10 जून, 2023

केवल कविता से जीवन नहीं चलता






                                                 जीवन कविता लिखने  से नहीं चलता 

 कविता खाने को नहीं देती

 जीवन व्यापन के लिए भी

 होता आवश्यक कुछ काम करना 

दौनों की आवश्यकता होती है बराबरी से |

अपनी स्थान की जरूरत कभी ना मिली 

किसी ने जब खोजा किसी एक विधा को 

उसकी  कविता के लिए

 हो जाती है राह एक सुनिश्चित 

उसका जब दिखता नजारा मन बल्लियों उछलता 

पर जीवन की रफ्तार वहीं ठहरने लगती |

दौनों की आवश्यकता जरूरी है 

एक से पूरा नहीं पड़ता जीवन के लिए 

एक है मनोरंजन के लिए 

दूसरी है जरूरी जीवन व्यापन के लिए 

जिसने महत्व दौनों का समझा

और  समय का सदुपयोग किया 

सही नियोजन किया  समझदारी से 

वही सफल हुआ अपने जीवन में |

आशा सक्सेना 




09 जून, 2023

सरस्वती वन्दना


 

नमन तुम्हें हे मां भारती 

आए हैं तुम्हारे दर पर 

अपनी आस लिए 

मेरी आस पूरी करो माता |

यही  एक इच्छा है मन में 

किसी के आगे शीश ना झुकाएं

केवल तुम्हारे सिवाय कमलासनी 

 जब आएं कोई अरदास लेकर |

जीवन की कठिनाइयां

दिखती हैं सब को

 सुख की छाया कभी कभी 

दुःख में याद तुम्हें करें |

मुझे यह सही नहीं लगता 

जब दुःख में याद करें

 सुख में पीछे ना हटें 

जब तुम्हारी कृपा होगी सर पर 

मधुर गीतों का गुंजन होगा जीवन भर 

यही सुख मिलेगा सर्वश्रेष्ठ |

नमन तुम्हें हे हंस वाहिनी 

अपने वरद  हस्त 

सदा रखना मेरे शीश पर 

सदा तेरे गुण  गान करें 

|होतुम विद्द्या की देवी 

इस गुण से  हमें नवाजो मां

नमन तुम्हें हे ज्ञान दायनी 

मेरी कामना पूर्ण करो माँ

मेरा कष्ट दूर करों माँ |

आशा सक्सेना 











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08 जून, 2023

जंगल में भ्रमण



                                 बागों में झूला डाला उसने

इस मनभावन मौसम में

दिल की जंग में जीता

अपने आनंद को  |

जंगल में घूमने का दिल हुआ उसका

चल दिया एक अजनवी सा

उस मार्ग पर जिधर से नदिया बहती है

कलकल ध्वनि शान्ति में बड़ी मधुर लगती 
कलाकार मन में छुपा जाग्रत हो उठाता 
जीवन जीवंत हो उठता 
कभी उदासी का ख्याल तक नहीं  आता 
यही तो चाहत थी उसकी भी 
जीवन खुशियों में जीने की 
उदासी नहीं कभीछू पाई 
यदि यही पा लिया जीवन में 
बहुत कुछ कर लिया   उसने|
आशा सक्सेना 


07 जून, 2023

शेष जीवन

वय बचपन की बीती 
एक पड़ाव मैंने जीता 
कदम रखा  किशोर वय मैं 
खिल उठी सम उम्र लोगों में 
मुझे प्यारे लगाने लगे संगी साथी 
अपनों के सिवाय यही भूल हुई मुझसे 
अपने तो अपने होते हैं 
मैंने अपनों में गैरों में भेद ण समझा 
यहीं मात खाई मैंने |
धीरे धीरे प्रतिबन्ध बढ़ने लगे 
समाज का दखल भी बढ़ा 
रिश्ते भी आने लगे 
कभी प्यार से समझाया 
कभी वरजा गया मुझे |
अब लगा तीसरी वयआने को है 
योवन आने का इशारा मिला
मुँह में चपलता देख मैं शरमाई |
अब आया वांन  प्रस्त 
बहुत व्यस्त रही तब तक 
अब मेरी विचार धारा बदली 
धर्म कर्म की और हुई आकृष्ट 
अपनी जिम्मेंदारी पूरी करली मैंने 
|अब अंत समय में भ्क़गवत भजन कर रही हूँ 
यही चाह रही मेरी |मेरी देह छोड़ने के बाद 
मेरे कर्मों को याद किया जाए |
मेरा जीवन सफल हो जाए |
आशा सक्सेना 



06 जून, 2023

भोला बचपन

                                                           जब जन्म लिया कान्हां ने 

माता की गोद भरी थी 

मन में उत्साह जगा था 

सब ने बधाई दी मान को 

खुशियों से भरी थी

 कहीं कमी न थी मेरी रौनक मैं 

जी जान से जो मझे मिली थी 

सरल सतर्कजीवन जी लिया 

कभी रोया कभी खुद

 कोड काण्ड किया 

यही मेरा बचपन था 

जिसका इंतज़ार रहा

 यही उसका  बचपन मेरा था

आशा सक्सेना 

01 जून, 2023

ऊंची उड़ान कविता की भरी

 भरी उड़ान पूरी क्षमता से 

किसी की कोई मदद ना चाही 

जब उच्चतम स्तरपहुंची 

ख़ुशी मिली हम को |   

छाछ पी ली फूँक फूँक कर 

चाहे दूध ठंडा  ही रहा 

कल्पना में इसे उबाला है 

जब कि यूँ तो ना  आ रहा ख्याल मेरा |

यहीहै  जिन्दगी का दोहरा रंग 

जिससे बच  कर चली हूँ 

पतंग उड़ाना भी एक कला है 

यह तह भूली नहीं हूँ |

किसी नव गीत का सम्मान किया 

अपने बुद्धि के कौशल से 

या कोई नई विधा से कुछ सीखा है |

नई  विधा पर कुछ लिखना 

उस पर अपनी कलम चलाना 

अपनी ही कोशिश से |

सफलता ने दुलारा हैमुझको  

बहुत आशीष दिया है 

हूँ आज जिस स्थान पर खड़ी

वह नवाजा गया है मुझे 

सम्मान किया गया है |

आशा सक्सेना 

28 मई, 2023

कल्पना के इस दौर में

कल्पना के इस दौर  में

कैसे दूर रहूँ उससे सब ने समझाया भी इतना

कभी कहने में आई यही बात

मन को ना  भाई कैसे |

कविता का कोई रूप नहीं होता

केवल भावनाएं ही होतीं प्रवल 

सुन्दर शब्दों से सजी कविता 

 मन में हिलोरे खा रही है |

प्यार से सजी हुई है

दिलों दीवार में घुमड़ा  रही हैं

कभी नदिया सी बेखौफ  बह रही हैं

अपनी राह से है लगाव इतना

आगे आने वाले राह नहीं भटकते |

यही मन को रहा एहसास

पर मुझे भय नहीं है

अपने ऊपर आत्मविश्वास है इतना

कभी पैर ना फिसले ताकत से रहे भर पूर

यही है अभिलाषा मेरी|

चंचल चपला सी  नदिया 

 प्रकृती में पथ खोज रही है

देती है महत्व उसकी लहराती चाल को 

दीखती है उन्मुक्त बहती नदिया जैसी 

चार चाँद से जोड़े हैं नदियों के उन्मुक्त प्रवाह में| 

आनंद से भर गई मैं प्रकृति के प्रागंन  में 

यही आशा थी मुझको अपनी सोच से

 मुझे एक संबल मिला है आज के इस दौर मैं

जिसे पा कर मैं खुशियों से भर उठी हूँ 

अपने विश्वास पर अडिग खडी  हूँ  मैं |

 मुझे यह गुमान हुआ है कभी किसी ने प्यार ही 

नहीं किया मुझको जब कि मैंने सब कुछ छोड़ा उनपर |

अब लगने लगा है मानों मेरा वजूद ही नहीं 

जी रही हूँ एक बेजान गुडिया सी इस भव सागर में 

कभी खुद का एहसास भीं ना  होगा कल्पना के इस दौर में


आशा सक्सेना