19 अप्रैल, 2023

जब मैंने तुम्हें पुकारा



 

जब मैंने तुम्हें पुकारा

तुमने मुझे नजर अंदाज किया

यह तक भूले मैं भी तो लाइन में खड़ी हूँ

तुमसे भेट के  लिए |

 मन को ठेस लगी

पर जान लिया कोई स्थान नहीं  

मेरा  तुम्हारे लिए घर में  

मैं तो खोज रही हूँ तुमको

जानने  के लिए कि तुम कौन हो मेरे

मेरे अपने या कोई गैर

जब यह जान जाऊंगी तुम कौण मेरे  

 तुम्हारे घर में कदम रखूंगी  

इससे पहले पूरी पड़ताल करूगी  

या किसी से सलाह लूगी

 जब संतुष्टि हो जाएगी

अपने कदम आगे बढाऊंगी

अब कोई भूल नहीं करूंगी |

पर सोचती हूँ कहीं समय

ना  निकल जाए हाथो से

 केवल रेत ही रह जाएगी

रिक्त हाथों में |

आशा सक्सेना 


18 अप्रैल, 2023

कैसे तुम को याद करू मैं


                                                            तूम को कैसे  याद करू मै

तुम तो कभी मेरी सुनते ही नहीं

जितनी बार की प्रतीक्षा तुम्हारी

कभी आशीष तक ना  दिया तुमने |

मेर्रे मन को ठेस लगी है

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं

मैंने सबसे अलग तुम्हें माना

सब से विशिष्ट जाना तुम्हें |

तुम्हें ही भजा स्तुति की मैंने

सोच लिया तुम ही हो मेरे

जब भी घंटी मंदिर की बजती

मैं दौड़ी चली आती ,पैर नहीं रुकते मेरे |

तुम राधा के श्याम मीरा के घनश्याम 

मैने तुम से स्नेह लिया है

अपना सब अर्पण किया है

अपना अधिकार नहीं बाटूंगी

 श्याम तुम मेरे हो  मैं हूँ तुम्हारी |

 आत्मिक प्यार है मुझे तुमसे 

 मेरी भक्ती की लाज रखना  

                      सदा साथ रहना मेरे हूँ आश्रित तुम्हारी श्याम

हूँ मैं भक्त तुम्हारी पूरे दिल से |

मेरी जगह और कोई ले

नहीं यह मंजूर मुझे 

                                निगहबानी रखना मेरी |

आशा सक्सेना 

17 अप्रैल, 2023

संतुष्टि और शांति

 





कोरी  कापी  और नया पैन

रोज लिखने के लिए

 टेबल पर रखती पर

पैन ना चलता  |

फिर से कोशिश करती

फिर पैन को फैक देती

कोई उसे फिर से  टेबल पर रखता

 वह ठीक हो जाता |

मालूम ही नहीं पड़ता

अब वह चलने लगा है

यह कैसे हुआ

नहीं जानती |

इन सारे  झंझटों में

मूड ही बिगड़ जाता

बार बार फिर कोशिश करती

पर एक लाइन भी नहीं लिख पाती |

अब और अधिक क्रोध आता

आने वाले  कल पर छोड़

अनमनी हो हाती |

तीन चार दिन की शान्ति हो जाती

ठन्डे दिमाग से लिखने के लिए

घर में ना  उलझती

अब लिख पा रही हूँ |

आवश्यकता है एकांत की

जब लिखूं सही ढंग से

फिर से पढ़ सकूं

यही है मेरा विश्वास मुझे

 आगे बढ़ने में व्यवधान  नहीं  डालता

और संतुष्टि का आभास होता

अपने लेखन से |

आशा सक्सेना    

16 अप्रैल, 2023

काला कागा और काली कोयल


 बैठता 
काला कागला 
घर की दीवार पर 

वह कांव कांव करता सूचना देता

किसी महमान के  आने की  |

ऎसी ही कोयल होती काली 

 पर मीठी तान सुनाती 

सब का मन मोह लेती

 पर बैठती उसी डाली पर

जहां उसका घोंसला होता |

 जब चूजे होने वाले होते

कागा के घोंसले पर कब्जा करती

कोयल चालाक कागा से अधिक

बच्चे उसके भी पल जाते

कागा के बच्चों के संग |

कागा जान ना पाता

चालाकी कोयल की

जब उड़ने जैसे चूजे हो जाते

पंख निकलते ही एक दिन उड़ जाते

घरों दा खाली कर जाते |

कोयल चालाक कागा से अधिक

बच्चे उसके भी पल जाते

कागा के बच्चों के संग |

कागा जान ना पाता चालाकी कोयल की

जब उड़ने जैसे चूजे हो जाते

एक दिन उड़ जाते

घरोंदा खाली कर जाते |

आशा सक्सेना

15 अप्रैल, 2023

किसी ऐतीहासिक स्थल पर जाने की इच्छा

 


धूप का नाम नहीं है

कितना सुहाना है

आज का  मौसम

बाहर जाने का मन होता है|

सबके साथ घूमने फिरने का

जो आनन्द आता है 

मन को प्रेरित करता है

 कहीं दूर जाने का

वहां के वर्णन का  |

 किसी ऐतिहासिक स्थल पर जाए

उसमें छिपी कहानी का आनन्द उठाएं

वहां की सत्य  कहानियां सुन कर

 जानकारी हांसिल कर कुछ लिखें |

जो कुछ लिखा जाता है

बहुत रोचक होता है 

ऐसा करने से जानकारी

मन में सिमट कर रह जाती है|

 बरसों बरस याद रहती है

बहुत उपयोगी होती है 

यही जानकारी बच्चों को

बहलाने के काम आती है|

उनकी योग्यता में बृद्धि होती है

किसी और  को सुनाते है 

बहुत प्रशंसा  होती है उनकी 

जब वे अपनी कहानी ले कर बैठ जाते हैं|

जब कहानी में वे व्यस्त होजाते है

उनके मुंह से कहानी सुनना 

बहुत अच्छ लगता है

जब बच्चों की प्रशंसा होती है |

14 अप्रैल, 2023

है यही उपलब्धि मेरी

 




सुगंध आए ना  आए

मन पर एक तस्वीर आए ना आए  

पर मस्तिष्क  मैं उसकी अभिन्न छवि रहती है

नहीं मालूम जाने क्या क्या कहती है |

मुझे कभी यह भी ना लगा क्या गलत किया मैंने 

अभी तक किसी ने जब कुछ  कहा

मैंने ठीक से समझा

और आसपास सब को  समझाया |

तब ही संतुष्टि हुई मुझ को

मैंने कुछ विशेष नहीं किया है

अपना कर्तव्य ही  किया है |

हम हैं भारत के निवासी

देश के प्रति कोई कर्तव्य है हमारा

जिसे पूर्ण करना है

कभी पीछे नहीं हटाना है

अपने घर की भी अभिलाशा रही मेरे मन में

उसे दूसरा नम्बर दिया है मैंने

बाक़ी सब बाद में करना है  

  यही  उपलब्धि  है मेरी |

आशा सक्सेना

13 अप्रैल, 2023

जाने अनजाने

 





जाने अनजाने आगे बढ़ा

राह को ना पहचाना

कितनी बार राह भूला

ढूंढता रहा मार्ग  मुश्किल से मिला|

पर पक्का ना था 

काम  चल गया

ऊंची सीडियों  पर

कठिनाई आई चढ़ने में 

सफलता तो मिली पर

 कठिनाई से मन को भय हुआ

कितनी बार सोचा भय किस लिए

किसी का साथ होता तो अच्छा होता |

फिर भी दिल को दिलासा दिया

ईश्वर का नाम लिया

चल दिया घंटियो की आवाज़ सुन   कर

आखिर मन पहुंचा अपने आराध्य तक |

अपार प्रसन्नता हुई जब दर्शन किये

पूरे प्रयत्न  के बाद गहन संतुष्टि मिली 

अपनी सफलता पर |

काश कोई सहारा और  होता

 जिससे निर्देश ले पाता

पूर्णता का  एहसास होता

जिसकी चाह थी मन को |

आशा सक्सेना