बीते कल में

वे लम्हे कब बीत गए

पिटारा भरने लगा |

जब योवन में कदम रखा

  समस्याओं से घिरी रही

 वे दिन भी यादों में ताजे है |

धीरे से समय कब बीता

जीवन में आया स्थाईत्व

सब याद रहा एक तस्वीर सा

अब बानप्रस्थ की बारी आई |

  जिम्मेंदारी में उलझी

एक एक लम्हां कैसे कटा

सब है याद मुझे  |

जीवन की संध्या में यही माया मोह

 मेरा पीछ नहीं छोड़ता कैसे दुनियादारी से बचूं |

कीं जैसे ही ऊंची उड़ान की कल्पना  

 मन के पंख कटे  

ठोस धरातल पर आई |  

आस्था की ओर कुछ  झुकाव हुआ है

यही है सार मनोभावों का जो मैंने छिपाए रखा है

यादों के पिटारे में  |

आशा  

19 मई, 2022

क्षणिकाएं

 

१-मैंने तो सच कहा है

लागलपेट उसमें ना कोई

इस पर भी यदि बुरा मानो

सोच लेंगे कुछ हुआ ही नहीं|

 

२-तुम हो हो धीर गंभीर जलधि जैसे

वह है चचल चपल बिजुरिसा सी

 बेमेल मिलन हुआ कैसे

वह सोच न पाई गंभीरता से |

 ३-अल्लाह कहो या राम रहीम 

किसी भी  पुस्तक में

नहीं  लिखा है  ये है भिन्न भिन्न

 अलग नहीं सब एक हैं दुनिया के तारक

 जगत  के पालनहार प्रकृती के संचालक |

४-, पर्यावरण आसपास का और हरियाली

नदी समुन्दर चाँद  सितारे वायु  धरा   

 सूर्य देव के बिना हैं असम्भव

अन्य गृह सौर मंडल के लगते  आकर्षक दूर से

 |ख्याली पुलाव बनाने से क्या फाय्दा

                      यदि सच में उसे बनाया होता तब और बात होती

जिन्दगी तो तनिक ठहर भी  जाती पर

तुम तारीफ की हकदार होतीं |

आशा 

18 मई, 2022

परिवार दिवस

                                                                 


                                                               पहले कहा जाता था 

हो परिवार  भरा पूरा

फिर कहा जाने लगा

हम दो हमारे दो |

 कभी किसीने न जाना

है महत्व इसका  क्या

अब मनने  लगा

विश्व परिवार दिवस |

जब अति जनसंख्या की हुई

और सीमित संसाधन  हुए 

घबराए  लोग जन संख्या बढ़ने से

वही विचार मन में आया

सीमित परिवार सुखी संपन्न  |

यह बात बारम्बार  दोहराई जाती

हो परिवार भरा पूरा

कभी यह बात कही जाती

छोटा परिवार ही सबसे अच्छा |

वह परिवार है सबसे अच्छा

बड़ा परिवार हो  या सीमित 

 जहां तालमेल हो आपस में

घर में खुशहाली हो

हों सभी एक मत विचारों में |

वह घर  स्वर्ग हो जाता

जहां  परिवार की बेल फले फूले

परिवार दिवस मनाना न पड़ता

सामंजस्य जब होता घर में |

16 मई, 2022

देश के रखवाले



तुम सपूत भारत के रखवाले अपने घरवार से बिछड़े 

 यह साहसिक कदम उठाया 

 परवाह न की कभी दीन दुनिया की 

देश हित में रमें अपनी जान जोखिम में डाली |

 कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आईं  

हिम्मत कभी न हारी

 कर्तव्य से पीछे न हटे

 घरवार  प्रभु के भरोसे किया |

कर्तव्य पर हुए न्योछावर 

देश को है गर्व है

 उन  वीर सपूतों पर 

जिनने दी कुर्वानी देश के लिए 

जात पात का बंधन न माना

किया न्योछावर देश पर  खुद को |

धर्म ने कभी न बांटा एक बात याद रही

प्रथम कर्तव्य से बंधे हैं बाक़ी सब गौण

एक साथ मिल जुलकर रहे सीमा पर 

 हम हैं हिन्दुस्तान के रखवाले |

आशा