28 अगस्त, 2019

शब्दों का चोला





क्या सोच है मेरा ?
क्यों  स्वप्न बुन रहा हूँ
यह सब किसलिए है
किस के लिए सज रहा हूँ?
मुंह में शब्द सोए पड़े हैं
आँखें खुलना नहीं चाहतीं
फिर भी अपने उद्गारों को
स्पष्ट करना चाहता हूँ मैं
 जनता हूँ  जगहसाई को
पर मझे भय नहीं इसका
जो सच है वह नहीं बदल सकता
तभी अपनी भावनाओं को
शब्दों का चोला पहना रहा  हूँ मैं
मैं कहाँ तक सफल रहा हूँ
कैसे जान पाऊँ ?
फिर भी तुझे अपना बनाने की
कोशिश में लगा  हूँ मैं
जो भी इम्तहान देना पड़े दूंगा
बाक़ी भाग्य पर है निर्भर
 आशा लिए जिए जा रहा हूँ मैं |
आशा



26 अगस्त, 2019

सोच की इन्तहा



अब तो  सोच  की
इन्तहा आम  हो गई
हम क्या थे ?क्या चाहते थे ?
क्या हो गए ?
किसने बाध्य किया
राज फाश करने को
अब तो बात फैल गई
चर्चा सरेआम हो गई
गैरत ने मजबूर किया
पलटवार ना करने को
बात ख़ास थी पर
अब आम हो गई
मन कुंठित हुआ
निगाहें झुक गईं
कसम खाई मौन रहने की
किसी बात पर
बहस न करने की
यदि कुछ जानने  की
इच्छा भी हुई
मन पर नियंत्रण रखने की
आदत सी  हो गई
पहचान अपनी खुद हो गई|
                                                                             आशा

23 अगस्त, 2019

हाईकू






१-जिए जाते हैं
मन पर है  बोझ 
कैसे उतारें 

२-मन भारी है
दुर्दशा देख कर
देश बेहाल

३-स्वतंत्र देश
पर सुकून कहाँ
जिसे खोजते

३-मन में शोक
गहन उपजता
व्यवस्था देख

आशा |

22 अगस्त, 2019

हथकड़ी



बंधे  हाथ दोनो
समाज के नियमों से
है बंधन इतना सशक्त 
तिलभर भी नहीं  खसकता
कोई इससे बच  नहीं पाता 
यदि बचना भी चाहे तो
वह नागपाश सा कसता  जाता
यदि कोई इससे भागना चाहता 
भागते भागते हार जाता
पर कभी यह प्यारा भी लगता
सामाजिक बंधन बने हुए
कुछ नियमों से
हित छिपा होता इनमें
समाज के उत्थान का
हूँ एक सामाजिक प्राणी
वहीं मुझे जीना मरना है
तभी तो भाग नहीं पाती इससे
खुद ही बाँध लिया  है
इसमें अपने को  
अपनी मन मर्जी से  |
आशा


20 अगस्त, 2019

शिला









पति कोप से हुई  श्रापित
शिला हुई  गौतम नारी बेचारी
युग बीता अहिल्या बनी साक्षी
 उस काल की घटनाओं की
कितनी ऋतुएँ आई गईं
शिला पर परत गर्त की चढ़ती गई
इस रूप में जीते जीते वह हारी
 तब निदान   जानना चाहा
तभी ऋषी ने उपाय बताया
त्रेतायुग में जब श्री राम के
चरण रज शिला पर पड़ेगे 
तभी उसे श्राप से मुक्ति मिलेगी
और समय बीता
 वह उस  काल की साक्षी हुई   
राम नाम के जाप से
 वह राम में खो गई
हार नहीं मानी उसने
 पथरा  गईं आँखें  बाट जोहते  
जैसे ही  प्रभु राम के
 चरण पड़े शिला पर
माथे पर चरण रज लगी
अहिल्या श्राप  मुक्त हो गई
 फिर से सजीव  नारी हो गई |
आशा

19 अगस्त, 2019

क्षणिकाएं



१-कितनी मुश्किल में हैं
तब भी खिलखिलाते हैं
सभी गम भूल जाते हैं
तेरी एक मुस्कान  पर  |

२-दो नयना तेरे लगते हों ऐसे
जैसे हों छलकते प्याले शराब के
लगता है सिमट आया है
सारा मयखाना यहीं पर |

३-सभी सुकून पा रहे
डूब कर जाम में
और और की रत लगा रहे
जाम  खाली  ले हाथों में  |

४-छलके  जाम पर जाम इस प्रकार
   मानों  कोई बंदिश नहीं थी उन पर
 दुनिया की   समस्याओं से दूर कर रहा 
उन से मुक्त हो नया कुछ लिख रहा |

आशा



14 अगस्त, 2019

तस्वीर भारत की










                                                      तस्वीर भारत की -

      अखंड सम्रद्ध भारत की छवि
          सोने  की  चिड़िया  की तस्वीर   
 जाने कब से मन में पनप रही थी
बचपन ने आँखें खोली थीं
 परतंत्र देश में
तभी से यह था  अरमान
 कोई बलिदान व्यर्थ ना जाएं 
भारत स्वतंत्र हो पाए
स्वतंत्र भारत में खुल कर
 सांस लेने की कल्पना थी बलवती
बहुत उत्सुकता से
आन्दोलनों की बात सुनते थे
कभी प्रश्न भी करते थे
 इससे क्या लाभ होगा ?
उत्तर से संतुष्ट हो कर
 कल्पना में खो जाते थे
धीरे धीरे कल्पना के पंख लगे
बनने लगी तसवीर अखंड भारत की
स्वतंत्र भारत हुआ
कई कठिनाइयों का किया सामना  
पर दृढ इच्छा शक्ति से
पार किया सभी को
इतने वर्षों के बाद
 धारा ३७० पर कार्य कर
बहुत बड़ी उपलब्धी पाई
अखंड भारत की तस्वीर उभर कर आई |