20 अप्रैल, 2023

कैसे अकेले काम करू


 मैंने कभी एक भी  

काम ना  किया  पहले

बहुत कठिनाई हुई

 जब अकेले करना पड़ा सब काम |

दिन भर काम ही काम

क्या यही है  इन्साफ मेरे साथ

सुबह से शाम  तक रहती व्यस्त

कभी किसी काम से नहीं ना कर पाती |

किससे  करू इनकार

है यही जिम्मेंदारी  मेरी

घर की सफाई करू खाना बनाऊँ  

या आगत का स्वागत करू |

यदि आलस्य करू

अपने आप को अपराधी समझूं

 मुझे भी अच्छा नहीं लगता

कैसे अपने को परिवर्तित करू|

कोई मुझे समझाओ मै क्या करू

जब भी काम  करती हूँ

शरीर साथ नहीं देता

दिनभर के काम से थक जाती  हूँ |

क्या कोई तरकीब नहीं

बहुत थकने से बचने के लिए

अपने पर ध्यान दे पाने के लिए

हूँ अकेली कैसे बच पाऊँ घरके कामों की सीमा से |

आशा सक्सेना 

कल्पना लोक के इस दौर में

 

कल्पनालोक  के इस दौर  में

कैसे दूर रहूँ उससे

सब ने समझाया भी इतना

कभी कहने में आई यही बात

मन को ना  भाई कैसे |

कविता का कोई रूप नहीं होता

केवल भावनाएं ही होतीं उसमें

सुन्दर शब्दों से सजी है

 मन में हिलोरे खा रही है |

प्यार से सजी हुई है

दिलों दीवार में घुमड़ा  रही हैं

कभी नदिया सी बेखौफ  बह रही हैं

अपनी राह से है लगाव इतना

आगे आने वाले राह नहीं भटकते |

यही मन को रहा एहसास

पर मुझे भय नहीं है

अपने ऊपर आत्मविश्वास है इतना

कभी पैर ना फिसले ताकत से रहे भर पूर

  चंचल चपला सी बह रही है |

आशा सक्सेना 

19 अप्रैल, 2023

जब मैंने तुम्हें पुकारा



 

जब मैंने तुम्हें पुकारा

तुमने मुझे नजर अंदाज किया

यह तक भूले मैं भी तो लाइन में खड़ी हूँ

तुमसे भेट के  लिए |

 मन को ठेस लगी

पर जान लिया कोई स्थान नहीं  

मेरा  तुम्हारे लिए घर में  

मैं तो खोज रही हूँ तुमको

जानने  के लिए कि तुम कौन हो मेरे

मेरे अपने या कोई गैर

जब यह जान जाऊंगी तुम कौण मेरे  

 तुम्हारे घर में कदम रखूंगी  

इससे पहले पूरी पड़ताल करूगी  

या किसी से सलाह लूगी

 जब संतुष्टि हो जाएगी

अपने कदम आगे बढाऊंगी

अब कोई भूल नहीं करूंगी |

पर सोचती हूँ कहीं समय

ना  निकल जाए हाथो से

 केवल रेत ही रह जाएगी

रिक्त हाथों में |

आशा सक्सेना 


18 अप्रैल, 2023

कैसे तुम को याद करू मैं


                                                            तूम को कैसे  याद करू मै

तुम तो कभी मेरी सुनते ही नहीं

जितनी बार की प्रतीक्षा तुम्हारी

कभी आशीष तक ना  दिया तुमने |

मेर्रे मन को ठेस लगी है

तुमने मुझे अपना समझा ही नहीं

मैंने सबसे अलग तुम्हें माना

सब से विशिष्ट जाना तुम्हें |

तुम्हें ही भजा स्तुति की मैंने

सोच लिया तुम ही हो मेरे

जब भी घंटी मंदिर की बजती

मैं दौड़ी चली आती ,पैर नहीं रुकते मेरे |

तुम राधा के श्याम मीरा के घनश्याम 

मैने तुम से स्नेह लिया है

अपना सब अर्पण किया है

अपना अधिकार नहीं बाटूंगी

 श्याम तुम मेरे हो  मैं हूँ तुम्हारी |

 आत्मिक प्यार है मुझे तुमसे 

 मेरी भक्ती की लाज रखना  

                      सदा साथ रहना मेरे हूँ आश्रित तुम्हारी श्याम

हूँ मैं भक्त तुम्हारी पूरे दिल से |

मेरी जगह और कोई ले

नहीं यह मंजूर मुझे 

                                निगहबानी रखना मेरी |

आशा सक्सेना 

17 अप्रैल, 2023

संतुष्टि और शांति

 





कोरी  कापी  और नया पैन

रोज लिखने के लिए

 टेबल पर रखती पर

पैन ना चलता  |

फिर से कोशिश करती

फिर पैन को फैक देती

कोई उसे फिर से  टेबल पर रखता

 वह ठीक हो जाता |

मालूम ही नहीं पड़ता

अब वह चलने लगा है

यह कैसे हुआ

नहीं जानती |

इन सारे  झंझटों में

मूड ही बिगड़ जाता

बार बार फिर कोशिश करती

पर एक लाइन भी नहीं लिख पाती |

अब और अधिक क्रोध आता

आने वाले  कल पर छोड़

अनमनी हो हाती |

तीन चार दिन की शान्ति हो जाती

ठन्डे दिमाग से लिखने के लिए

घर में ना  उलझती

अब लिख पा रही हूँ |

आवश्यकता है एकांत की

जब लिखूं सही ढंग से

फिर से पढ़ सकूं

यही है मेरा विश्वास मुझे

 आगे बढ़ने में व्यवधान  नहीं  डालता

और संतुष्टि का आभास होता

अपने लेखन से |

आशा सक्सेना    

16 अप्रैल, 2023

काला कागा और काली कोयल


 बैठता 
काला कागला 
घर की दीवार पर 

वह कांव कांव करता सूचना देता

किसी महमान के  आने की  |

ऎसी ही कोयल होती काली 

 पर मीठी तान सुनाती 

सब का मन मोह लेती

 पर बैठती उसी डाली पर

जहां उसका घोंसला होता |

 जब चूजे होने वाले होते

कागा के घोंसले पर कब्जा करती

कोयल चालाक कागा से अधिक

बच्चे उसके भी पल जाते

कागा के बच्चों के संग |

कागा जान ना पाता

चालाकी कोयल की

जब उड़ने जैसे चूजे हो जाते

पंख निकलते ही एक दिन उड़ जाते

घरों दा खाली कर जाते |

कोयल चालाक कागा से अधिक

बच्चे उसके भी पल जाते

कागा के बच्चों के संग |

कागा जान ना पाता चालाकी कोयल की

जब उड़ने जैसे चूजे हो जाते

एक दिन उड़ जाते

घरोंदा खाली कर जाते |

आशा सक्सेना

15 अप्रैल, 2023

किसी ऐतीहासिक स्थल पर जाने की इच्छा

 


धूप का नाम नहीं है

कितना सुहाना है

आज का  मौसम

बाहर जाने का मन होता है|

सबके साथ घूमने फिरने का

जो आनन्द आता है 

मन को प्रेरित करता है

 कहीं दूर जाने का

वहां के वर्णन का  |

 किसी ऐतिहासिक स्थल पर जाए

उसमें छिपी कहानी का आनन्द उठाएं

वहां की सत्य  कहानियां सुन कर

 जानकारी हांसिल कर कुछ लिखें |

जो कुछ लिखा जाता है

बहुत रोचक होता है 

ऐसा करने से जानकारी

मन में सिमट कर रह जाती है|

 बरसों बरस याद रहती है

बहुत उपयोगी होती है 

यही जानकारी बच्चों को

बहलाने के काम आती है|

उनकी योग्यता में बृद्धि होती है

किसी और  को सुनाते है 

बहुत प्रशंसा  होती है उनकी 

जब वे अपनी कहानी ले कर बैठ जाते हैं|

जब कहानी में वे व्यस्त होजाते है

उनके मुंह से कहानी सुनना 

बहुत अच्छ लगता है

जब बच्चों की प्रशंसा होती है |