13 अगस्त, 2022

राखी निकली गहन उदासी में



राखी निकली गहन उदासी में 

घर था खाली खाली कोई न आया 

आता भी कैसे अन्य देश का वासी हुआ 

माँ थी जब धूम धाम से बड़े उत्साह से 

सब त्यौहार मनाए जाते थे |

अब ना तो  माँ रहीं नहीं भाई बहिन

 हुए अपने अपने में व्यस्त सब 

समय का किसी को भान न हुआ  |

सारा दिन कटता उनके इन्तजार में 

फिर भी बहिन का मन नहीं मानता 

देखती रहती द्वार पर 

जब भी दरवाजे पर आहाट होती 

वह  चौक जाती शायद भाई ने दी दस्तक |

फिर भी शगुन के कच्चे धागे 

कलाई पर कैसे न बंधते 

मन को संतोष मिल जाता है 

कान्हां को राखी बांधकर ही |

आशा 






तिरंगा


हमारा तिरंगा लगता है हम को 
सबसे न्यारा  सब से दुलारा 
है हमारी आन  बान  शान का प्रतीक  सब से प्यारा 
पन्द्रह अगस्त पर 
लाल किले की प्राचीर से 
फहराया जाता बड़े सम्मान से इसे 
प्रधान मंत्री के द्वारा 
राष्ट्र ध्वज है नाम इसका 
तीन  रंगों से बना है 
ऊपर से भगवा रंग 
बलिदान का यह प्रतीक है 
मध्य में श्वेत रंग का 
सच्चाई का प्रतीक 
नीचे होता हरा रंग 
है धनधान्य से सम्पन्न देश 
मध्य में चौबीस शलाकाओं का बना एक चक्र 
जिसे कहते अशोक चक्र 
तिरंगे पर अपार गर्व होता 
चाह यही है दिलसे अपने 
राष्ट्रधज का   हो सम्मान सदा   
कभी इसे न झुकने दे
देश के पति निष्ठा रखें 
   प्रगरी  शील है देश हमारा
कर्तव्यों को कभी न भूलें 
देश के लिए बलिदान करें  |  
जय हिन्द का उद्घोष क
आओ जनमान गण का गान करें |
आशा लता सक्सेना 



11 अगस्त, 2022

बरसात का आलम

उमढ घुमड़ जब बादल आए 

 वायु जब मंद मंद चले महकाए 

मेरे बदन में सिहरन  सी दौड़े 

एक अनोखा सा एहसास हो 

जो छू जाये  तन मन को  |

कभी लगाने लगता है 

आगन में दौडूँ या खेलूँ घूम मचाऊँ 

पूरी ताकत से गीत गाऊँ गुनगुनाऊँ 

बचपन के  आने का एहसास करा के 

माँ के आँचल का एहसास  कराऊँ 

मा का एहसास  करा कर  निमंत्रण दूं 

तुम्हेंअपने पास आने का 

इस माँ ने ही झूले में झुलाया था 

गोदी में प्यार से सुलाया था 

जब भी जिद्द पर आई 

बहुत धेर्य से माँ  ने समझाया था  |                     \

जब से  मैं बड़ी हो गई हूँ 

चाहे जब डाट कहानी पढती है  

फिर भी जग की रीत निभानी पड़ती है 

अब मन मानी नहीं चल पात

पर माँ की बहुत याद आती  है  |

इसबार मुझे माँ छोड़ गई है 

भाई ने भी मुख मोड़ लिया है 

है  अव घे घर खाली खाली वीरान सा 

 कान्हां के सिवाय किसे राखी बांधू |


आशा 

09 अगस्त, 2022

बंधन राखी का

  

बंधन राखी का

जाने कितने भावों को समेटा है

मैंने अपने आगोश में

फिर भी मन नहीं भरता किसी तरह

बार बार एक ही धुन लगी रहती है |

एक ही रतन लगी रहती है

तुम कब आओगे कहाँ आओगे

एक ही चिंता रहती है

कहीं मुझे भूल तो न जाओगे |

पर मुझे विश्वास है तुमपर

कभी भुला तो न पाओगे मुझको

क्यों कि मैंने कच्चा धागा बांधा है

तुम्हारी कलाई पर |

जिसमें कोई आडम्बर नहीं है

दिखावा नहीं है

बस केवल सात्विक प्रेम है

प्यारे भाई का स्नेह है अटूट |

08 अगस्त, 2022

हम जैसा कोई नहीं




जब  से साथ रहे जाने कितनी
समस्याओं की खोज में जुटे 

तब एक भी समस्या न हुई  

|कभी जिन्दगी बेरंग न हुई 

                                                                 जब खुद को सक्षम पाया मैंने

यदि होती  दृढ़ता  मुझ में  तुम में 

कोई गला नहीं पकड़ता बिना बात 

सारी शिकायतें  दूर होती  चुटकी में |

जान गई हूँ डरने से कोई लाभ न होता 

हिम्मत से तार  जुड़ते जाते है 

कोई उंगली उठा नहीं सकता 

किसी गलत या सही  शिकायत पर 

बस झटका जरूर लगता है दिल पर |

क्या हमारी इतनी औकात न थी 

हमने क्या किया था बता पाते

                                                                   पर हमारे हाथ  में कुछ न था 

अब बेकस मजबूर हो कर रह गए थे |

आशा 




06 अगस्त, 2022

संगम कविता का कविता से



कविता से कविता का संगम

जब भी होता एक अनोखा रंग

सभी के जीवन में होता

यही सोचना पड़ता

यह  कैसे हुआ कब हुआ |

जो भी हुआ जाने क्यों हुआ

पर रंग महफिल में जमा ऐसा

बेचैन मन को सुकून मिला

जिसकी तलाश थी मुझे बरसों से  |

 जब भी बेकरार होती हूँ

मेरा मन बुझा बुझा सा रहता है

नयनों का तालाब भर जाता है

छलक जाता तनिक अधिक वर्षा से |

एक यह ही समस्या है ऐसी

 जो मुझे उलझाए रहती अपने आप में

कुछ सुधार नहीं होता अधीर  मन ममें 

अच्छी बुरी  सब बातों का जमाव

 उद्वेलित करता मेरे मन को  

होती जाती दूर्  कविता के संगम से

जिसकी मुझे आवश्यकता थी |

आशा 

आशा

04 अगस्त, 2022

यही है प्यार की रीत


 


कभी पास आना आकर दूर चले जाना
कितनी खुशामद करवाना फिर भी न खुश होना
जब होता असंतोष का गीत
यही है प्यार की रीत |
मैंने कभी न चाहा तुम्हारा प्यार मिले
पर वरद हस्त का मुझे उपहार अवश्य मिले
जब भी चाहूँ मेरी मदद के लिए आजाओ
यही होगा बहुत उपकार मुझ पर |
इसी लिए जीने की चाह रहती मुझको
न कोई चाहत न लागलपेट है मुझको
नहीं चाहती मुझे किसी का अधिकार छीनूँ
मेरा अधिकार ही मिल जाए जिसकी अपेक्षा रही मुझे |
आशा