10 फ़रवरी, 2021

अग्नि परिक्षा

हर युग में महिलाओं ने ही  दी है  अग्निपरीक्षा

अपनी शुचिता  सिद्ध करने के लिए

 यह केवल महिलाओं तक ही सीमित क्यूँ ?

किसी कार्य को सही बताने के लिए |

  कठिन परिक्षा केवल उन्हीं के लिए क्यों ?

क्या पुरुषों  से कोई गलती कभी होती ही नहीं

जब होती है  उसे अपना अधिकार मान लेते है

क्षमा माग पतली गली से निकल लेते  है

उन्हें  यूं ही छुटकारा मिल जाता है |

हर बात की सच्चाई साबित करने  के लिए

महिलाओं पर ही नियम  थोपे जाना

उन्हें  दूसरे  दर्जे की नागरिक समझना

है यह न्याय कहाँ का ?

सतयुग में सीता ने दी थी अग्निपरीक्षा

अपनी  पवित्रता के  प्रमाण के लिए

 भूल हुई  थी उनसे लक्ष्मण रेखा पार  कर

यदि कहना माना होता इतने कष्ट न सहना होते

राम रावण युद्ध न होता |

पुरुष और महिला दौनों   को ही जूझना पड़ता है

हर कठिन समस्या से गुजरना पड़ता है सामान रूपसे

कहने को  महिलाओं की आजादी बढ़ी है

पर सच्चाई है  कितनी |

बाहर महिला उन्नयन की बातें जो करता है

वही घर में महिलाओं पर अत्याचार करता है

दोहरी नीति अपनाता है

यह दोहरी मानसिकता क्यूँ ?

अग्नि परिक्षा देनी हो तो दोनो दें महिला अकेली क्यूँ ?

आशा 















09 फ़रवरी, 2021

चाह मन की


                                                           ना रहा अरमां कोई तब

ना कभी कोई कमी खली

बस एक ही लक्ष रहा

कोई कार्य  अधूरा ना  रह जाए |

दिनभर की  व्यस्तता

कभी समाप्त नहीं होती थी  

 बिश्राम तभी मिलता था

जब आधी रात बीत जाती |

भोर की लाली दस्तक देती

 खिड़की के दरवाजे पर  

पक्षियों का कलरव भी

 आँगन में बढ़ने लगता था |

 अब  समय का अभाव नहीं है

जीवन की गति भी धीमी  है

पर मस्तिष्क बहुत सक्रीय हुआ है

सोच का दायरा  बढ़ा है |

बस यही विचार मन में आते हैं

क्या कुछ छूटा तो नहीं है ?

कोई कार्य अधूरा न रह जाए  

व्यर्थ का  अवसाद मन में न रहे

स्थिर मन मस्तिष्क रहे 

 चिर निंद्रा के आने तक |

आशा

ओस की नन्हीं बूंदे

 


अमृत कलश

Sunday, December 27, 2020

 

ओस की नन्हीं बूँदें

ओस की  नन्हीं बूँदें  

हरी दूब पर मचल रहीं  

धूप से उन्हें  बचालो

कह कर पैर पटक रहीं |

देखती नभ  की ओर हो भयाक्रांत  

फिर बहादुरी  का दिखावा कर

कहतीं उन्हें भय नहीं किसी का  

रश्मियाँ उनका  क्या कर लेंगी |

दूसरे ही क्षण वाष्प बन

अंतर्ध्यान होती दिखाई देतीं  

वे छिप जातीं दुर्वा की गोद में

मुंह चिढाती देखो हम  बच गए  |

पर यह क्षणिक प्रसन्नता

अधिक समय  टिक नहीं पाती

आदित्य की रश्मियों के वार से

उन्हें बचा नहीं पाती |

आशा

08 फ़रवरी, 2021

पक्षियों से ली सीख


                            कबूतर  तुम्हारा  नियमित  आना

समय से दाना चुगना

वख्त की अहमियत समझना

 यही  है मूल मन्त्र जीवन पथ पर 

अग्रसर होने का |

रोज निगाहें टिकी  रहती हैं

 छत पर समूह में एकत्र हो तुम 

  कब आओगे दाना चुगने

 ध्यान वहीं रहता है

कहीं भूखे तो न रह जाओगे |

जब भूख तुम्हारी शांत होती है

मुझे आत्म संतुष्टि मिलती है

जब तृप्त हो व्योम में  उड़ जाते हो

 मैं सोचती हूँ कितनी शान्ति

होती  होगी तुम्हारे मन में |

तुमसे मैंने भी शिक्षा ली है

यह जीवन  है सद्कार्यों  के लिए

परोपकार  का महत्व समझा है

 अपने लिए  जीना ही पर्याप्त नहीं |

आशा 

06 फ़रवरी, 2021

स्वागत बसंत का

 

स्वागत वसंत का

मौसम ने ली है अंगडाई

वादेसबा सन्देश लाई

सारी बगिया महकी

कलियों पर फैली तरुनाई

कोयल की मीठी स्वरलहरी

खीच ले चली बगिया की ओर

सारा उपवन महक रहा

मधुर मनभावन सुगंध से

भ्रमरों की टोली घूम रही

पुष्पों का रस लेने को

रंगबिरंगी तितलियाँ

 भी पीछे नहीं रहीं

पूरा चमन रंगमय हो रहा

विविध  रंग बिखरे हैं

उस छोटीसी बगिया में

पृथ्वी ने श्रृंगार किया है

वसंत के स्वागत में |  

आशा 

सागर सी गहराई तुम में

 


सागर सी गहराई तुम में 

हो इतने विशाल 

कोई ओर न छोर |

पर मन पर नियंत्रण नहीं 

जब भी समुन्दर में 

तूफान आता है 

हाहाकार मच जाता |

ऊंची ऊंची लहरें उठतीं 

 अनियंत्रित होतीं जातीं 

 सुनामी के नाम से 

  दिल दहल जाता है |

कितना विनाश होता   

नतीजा क्या निकलता 

मन दुखी हो जाता 

जानने की इच्छा नहीं  

आगे होगा क्या ?

 कैसा होगा अंजाम ?

कहा नहीं जा सकता |

वही हाल तुम्हारा है 

 होते हो  जब गंभीर 

विशाल शांत सागर जैसे  

बहुत प्यार आता है तुम पर 

पर रौद्र रूप धारण करतें ही 

बड़ा  परिवर्तन आ जाता है |

केवल कटुता ही रह जाती 

मन का प्यार 

कपूर की तरह 

कहीं उड़ जाता  है |

आशा

02 फ़रवरी, 2021

हार जीत में अंतर क्या है

 


 मझे तुमसे बहुत कुछ

सीखने को मिला है

यूँ तो सीखने की

 कोई सीमा नहीं है

पर संतुष्टि नहीं होती

जब तक परीपूर्णता न होती  |

यही पूर्णता आते आते

जीवन बहुत व्यय हो जाता है

है जीवन बहुत छोटा सा 

कब समाप्त हो जाए

 जान नहीं पाती|

सच क्या और झूठ क्या

अंतर नहीं कर पाती

बस यहीं आकर मात खा जाती

तुमने सही सलाह दी थी

   जिसे मैंने अपनी गिरह में बांधा है 

किसी कार्य के पूर्ण होने तक

पीछे कदम नहीं हटाना

 यही है  राम बाण मन्त्र मेरे लिए

जिसका अनुसरण किया है |

तुमसे यह पाकर 

कैसे उऋण हो पाऊंगी 

बस इतना और बतादो 

जीवन में कभी हार का मुंह न देखूं 

यही दुआ दो | 

आशा 

30 जनवरी, 2021


                                                                    चाँद सा गोल चेहरा

रोटी भी उसके जैसी

पर कवि की कल्पना

अब नहीं पहुँचती

उसके चहरे की

और चाँद की
तुलना के लिए |

चाँद का असली रूप देख

कल्पना का घोड़ा

अब नहीं दौड़ता सरपट

उसकी ओर

क्यूँ कि वह जैसा दीखता है

वैसा है है नहीं

मन भय्बीत हुआ है

कहीं वह भड़क तो न जाएगी

उसकी तुलना चाँद से करने पर||

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                                                                               आशा 

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