21 मार्च, 2018

एहसास



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होता है एहसास मन को
छोटे से छोटा
प्रत्यक्ष हो या परोक्ष
मन होता है साक्षी उसका
जब होती है आहट
पक्षियों के कलरव की
जान जाती हूँ देख भोर का तारा
मन को मनाती हूँ
सूर्य का स्वागत करना है
आलस्य को परे हटा
पैर जमीन पर रख कर 
हो जाती हूँ व्यस्त 
रोज की  दिनचर्या में
व्यस्त समय में एहसास तो होते हैं
पर तीव्रता कम 
जानते हो क्यूँ ?
समय नहीं होता
सोचने विचारने का 
उन पर प्रतिक्रया का
यही एहसास देता है
मन को रवानगी
मन विश्राम नहीं चाहता
देना चाहता है पहचान
 छोटे से छोटे एहसास को 
उसकी छुअन को
पर समय साथ नहीं देता
वह आधे अधूरे को छोड़
पलायन कर जाता 
फिर लौटकर नहीं  आता 
कभी नीले आसमान में
पंख फैलाए उड़ने की चाह में
टकटकी लगा मन उड़ना चाहे
कल्पना में पहुंचे ऎसे स्थलों पर 
जहां कभी गए ही नहीं
पर मन हो जाता मगन  
उसके ही से एहसास से
एहसास हो जाता है गुम
कभी स्वप्नों में कभी छुअन में 
रह जाता है सुप्त भावनाओं में 
है एहसास मात्र मन की सोच  |
आशा


20 मार्च, 2018

हाईकू (परीक्षा)









                                                                 
   
                                                                      १-कब क्यों कहाँ    
प्रश्न अनेको यहाँ
न मिले हल

२-बुद्धि चाहती
पर मन न लगे
कैसे हो हल

३-है क्या जरूरी
सब कुछ हल हो
न किया तो क्या

४-प्रश्न ही प्रश्न
स्वप्न में दीखते
उत्तर नहीं

५-मन की पीर
पीड़ित ही जानता
और न कोई


आशा

17 मार्च, 2018

जीवन की परिभाषा



कभी जीने की आशा
कभी मन की निराशा
कभी खुशियों की धूप
कभी हकीकत की छाँव  
कहीं कुछ खो कर
 पाने की आशा
शायद यही है
जीवन की परिभाषा
मुट्ठी भर खुशियों
गाडी भर झमेले
लेलूं  मैं किसे पहले
सोचने  का  समय कहाँ
यही है फलसफा जिन्दगी का
देने वाला एक
लेने वाले अनेक
जो झोली भर ले आया
अधिक पाने की लालसा में
  थैली फटी  सब व्यर्थ में गवाया
क्या पाया क्या गवाया
है यही गणित जीवन का |

आशा




14 मार्च, 2018

उम्मीद

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, मुस्कुराते हुए, खड़े रहना, बैठे हैं और बच्चा
आज की दुनिया टिकी है 
प्रगति के सोच पर
नन्हीं  सी  आशा पर
उसके विस्तार पर
रहता है हर मन में
एक छोटा सा बालक
जब भी आगे  चलना सीखता है
 असफल होता है पर निराश नहीं
दो कदम आगे बढ़ते ही
आँखों में  आ जाती चमक 
 उत्साह कुलाचें भरता है
प्रोत्साहन के दो शब्द
उसमें  भर देते हैं जोश
पर हार उसके मन को
 कर देती है हताश 
 वह कई कई बार
भर कर नेत्रों में जल
कभी गिरता है उठता है
नकारात्मक विचार मन में 
फिर से किये यत्न में
 भी सफल नहीं  हो पाता
तब नन्हीं  सी  आशा की किरण
दबी कहीं किसी कोने में उभरती 
 हर व्यक्ति में उठती पूरी शिद्दत से
आगे बढ़ने की ललक लिए
फिर से किये यत्न में निराश होता
सोच  हो यदि सकारात्मक
क्या कठिन है इसे करना
सफलता उसके कदम चूमेंगी
है यही मूलमंत्र
उन्नति की राह  का
आकांक्षा पर दुनिया टिकी है
यही सोच मेरी है|
 आशा







13 मार्च, 2018

हाइकू

१-है मन मेरा
सरिता जल जैसा
उर्म्मी उठी

२-माता व् पिता
दो पहिये गाडीके
चलते चलें

३-उमंग भरी
है मन की साधना
सब से खरी

४-होली के रंग
खेले प्रियतम से
उदासी मिटी

07 मार्च, 2018

फेरे



पुष्प की सुरभि से 
हुआ भ्रमर आकर्षित
 पहले लगाते चक्कर पर चक्कर
तब कहीं पुष्प का 
बंधन होता प्रगाढ़ 
है महत्व फेरों का 
जन्म से अंत तक 
पहले बालक मां के
आसपास घूमता 
चक्कर लगाता व रिझाता
जब तक वह गोद में न ले 
नहीं तो रूठा बना रहता 
जब बचपन समाप्त होता
युवा वय को प्राप्त होता 
फेरों के संपन्न हुए बिना
विवाह अधूरा  रहता 
हर फेरा बंधा किसी वचन से 
तभी  वादा खिलाफी 
बाधक होती सफल विवाह में 
तुलसी आँवला बरगद पीपल 
पूजे जाते समय-समय पर 
फिर परिक्रमा लोग देते 
मनोकामना पूर्ती पर 
 परिक्रमा देते  लोग
 प्रभु तेरे चारों ओर
तेरा हाथ हो सब के ऊपर
सृष्टि में हर जीव का
होता चक्र निर्धारित
दिन के बाद रात का आगमन 
ग्रह उपग्रह करते फेरे 
अगर भटक जाएं 
तब न जाने क्या हो ?
जन्म मृत्यु भी किसी के 
जीवन चक्र में बँधे  हैं 
हैं प्रकृति के नियंता 
सुचारू सृष्टी संचालन के लिए 
खुद के बनाए नियमों से बँधे हैं
जलचर थलचर नभचर
सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं
अपने जीवन के लिए |



आशा























04 मार्च, 2018

हाईकू

१-भीगा मौसम 
पर वाली चींटियाँ 
घर बाहर 

२-गाय  भीगी सी
 बैठी सड़क पर
मार जल की

३-ख़ुशी न हुई
क्रोध बहुत आया
गुरूर देख

४-डर  समाया
 मनवा  में अगर
नहीं जाएगा

५-प्राण पखेरू
उड़  चले व्योम में
दर खोजते

६-होली के रंग
खेले प्रियतम से 
उदासी कम

7-मेरी बेटी
है फूल सी कौमल
नजरार ना

८-मेरी सहेली
समय सहायक
सब से स्नेही 
आशा

27 फ़रवरी, 2018

क्यूं हो उदास


क्यूं हो उदास

सांता क्यूं हो उदास आज 
कुछ थके थके से हो 
है यह प्रभाव मौसम का 
या बढ़ती हुई उम्र का
अरे तुम्हारा थैला भी 
पहले से छोटा है 
मंहगाई के आलम  में
 क्या उपहारों का टोटा है
मनोभाव भी यहाँ 
लोगों के बदलने लगे हैं 
प्रेम प्यार दुलार सभी
धन से तुलने लगे हैं
मंहगाई का है यह प्रभाव 
या हुआ आस्था का अभाव 
न जाने कितने सवाल 
मन में उठने लगे हैं
कहाँ गया वह प्रेमभाव 
क्यूं बढ़ने लगा है अलगाव 
भाई भाई से दूर हो रहे 
अपने आप में सिमटने लगे 
क्या तुम पर भी हुआ है वार 
आज पनपते अलगाव का 
या है केवल मन का भ्रम 
या है मंहगाई का प्रभाव 
पर मन बार बार कहता है 
हैप्पी क्रिसमस मेरी क्रिसमस
आज के इस दौर में
खुशियाँ बांटे मनाएं क्रिसमस
इस कठिनाई के दौर में
तुम आये यही बहुत है 
प्यारा सा तोहफा लाए 
मेरे लिए यही अमूल्य  है |
आशा


26 फ़रवरी, 2018

हाईकू




1-ना वे आ पाए
ना मुझे आने दिया
यह क्या किया

2-चैन न पाए
मनवा को सताए
बैरन त्रिया

३-कब क्यों कहाँ
प्रश्न अनेक यहाँ
ना मिले हल

४-बुद्धि चाहती  
पर मन न लगे  
कैसे हों हल
५-है क्या जरूरी
सब कुछ हल हो
ना किया तो क्या

६-प्रश्न ही प्रश्न 
दिखाई दिए स्वप्न 
उत्तर नहीं

७-क्या आवश्यक 
सब  हल करना
ना हुए तो क्या

8-होली के रंग
खेले  प्रियतम से
उदासी दूर

आशा







22 फ़रवरी, 2018

प्रश्न अनेक


लगा प्रश्नों का अम्बार 
देखकर आने लगा बुखार 
सोचते विचारते 
बिगड़े कई साल 
अनजान सड़क कंटकों से भरी
जाने कैसे कदम बढ़ने लगे 
न तो कोई कारण उधर जाने का 
ना ही कोई बाट जोहता 
अनेक प्रश्न फैले पाए 
शतरंज की बिसात पर
 होता था एक ही विकल्प 
जीत अथवा हार 
प्रश्न अनेक और उत्तर एक 
प्रश्नों की लम्बी श्रंखला से
सत्य परक तथ्यों के हल 
न था सरल खोजना 
बहुत कठिनाई से
उस तक पहुंच पाते 
प्रश्न बहुत आसान लगते 
लगन धैर्य व् साहस की 
है नितांत आवश्यकता
क्या है जरूरी ?
हर कार्य में सफलता मिले 
पर हारने से पलायन 
करना क्या है आवश्यक ?

आशा




21 फ़रवरी, 2018

बड़ी मछली छोटी को खाती


सृष्टि के इस भव सागर में
बड़ी छोटी विविध रंगों की मछलियाँ
 बड़ी चतुर सुजान अपना भोजन
 छोटी को बनाती  वह बेचारी
 कहीं भी सर अपना  छुपाती 
खोजी निगाहें ढूँढ ही लेतीं 
तब भी उनका पेट न भरता
 दया प्रेम उनमें न होता 
छोटी  सोचती ही रह जातीं
 कैसे करें अपना बचाव
सिर्फ तरकीबें सोचती पर 
पर  व्यर्थ सारे प्रयत्न होते
 कभी किसी नौका का सहारा लेतीं 
सागर की उत्तंग लहरों से  टकरा कर
 नौका खुद ही नष्ट  हो जाती 
यही सच है कि
बड़ी मछली छोटी को निगल जाती  |
आशा


17 फ़रवरी, 2018

क्षणिकाएं



















१-खेतों में आई बहार 
पौधों ने किया नव श्रंगार 
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता |



२-रंगों का सम्मलेन 
 मोहित करता मेरा मन 
या कोई मारीचिका  सा  
भ्रमित करता उपवन   |

३-दीपक से दीपक जलाओ 
कलुष मन का भूल जाओ
प्रेम से गले लगाओ
 है यही संदेशआज का 
हिलमिल कर त्यौहार मनाओ |

४-दीप जलाओ तम हरो 
हे विष्णु प्रिया धन वर्षा करो 
मंहगाई की मार से 
कुछ तो रक्षा करो |
५- शमा के जलाते ही रौशनी होने लगी
परवाने भी कम नहीं
हुए तत्पर आत्मोत्सर्ग के लिए |

आशा


13 फ़रवरी, 2018

हाईकू

                                                      १-     विरक्त भाव
                                                           चेहरे पे  थकन
                                                     गहन सोच

२-नीर भारत
 हिया मेरा कम्पित
छलके नैन

३-वह  सोचती 
तुलसी का बिरवा
 यादों में खोती 

४-थीं  उदास वे 
पुस्तकों का सान्निध्य 
उदासी दूर 

५-तेरी चाहत
 बनी पैरों की बड़ी 
बढ़ने न दे 

६-वह सक्षम
 निर्भय व साहसी 
नारी सबल 

७-नारी सबला
 अवला न समझो
है आधुनिका 

८-ये कैसे रिश्ते 
राह चलते बने 
वे प्रिय लगे 

आशा






                                                             














09 फ़रवरी, 2018

वैलेंटाइन डे ?

बार बार  हजार बार 
सोचती रह जाती हूँ 
किसीआयोजन के लिए 
कोई दिन ही निर्धारित क्यों 
है उदाहरण  वैलेंटाइन डे का 
क्या प्रेम के इजहार के लिए भी 
दिन निर्धारण है जरूरी  ?
इसके लिए पहले या बाद में 
अपना विचार बताना
 गलत है क्या
देने के लिए लाल गुलाब ही क्यों?
कोई दूसरा नहीं  क्यों  ?
यदि ना मिल पाए तो क्या 
रह जाए प्यार अधूरा ?
प्यार के प्रदर्शन के लिए 
मोहताज होना  विशिष्ट दिन के लिए
क्या गलत नहीं ?
न जाने क्या आकर्षण है 
बाह्य प्रथाओं को अपनाने में 
और अनुगमन करने में
सारी सीमाएं तोड़ देने में |
आशा


08 फ़रवरी, 2018

फूल गुलाब का

                                                      उसने ढूंडा फूल गुलाब का 
  पुष्प तो मिला पर लाल नहीं     
सोचा लाल ही क्यूँ  ?



हैं इतने सारे पर गुलाब नहीं 
जो मिले वही सही 
पुष्प गुच्छ में एक भी लाल न था 
शायद लोगों में पहले सा 
प्यार अब न रहा | 
आशा

31 जनवरी, 2018

कुनकुनी धूप








सर्दी का मौसम
 लगता बड़ा प्यारा
इसी प्रलोभन ने 
 मुझे मारा
कुनकुनी धूप 
और हलकी सी सर्दी
मन न हो
 घर का आँगन
 छोड़ने का
वहाँ बैठना
 और बुनाई करना
जो कभी शौक
 रहा करता था
अब हुआ दूर मुझसे
 मजबूरी में
बहुत खलने लगा है
 अब मुझको
पर किससे अपनी 
व्यथा साझा करूँ
कोई नहीं मिलता
 अपना सा मुझे
मन मार कर 
रह जाती हूँ
कोई नहीं जो
 मदद कर पाए |


आशा

28 जनवरी, 2018

क्षणिकाएं







तुमसे लगाया नेह अनूठा
अपना आपा खो  बैठी
आकांक्षा मन में रही 
कान्हां तुम मेरे हो 
मुझ में हो बस मेरे ही रहो |

आतुर नयन तेरे दर्शन को 
कर्ण मधुर ध्वनि सुनने को 
दीपक जलाया ध्यान लगाया 
कब मनोरथ पूर्ण हो |

आपसी तालमेल देखा आज हुए सम्मलेन में
छिपी हुई प्रतिभा दिखी छोटे बड़े हर वर्ग में
है यहाँ अपनापन भाईचारा ना कि कोई दिखावा
मन होने लगा अनंग इस पर्व में |

 आँखें नम हो रही हैं यह सब तो होता ही रहता है
बहुत कीमती हैं ये आंसू जिन्हें बहाना है मना
ये बचाएं शहीदों के लिए उन पर ही लुटाना
कतरा कतरा अश्रुओं का है अनमोल खजाना |

खिडकी से भीतर झांकती 
   धीरेसे कदम पीछे हटाती 
यह मेरा नहीं है ना ही कभी होगा 
यह कमरा है उसका  उसी का रहेगा
आशा

27 जनवरी, 2018

कतरनें



१-इन्द्रधनुषी
सात रगों से सजी
सृष्टि हमारी

 २-हरी धरती
नीला है आसमान
अद्भुत संगम

3-विभिन्न  रंग
दिखाते सौन्दर्य का
संजोग होता

4-सात  रंगों की
छटा निराली होती
किसी कृति की

५-शिक्षित बेटी
सँवारे परिवार
लाए समृद्धि

६ -सुर न ताल
है केवल धमाल
कर्ण कटु है

७-लगाएं पौधे
हरियाली बढ़ती
मन मोहती

८-सत्य की खोज
कहाँ है असंभव
भक्तों के लिए

९-कहीं न मिले
धरा और गगन
दीखते साथ

१०-सूखी पहाड़ी
छोटी सी है तलैया
घन गरजे

11-उमंग भरी
है मन की साधना
सबसे खरी


आशा