23 अप्रैल, 2023

क्या तुम ने सोचा है


                                                                    क्या तुमने सोचा है 

मैंने कुछ नया किया है 

वह भी तुमसे  कहे बिना 

उसमें मुझे  प्रसन्नता मिली है |

उसने नजदीक किया है तुम्हें मेरे 

तुमने मुझे अपने आपसे 

खुद को इतना पास किया है 

मुझे अपने ऊपर गर्व हुआ है |

झूठे गर्व का मुझे एहसास नहीं  है

मेराविश्वास इतना बढ़ा है 

मुझे ज़रा भी भय नहीं लगता 

सही राह खोजने में गंतव्य तक पहुँचने में |

माना कि मैं हूँ सरल सीधी 

पर तुम्हारे बिना अधूरी रहती 

तुम बिन एक कदम भी 

आगे बढ़ा नहीं सकती |

पूर्ण रूप से निर्भर हूँ तुमपर 

मैंने तुम्हें अपना मनमींत समझा है

 दिन रात स्वप्नों में खोई रहती हूँ 

हर समय तुम पर न्योछावर हुई जाती हूँ |

ईश्वर की  श्रद्धा अटूट रही मुझ पर 

हर समय आशीष रही मेरे सर पर 

मन में आशीष प्रभू का सदा रहा मुझ पर 

यही क्या कम है कोई गलत काम नहीं हुआ मुझसे |

मुझे तुम पर है अथाह   विश्वास 

यह तुम ने भी नहीं सोचा होगा  

पर मेरी प्रसन्नता पर तुम्हारी प्रसन्नता पर 

 गर्व है मुझको जैसे |


आशा सकसना 


21 अप्रैल, 2023

दोनों में अंतर क्यूँ






   





मन में  उसके क्या है 

वह खुद ही नहीं जानती

प्यार किसे कहते हैं

 अनुभव किया ही नहीं |

जब धर में चर्चा  हुई

उसकी शादी की

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ

ऎसी भी क्या जल्दी है |

अभी किशोरावस्था बीती ही नहीं

योवन ने अगड़ाई ना ली

क्या वह भार हुई सब के लिए

या उसका सोच गलत है |

क्यूँ बार बार उसे रोका  टोका जाता

यह करो या ना करो

 हर बार कुछ सलाह दी जाती

भाई से कुछ भी नहीं कहा जाता 

क्या कुछ भी मना करने को 

कह दिया जाता |

यह है कैसी दोगली नीति 

मेरे सरपरस्तों की 

बार बार मन में आती 

यह सही नहीं की जाती |
आशा सक्सेना 
 

20 अप्रैल, 2023

कैसे अकेले काम करू


 मैंने कभी एक भी  

काम ना  किया  पहले

बहुत कठिनाई हुई

 जब अकेले करना पड़ा सब काम |

दिन भर काम ही काम

क्या यही है  इन्साफ मेरे साथ

सुबह से शाम  तक रहती व्यस्त

कभी किसी काम से नहीं ना कर पाती |

किससे  करू इनकार

है यही जिम्मेंदारी  मेरी

घर की सफाई करू खाना बनाऊँ  

या आगत का स्वागत करू |

यदि आलस्य करू

अपने आप को अपराधी समझूं

 मुझे भी अच्छा नहीं लगता

कैसे अपने को परिवर्तित करू|

कोई मुझे समझाओ मै क्या करू

जब भी काम  करती हूँ

शरीर साथ नहीं देता

दिनभर के काम से थक जाती  हूँ |

क्या कोई तरकीब नहीं

बहुत थकने से बचने के लिए

अपने पर ध्यान दे पाने के लिए

हूँ अकेली कैसे बच पाऊँ घरके कामों की सीमा से |

आशा सक्सेना 

कल्पना लोक के इस दौर में

 

कल्पनालोक  के इस दौर  में

कैसे दूर रहूँ उससे

सब ने समझाया भी इतना

कभी कहने में आई यही बात

मन को ना  भाई कैसे |

कविता का कोई रूप नहीं होता

केवल भावनाएं ही होतीं उसमें

सुन्दर शब्दों से सजी है

 मन में हिलोरे खा रही है |

प्यार से सजी हुई है

दिलों दीवार में घुमड़ा  रही हैं

कभी नदिया सी बेखौफ  बह रही हैं

अपनी राह से है लगाव इतना

आगे आने वाले राह नहीं भटकते |

यही मन को रहा एहसास

पर मुझे भय नहीं है

अपने ऊपर आत्मविश्वास है इतना

कभी पैर ना फिसले ताकत से रहे भर पूर

  चंचल चपला सी बह रही है |

आशा सक्सेना 

19 अप्रैल, 2023

जब मैंने तुम्हें पुकारा



 

जब मैंने तुम्हें पुकारा

तुमने मुझे नजर अंदाज किया

यह तक भूले मैं भी तो लाइन में खड़ी हूँ

तुमसे भेट के  लिए |

 मन को ठेस लगी

पर जान लिया कोई स्थान नहीं  

मेरा  तुम्हारे लिए घर में  

मैं तो खोज रही हूँ तुमको

जानने  के लिए कि तुम कौन हो मेरे

मेरे अपने या कोई गैर

जब यह जान जाऊंगी तुम कौण मेरे  

 तुम्हारे घर में कदम रखूंगी  

इससे पहले पूरी पड़ताल करूगी  

या किसी से सलाह लूगी

 जब संतुष्टि हो जाएगी

अपने कदम आगे बढाऊंगी

अब कोई भूल नहीं करूंगी |

पर सोचती हूँ कहीं समय

ना  निकल जाए हाथो से

 केवल रेत ही रह जाएगी

रिक्त हाथों में |

आशा सक्सेना 


18 अप्रैल, 2023

कैसे तुम को याद करू मैं


                                                            तूम को कैसे  याद करू मै

तुम तो कभी मेरी सुनते ही नहीं

जितनी बार की प्रतीक्षा तुम्हारी

कभी आशीष तक ना  दिया तुमने |

मेर्रे मन को ठेस लगी है

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं

मैंने सबसे अलग तुम्हें माना

सब से विशिष्ट जाना तुम्हें |

तुम्हें ही भजा स्तुति की मैंने

सोच लिया तुम ही हो मेरे

जब भी घंटी मंदिर की बजती

मैं दौड़ी चली आती ,पैर नहीं रुकते मेरे |

तुम राधा के श्याम मीरा के घनश्याम 

मैने तुम से स्नेह लिया है

अपना सब अर्पण किया है

अपना अधिकार नहीं बाटूंगी

 श्याम तुम मेरे हो  मैं हूँ तुम्हारी |

 आत्मिक प्यार है मुझे तुमसे 

 मेरी भक्ती की लाज रखना  

                      सदा साथ रहना मेरे हूँ आश्रित तुम्हारी श्याम

हूँ मैं भक्त तुम्हारी पूरे दिल से |

मेरी जगह और कोई ले

नहीं यह मंजूर मुझे 

                                निगहबानी रखना मेरी |

आशा सक्सेना 

17 अप्रैल, 2023

संतुष्टि और शांति

 





कोरी  कापी  और नया पैन

रोज लिखने के लिए

 टेबल पर रखती पर

पैन ना चलता  |

फिर से कोशिश करती

फिर पैन को फैक देती

कोई उसे फिर से  टेबल पर रखता

 वह ठीक हो जाता |

मालूम ही नहीं पड़ता

अब वह चलने लगा है

यह कैसे हुआ

नहीं जानती |

इन सारे  झंझटों में

मूड ही बिगड़ जाता

बार बार फिर कोशिश करती

पर एक लाइन भी नहीं लिख पाती |

अब और अधिक क्रोध आता

आने वाले  कल पर छोड़

अनमनी हो हाती |

तीन चार दिन की शान्ति हो जाती

ठन्डे दिमाग से लिखने के लिए

घर में ना  उलझती

अब लिख पा रही हूँ |

आवश्यकता है एकांत की

जब लिखूं सही ढंग से

फिर से पढ़ सकूं

यही है मेरा विश्वास मुझे

 आगे बढ़ने में व्यवधान  नहीं  डालता

और संतुष्टि का आभास होता

अपने लेखन से |

आशा सक्सेना