जब भी मैंने मिलना चाहा
सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया
समाचार भी पहुंचाया
फिर भी उत्तर ना आया |
ऐसा क्या कह दिया
या की कोइ गुस्ताखी
मिल रही जिसकी सजा
हो इतने क्यूँ ख़फा |
है इन्तजार जबाव का
फैसला तुम पर छोड़ा
हैं दूरियां फिर भी
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता
कुछ तो कम होने दो
है मन में क्या तुम्हारे
मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |
हूँ बेचैन इतना कि
राह देखते नहीं थकता
जब खुशिया लौटेंगी
तभी सुकून मिल पाएगा |
आशा