20 सितंबर, 2022

उलझन जीवन की




                               जीवन जीने का मन न हुआ

कितना भी यत्न किया

एक बार जो मोह की गाँठ लगी

खुल नहीं पाई तोड़नी पडीं |

मन की उदासी कम होने का

नाम ही  नहीं लेती

 बिना बात उलझाए रखती

यह भी  नहीं बताती कारण क्या हुआ |

कारण यदि पता होता

इतनी उलझन न होती

कोई  मार्ग निकल ही आता

जीवन में उदासी न होती |

आखिर कब तक उलझी रहूँगी

दुनिया के प्रपंचों में

किस तरह मुक्ति पाऊँगी

दुनियादारी के झमेलों से |

हे प्रभु मदद करो मेरी

तुम्हारी शरण में मैं आई

इतनी दया करो मुझ पर

मन की शांति बापिस करो मेरी |

आशा सक्सेना 

19 सितंबर, 2022

सरस्वती वन्दना


 

 

                                                        हे वीणा वादिनी स्वर की देवी

मधुर तुम्हारी वीणा का स्वर 

सुनकर  पहुंची तुम्हारे दर  पर 

पाँव पकड़ वंदन किया |

मुझे मालूम है तुम हो  ज्ञान की देवी

थोड़ा  ज्ञान मुझे भी  दे दो 

इतना उपकार करो मुझ पर

मेरा बेड़ा पार लगादो  |

करो भव सागर के पार  

मैंने पूजा की है मनसे

बस एक वर ही माँगा तुमसे

हो तुम विद्द्या की देवी ज्ञान दो |

अज्ञान से दूरी हो मेरी

यही चाह है मेरी

 मेरा बेड़ा पार करो 

बीच भवर में नैया  मेरी

किसी का संबल नहीं मुझको |

जब बेड़ा होगा पार मेरा

नैया पहुंचेगी उस पार 

होगा जय जय कार तुम्हारा

करो उपकार यही मेरा |

16 सितंबर, 2022

सच्चा मोती

 सागर में सीपी 

सीपी में मोती 

मोती में आभा  अद्भुद 

छिपी अन्दर है |

है नायाब मोती 

बहुत मुश्किल से

 मिलता है

 इसकी कांति  कभी

 कम नहीं होती |

 स्त्री के चेहरे पर तेज  

की तुलना की जाती 

 इसके  तेज से अक्सर |

उसकी पवित्रता 

तोली जाती है 

मोती की चमक  से |

सच्चा मोती होता 

 वेशकीमती अनमोल 

आसानी से उपलब्ध 

नहीं होता 

उसकी  चमक न 

  फीकी होती 

तभी तुलना होती 

  उसकी आभा की स्त्रियों के 

मुख  मंडल की आभा से  |

आशा सक्सेना 

14 सितंबर, 2022

असफल निर्णय

 

 

 

क्या कहा जाए ?

कैसे समझाया जाए ?

किसे समझाया जाए ?

आज तक निर्धारण न हुआ

जब भी सोच  विचार किया  

किसी निर्धारण पर

पहुँचने की कोशिश की

असफलता ही हाथ लगी |

किसी निष्कर्ष पर पहुँचाने से पहले ही

वाद विवाद की स्थिति बनी

यही बात आपस में उलझ कर रह गई

कोई निष्कर्ष न निकल पाया |

जिसने भी कोशिश की  थी

मन मसोस कर रह गया

पर अपनी हार सहन न कर पाया

कोशिश करने से पीछे नहीं हटा 

फिर से प्रयत्न किया प्रारम्भ |

आशा सक्सेना

13 सितंबर, 2022

मेरा उद्देश्य

 

लिए चौमुख दियना हाथ में

दिया ढका आँचल से

बचाया उसे हलकी बयार से

  चली साथ में रौशन हुआ समस्त मार्ग 

  आवश्यक नहीं कोई 

 अन्य रौशनी के स्रोत का  

दिग दिगंत चमका देदीप्तिमान हुआ

आगे जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ

फिर क्यों पलट कर पीछे देखूं  |

आगे बढ़ने की चाह में

कोई नहीं व्यब्धान चाहिए

 कोई बाधा उत्पन्न हो यदि उसे दूर हटाना ही है ध्येय मेरे जीवन का

 कभी पीछे न हटने की कसम खाई है |

 जब जीवन के उद्देश्य में सफल रही   

यही होगी पूर्ण सफलता मेरी

मुझे हार मंजूर नहीं

 दिल मेरा टूट जाएगा

फिर जीवंत न हो पाएगा |

एक यही चाह मन में रह जाएगी

कि इस छोटे से 

जीवन काल  में

आगे बढूँ बढ़ती चलूँ

 बिना किसी बाधा के

अपने लक्ष्य तक पहुंचूं

 अपना मंतव्य पूर्ण करूं |

है यही अरमान मेरा 

किसी बाधा से नहीं डरूं

जो भी बीच में आए

 उसे वही समाप्त करूं

 मार्ग अपना प्रशस्त करूं |

कभी हार न मानूं किसी से

अपने ही मार्ग पर चलती चलूँ

ना किसी का अधिकार छीनूँ

ना उसे अपना अधिकार का

 अधिग्रहण करने दूं|

 

12 सितंबर, 2022

हिन्दी की विशेषता

 है हिन्दी हमारी मातृभाषा 

हमें है  प्यार उससे  

कारण नहीं समझ से बाहर 

लिपि है  बहुत  सरल उसकी  |

कितनी भाषाएँ मिलीं है उससे 

 जल में शक्कर मिली हो जैसे |

उन शब्दों   को यदि  खोजा जाए 

वे स्पष्ट नहीं दिखते अलग से 

अपना अस्तित्व  ही खो देते 

 दूध में  शक्कर जैसे |

सरल है   भाषा विज्ञान और व्याकरण   

भिन्न हैं विधाएं लेखन की 

बहुत सम्रद्ध है साहित्य उसका 

अथाह भण्डार भरा पुस्तकों से  |

मन चाहे जितना  अध्यन करो 

मन अतृप्त ही रहता 

तभी कहा जाता है

 हिन्दी है माथे की बिंदिया 

बढ़ता सौंदर्य साहित्य का इससे |

 अन्य भाषा के शब्दों से मिलकर 

 एक सामान व्यबहार होता है यहाँ 

सभी भाषाओं के शब्दों से 

जब मिल जाते  हैं आपस में 

कोई भेद नहीं होता उनसे |

है यही विशेषता मेरी मातृभाषा की 

तभी है प्यारी मुझे हिन्दी दिल से |

आशा सक्सेना 




क्षणिकाएं

 १-ओ आज के प्यारे मौसम 

तुम्हारे इन्तजार नें आँखे तरसी 

 किस कारण नहीं बताया तुमने 

बिना बात इन्तजार में उलझाया तुमने |


२-कभी तेज बारिश कभी सूखा मौसम 

इतना अटपटा व्यवहार किस लिए 

किसने सिखाया तुम्हें ऐसा किसलिए 

अपने अभाव में आम जन को तरसाया तुमने |

३-

जल के अभाव् में कितना कष्ट हुआ होगा  

यह तुम कैसे जानोंगे तुम ठहरे पाषाण ह्रदय 

जो दुर्गति हुई सब की उसे कैसे पहचानोंगे 

तुम्हें नहीं लगाव किसी से हमने तुम्हें पहचान लिया

 है अब क्या फ़ायदा एक ही  बात दोहराने का  

हमने सब भाग्य पर छोड़ दिया है |


आशा सक्सेना