03 नवंबर, 2022

मेरे ख्याल से

 

तुम्हारे सारे सपने बेमानी हुए

जब भी झाँका तुमने अपने विगत में

जब  झूट या सच से हाथ मिलाया

अपने को इन प्रश्नों में उलझा पाया |

खुद न सोच सके इनका हश्र क्या होगा

इनमें फँस कर क्या होगा

कभी खुद पर नाराज हुए और

 तल्खी आई खुद के ही व्यवहार में |

यह अनिश्चितता तुम्हें सुख से सोने न देती

नाही कुछ अच्छा होने देती

तुम घिरे रहते इस झंजावात में

पार न हो पाते इन सब की उलझनों से |

तुमने क्या सोचा क्या चाहा

जब तुम ही न निश्चित कर पाए

कौन करेगा कोशिश तुम्हारे पास आने की

तुम्हें जज्बातों से बाहर निकालने की |

मेरे ख्याल से तुम हुए अब लाइलाज

किसी भी डाक्टर के बस के नहीं

यदि खुद को न सम्हाला अब भी

नतीजा  होगा घातक तुम्हारे लिए |

आशा सक्सेना


ख्याल मेरा अपना

 


जीवन में सुख की छाया 

तो नाम मात्र को देखने को मिलती है

 पर दुखों का अम्बार लगा रहता है

इस अम्बार से सुख को खोजना

 बहुत कष्ट कर होता है

  यदि उसे खोजने का सूत्र 

यदि मैं  पाऊँ बहुत सफलता पाकर  

जहां तक मैंने सुना है

 कोई कार्य असंभव नहीं होता |

असफलता ही सफलता की जननी है |

कभी तो सफलता हासिल होगी 

यदि बार बार प्रयत्न करेंगे पर हार नहीं मानेगे  |

अतः मैंने असफल हो कर भी 

अपने कदम पीछे न हटाए

 आखिर में सफलता को छू पाया |

मुझे अपार प्रसन्नता हुई 

उस सफलता की ऊंचाई को छू कर |

आशा सक्सेना 

 

 

 

 

 

 

 

02 नवंबर, 2022

माँऔर बेटे का व्यवहार

 

जब बच्चा बहुत छोटा  होता  हैं माँ हर बात में रोकती टोकती है |पर धीरे धीरे कब बच्चा बड़ा  हो जाता है बच्चे को  बहुत अजीब सा लगाने लगता है |अगर उसे ऑफिस में देर हो जाए तब भी माँ उसे टोकती है इतनी देर कहाँ हो गई |समय की कीमत समझो समय पर आया जाया करो |नियमित जीवन बहुत उपयोगी होता है |सभी कार्य यदि समय से करोगे कभी समय की कमीं नहीं पड़ेगी |हम भी नौकरी करते थे पर सारे काम समय पर होते थे |बच्चा सोचता है” मैं कब बड़ा होऊंगा माँ की नज़रों में “|पर एक अदि दिन तो टोका टोकी नहीं होती पर फिर से माँ का टोकने का क्रम शुरू हो जाता है |इस आदत में बदलाव कैसे आए ?क्या मैं गलत हूँ ?मुझे सलाह चाहिए आपसे |

              आशा सक्सेना

 

31 अक्तूबर, 2022

सावरा सलोना प्यारा सा कान्हां

 

 


                                         अचानक कान्हां रोवन लागा 

 चुप न  होने की कसम खाई हो जैसे

यशोदा माँ ने सब को हटाया कक्ष से

पर शिव को न हटा पाया उस ने |

 अपने प्रभू के दर्शन की जिद ठान बैठे थे वे भी 

भेष बदला शिव ने एक ग्राम बधु जैसा अपना  

गोदी में श्याम को बैठाया

एक दम रोना गायब हो गया

शिव की साध पूरी हुई जब दर्शन हुए

 एक आंसू की बूँद न गिरी नेत्रों से

 इस तरह मंशा पूरी हो पाई शिव जी की |

सावला सलोना प्यारा सा श्याम 

राधा रानी बरसाने की शान

जल भरण जब निकलती घर से

सर पर मटकी लेकर   

ग्वाल बाल सब पीछे लागे

जब कंकड़ी मारी 

मटकी भरी जल की फोड़ी

 गोपियों ने  शिकायतें की कान्हां की 

यशोदा ने एक न मानी उनकी 

पर जब पुरवासी शिकायते ले आए

श्याम ने नकार दिया मस्ती में |

श्याम ने बरजा माँ को भी झूठा ठहराया 

और छिप गया उनकी गोदी में 

ऐसी है बाल लीला श्याम की 

जो सुनी थी  मैंने अपनी माँ से|  

 आशा सक्सेना 


 

 

   

30 अक्तूबर, 2022

जब नींद न आए

 

जब नींद न आए

आधी रात तक जागरण हो

बहुत कोशिश के बाद भी

 मन स्थिर न  रहे |

मन में विषाद उपजे

                                   बार बार विचलन हो

है क्या कारण

कोशिश तो की है पर

फिर भी ध्यान न केन्द्रित हो  |

वजह जानने के लिए

प्रयत्न भी किये भरपूर

पर असफलता ही हाथ लगी

सफलता से दूरी होती गई |

सफल होने के लिए

असफलता का ही सहारा लिया

मन में खुशी जाग्रत हुई

जब कोई सुराग मिला सफलता का |

धीरे धीरे खुमारी आई

नयनों में निंद्रा का राज्य पसरने लगा

कब रात हो गई सपने याद नहीं

मैं नीद में खो गई  |

आशा सक्सेना 

 

28 अक्तूबर, 2022

मन का संयम

 



                                                     मेरी चाहत है खोलो मन की ग्रंथियां

मन को भरम से दूर करो

फिर देखो सोचो समझो

मन को ज़रा सा सुकून दो |

तभी जीवन की उलझने

पूरी तरह  सुलझ पाएंगी

जीवन में बहार आएगी

 जीवन खुशनुमा होगा |

मन में बहार आएगी

अपने आप उसको सुकून मिलेगा

जिन्दगी में प्रसन्नता आएगी

प्यार की ऊष्मा छाएगी |

किसी से उलझने से है लाभ क्या

यह तो समझ का है फेर समझो

मन को संयत करो आत्म संयम से काम लो

देखो नेत्र खोल कर तुम भी समझ जाओगे |

भावनाओं में न बहोगे

यदि मस्तिष्क से काम लोगे

सही क्या है गलत क्या

अपनी क्या भूल हुई है जान जाओगे |

आशा सक्सेना

27 अक्तूबर, 2022

वे प्यार भरी रातें


 वे प्यार भरी रातें 

मनुहार से भरी बातें 

मुझे याद रहती हैं 

उन्माद भरी सौगातें |

जब मन को सम्हाला था अपने 

कितना  अवेरा था उसे बड़े कष्टों के बाद 

अब कोई बाधा नहीं चाहती उस अवसाद के वाद |

न जाने क्यों  कोई मुझे पनपने नहीं देता 

उस हादसे के   बाद 

न जाने कैसी उस  की शत्रुता ने जन्म लिया है |

नाही मैंरी कोई रुझान  है कभी

ना तो  अंध भक्ति की है 

पर अवसाद ने ऐसा घेरा है मुझे 

कैसे  मुक्त हो पाउंगी  उससे |

पिंजरे में बंद मैना हो कर रह गई हूँ 

मुझे समझ न पाया कोई 

प्रातः  उठ कर  जीवन को प्रवाह देती हूँ 

श्याम तक थक कर चूर हो जाती हूँ |

मन फूटफूट कर रोने को मचलने लगता है

हार जाती हूँ जीना चाहती हूँ उस  बीते कल में 

मुझे ऐसा साथी  चाहिए

जो मुझे 

बहुत प्यार से अपनाए

  कभी धोखा न दे अपनी बातों से 

बात अपनी  बड़े  धीमें धीमें मनवाए |

फिर वहीं नजारा हो पहले जेसा 

 जो वाट देखते  रहने को जी चाहता हो 

फिर से देखने को मुझे उत्सुक रखता हो 

अपने आप में संयत रखता हो |