क्या है अंतर विरह और वेदना में
दौनों में पीड़ा तो
होती है
तन को हो या मन को
कम हो या ज्यादा |
किसी ने सुझाया
उस राह पर जाना ही
नहीं
जहां मन को ठेस लगे
जी जले दिल बेचैन हो
|
मन की ठेस से ही विरह
उपजता
कहीं और से नहीं आता
जो प्रेम करता है वह
विरह से अनजान नहीं |
दिल चूर चूर होता कांच सा
और चुभ जाता कहीं भी
जब रक्त रंजित होता
लहूलुहान हो जाती धरा भी |
शारीरिक वेदना तो
सही जा सकती है
मन को
लगी चोट
सहन नहीं होती |
यही विरह वेदना
चाहे जब सर उठाती है
मन मस्तिष्क को
हिलाकर रख देती
है |
प्रियतम के बिछुड़ने
पर
विरह वेदना होती ऐसी कि
ऊपर से
दिखाई नहीं देती
मन में रिसाव होता
गहरा
अवसाद गहराता जाता इतना
और कोई इलाज नहीं
इसका
केवल अपनों की बापिसी ही
है उपचार विरहणी का |
आशा