23 दिसंबर, 2022

कान्हां क्यूँ न आए

 


बिना बांसुरी ये सुर कैसे सुनाई देते 

कान्हां तो नहीं आए 

पर संदेश ले ऊधव आए  

कान्हां जा बसे मथुरा नगर में |

सुध बिसराई हम सब की

भूले से याद न आई

हम मन ही मन  दुखी हुए  

पलकें  न झपकी पल भर को | 

रो रो पागल हुए उसकी याद में 

अपनी व्यथा किससे व्यक्त करें

कोई समझ न पाया हम को 

हमारा प्यार है कैसा कोई जान न पाया 

 कान्हां बिन रहा न जाए

माखन मिश्री किसे खिलाएं 

हम कान्हां में  खोए ऐसे

 अपने को ही भूल गए  |

कैसा घर द्वार कैसा काम काज 

कहीं मन नहीं लगता

दौड़ा जाता कदम के नीचे कुंजों में 

 या यमुना तीर  |

सुनी जहां मीठी धुन मुरली की 

ऊधव का ज्ञान भी समझ न पाए

है यही समस्या मन की

 कान्हां क्यूँ न आए  |

आशा सक्सेना 



अनुभव खट्टे मीठ

 

अनुभव खट्टे मीठे

 जीवन में कई  खट्टे मीठे अनुभव होते हैं और उनका प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है

व बरसों बरस याद रहता है |सुखमय बातें तो भूल भी जाते है पर कष्टकर बातें

कष्टकर बातें मन को सालती रहतीं हैं यही बड़ी समस्या है जो जीवन को प्रसन्न

नहीं रहने देतीं |तभी व्यक्ति असामाजिक हो जाता है |उसे लगता है जीवन का मार्ग कठिन कंटकों से भरा |

उसका कोई नहीं इस दुनिया में |

आशा 

22 दिसंबर, 2022

हमारा कोजी

 


 प्यारे से ये मूक प्राणी 

सुख दुःख को समझते

बोल नहीं पाते फिर भी

पास आते अपना प्यार दर्शाते |

किसी के दुःख में हो दुखी 

 भोजन तक छोड़ देते

पर खुशी में आसपास घूमते रहते |

अपनी अदाओं से 

मन मोहने की कोशिश करते 

अपना स्थान घर में सुरक्षित रखते |

अपनी हरकतों से ध्यान आकृष्ट करते 

वे रूठना मनाना भी जानते 

अपनी आवाजों से इसे व्यक्त करते |  

हर आहट पर अपनी प्रतिक्रया देते

जैसे ही द्वार  खुलता

वहां पहुँच आने वाले का स्वागत करते

सूघ कर जान जाते

है कोई नया व्यक्ति  या नहीं |

जब कोई काम करने आता 

उसकी निगरानी करना  

अपना कर्तव्य समझते 

जब तक वह  चला न जाए

वही डटे रहते 

मानो वे है निरीक्षक उनके |

 हैं समय के पावंद 

किसी के आने की प्रतीक्षा में 

दरवाज़े पर जा बैठते जब तक वह  न आजाए 

राह देखते वही आने वाले मालिक की |

 यदि आकर  वह प्यार करना भूल जाए   

अपनी भाषा में खुद की  नाराजगी प्रकट करते  |

 उनके काम में हो देर यह पसंद नहीं उनको 

हैं समय के पावंद सब काम समय पर करते 

कितनी गुण गिनाऊँ उनके शब्द ही नहीं मिलते |

अपने अधिकार  भी खूब जानते 

अपनी कोई वस्तु किसी से नहीं बांटते 

 उन के जैसा कोई स्नेही नही 

हमारा कोजी है उन में से एक |

21 दिसंबर, 2022

तुम देश के रखवाले


 

तुम भारत के रखवाले 

हो सीमा पर तैनात 

अपना सर्वस्व लुटाने को तत्पर

देश की रक्षा करने को |

है वही प्राथमिकता तुम्हारी

 होकर  प्रेरणा हमारी 

हो धीर गंभीर आगे बढ़ो

तुम से ही है सुरक्षा देश की |

कदम पीछे नहीं लौटाना 

मन में दृढ संकल्प रखना 

तुम्हारे लिए हम क्या कर सकते है

 केवल प्रार्थना के अलावा |

 ईश्वर से दुआ ही  मांग सकते हैं 

तुम कभी हार का मुंह न देखो 

भय का संचार नहीं हो   

 यही है कर्तव्य तुम्हारा |

तुमने पूरे किये वादे पूर्ण समर्पण के साथ

अपने देश की रक्षा में

 सारा जीवन किया समर्पित

पूर्ण शिद्दत के साथ |

 तुम जैसे जांबाज सभी हों 

कितना अच्छा हो

शत्रु आँख उठा कर भी न देखे

 सभी इसकी प्राथमिकता  को समझें |

 पूर्ण करें कर्तव्य देश के प्रति 

उसे प्राथमिकता दें 

तभी भविष्य  देश का सुरक्षित होगा

हमारा भारत एक रहेगा |

आशा सक्सेना 

19 दिसंबर, 2022

कर्मों का फल


 

 

  अपने  करते गैरों सा व्यबहार

 गैर का होता मनभावन  प्यार 

यह तो पता नहीं चलता

कौन अपना कौन पराया |

मन यही सोचता रहता

जो दिखावा होता

 उसे कैसे पहचाने

कहाँ से वह दृष्टि लाए

जो देखते ही जान ले

किसी के मन में क्या है |

मन में किसी के

 क्या पक रहा है

क्या खिलाड़ी पक रही है

अभी पूरी बनी या नहीं  |

इंसान कुछ नहीं करता

यही सब ईश्वर कराता

वह भावनाओं में बहता जाता

उसी के इशारे पर |

क्या यह   पूर्व जन्म के 

कर्मों का फल होता 

या इसी जन्म का अनजाने में 

कुछ कहा नहीं जा सकता |

आशा सक्सेना 

 

कोई किसी का नहीं होता


कोई किसी का नहीं होता 
केवल मतलब से सब होता 
मन को समझाया भी कितना
पर कुछ हल नजर ना आया |

बे रंग जीवन हुआ तुम्हारे बिना 

अब कोई कार्य शेष नहीं

अपने कर्तव्य पूर्ण किये सारे  

जिसमें व्यस्त हो मन को बहलाऊँ |

मन हुआ उदास आज

  अर्थ क्या बेबजह जीने का

पर यह भी हाथों में नहीं |

जिन्दगी की शाम उतर आई है

कैसे क्या होगा  

है सब तुम्हारे हाथ प्रभू

 भविष्य में क्या घटेगा |

  अकेले जीवन कैसे कटेगा  

छोड़ा मोह सब का फिर भी 

  भाग्य  में जाने  क्या लिखा है 

मुझे नहीं पता है |

आशा सक्सेना 

 

 

  


18 दिसंबर, 2022

जो किताबों में लिखा



                                                     जो भी किताबों में लिखा 

पढ़ न पाया 

न साथी रहा कोई   उसका 

  उसे मन ही मन दोहराए |

कुछ आत्मसात करे 

मस्तिष्क को समृद्ध करे 

 कोई यह तो न कहेगा

 उसे  कुछ भी नहीं आता |

रह जाता ज्ञान  अधूरा  उन के बिना 

  है किताबों से  लगाव  बहुत  

जब मन में संतुष्टि आई 

 मन  प्रसन्न  हुआ |

 किसी को  अंदाजा  ना हुआ 

  उसने  क्या पाया 

सब ने कहा वाह क्या बात है

 लगन हो तो ऐसे  हो |

कोई सुविधा न मिली फिर भी 

पीछे न रहा किसी से 

फिर भी अहम् न आया |

वह  अपने तक ही सीमित रहा  

 इसका भी गम न था उसको 

सभी आश्चर्य चकित थे 

यह कैसे हुआ |

ये दूरियाँ सब से किस लिए 

किसी को मालूम नहीं 

पुस्तकें रहीं घनिष्ठ मित्र उसकी 

  वही रहीं सहायक पर छूपी  रहीं  |

राज  जाहिर न किया सब के समक्ष 

वही थी सहायक   उसकी 

इस प्रगति में |

आशा सक्सेना