22 अगस्त, 2017

नमन तुम्हें हे सिद्धि विनायक



जय गणेश, सिद्धि विनायक, 
चिंताहरण 
नाम हैं अनंत तुम्हारे 
हर नाम में छिपे हैं कई कारण 
कान तुम्हारे गजराज जैसे 
बहुत संवेदनशील और सारयुक्त 
ग्रहण करते
यथा समय बातें सुन सकते 
और निराकरण करते !
है बड़ा उदर तुम्हारा 
मोदक तुमको प्रिय रहते  
जो भी पाता ग्रहण करता !
प्रथम पूज्य गण के रक्षक 
यही तुमसे अपेक्षा 
सजग सदा रहते ! 
जब भी पुकारें दीन दुखी 
सबकी चिंता हरण करते !
नहीं किसीसे बैर भाव 
समभाव सबसे रखते ! 
समदृष्टा होकर निर्णय करते ! 
जब भी कोई आर्त ध्वनि होती 
तुम्हीं प्रथम श्रोता होते ! 
उसकी इच्छा पूर्ण करते ! 
सच्चे मन से जो ध्याता 
मनोकामना पूर्ण करते ! 
तभी तो हर कार्य में 
सर्वप्रथम पूजे जाते 
इसीलिये विघ्नहर्ता कहलाते ! 


आशा सक्सेना 








11 अगस्त, 2017

कृष्ण लीला



ग्वाल बाल साथ ले 
कान्हा ने धूम मचाई 
गोकुल की गलियों में !

खिड़की खुली थी 
घर में छलांग लगाई 
खाया नवनीत 
खिलाया मित्रों को भी 
कुछ खाया कुछ फैलाया 
आहट सुन दौड़ लगाई 
गोकुल की गलियों में !

ग्वालन चली थी 
जल भरने जमुना को 
कंकड़ी मारी मटकी फोड़ी
जमुना तट पर कंदुक खेली 
गेंद गयी जमुना जल में 
 कालिया नाग ने 
दबाई मुँह में 
जमुना में कूद किया 
मर्दन कालिया का 
तभी तो श्यामवर्ण हुआ 
जमुना के जल का 
खूब खेले कन्हाई 
गोकुल की गलियों में !

राधा से की बरजोरी 
फिर कदम्ब तले
सुनाई बंसुरी की 
मधुर तान 
रचाया रास राधा संग 
गोकुल की गलियों में ! 

आशा सक्सेना 


04 अगस्त, 2017

बिखराव



बदले की भावना के बीज 
हर कण में बसे हैं 
भले ही सुप्त क्यों न हों 
जलचर, नभचर और थलचर 
सबके अंतस में छिपे हैं ! 
जब सद्भाव जागृत होता 
मानस अंतस में अंगड़ाई लेता 
कहीं सुप्त भाव प्रस्फुटित होता 
जड़ें गहराई तक जातीं 
डाली डाली पल्लवित होती 
जब किसीका सामना होता 
खुल कर भाव बाहर आता
एक से दो , दो से चार 
आपस में जुड़ जाते 
फिर समूह बन आपस में टकराते 
द्वंद्व युद्ध प्रारम्भ होता 
जिसका कोई अंत न होता 
आज का समाज 
बिखराव के कगार पर है 
यही तो कलयुग का प्रारम्भ है ! 


आशा सक्सेना 


01 अगस्त, 2017

आई तीज हरियाली



आई तीज हरियाली 
अम्मा ने रंगा लहरिया 
पहनी चूनर धानी-धानी 
उसकी शान निराली 
हाथों में मेंहदी लगा 
महावर से पैर सजाये 
पहने पायल बिछिये 
छन-छन बजने वाले 
आटे की गौर बना कर 
पूरी पूए का भोग लगाया
आँगन में नीम तले
झूला झूल सावन के 
गीत गाये 
बड़े पुराने दिन 
फिर याद आये  
कुछ अंतरे याद रहे 
कुछ विस्मृत हुए 
यह सोच प्रसन्नता हुई 
हमने रीति रिवाज़ 
को कायम रखा 
इस परम्परा को 
आने वाली पीढ़ी 
कौन जाने 
निभाये न निभाये ! 



चित्र - गूगल से साभार 

आशा सक्सेना 



28 जुलाई, 2017

नैनों में सुनामी




दो नैनों के नीले समुन्दर में 
तैरती दो सुरमई मीन 
दृश्य मनमोहक होता 
जब लहरें उमड़तीं 
पाल पर करतीं वार 
अनायास सुनामी सा 
कहर टूटता 
थमने का नाम नहीं लेता ! 
है ये कैसा मंज़र 
न जाने कब 
नदी का सौम्य रूप 
नद में बदल जाता ! 
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते हैं 
निशान अपने छोड़ जाते हैं ! 


आशा सक्सेना 







23 जुलाई, 2017

कुण्डली हाइकू



गाड़ी न छूटे
वक्त पर पहुँचो 
पकड़ो गाड़ी  

दबंग बनो 
किसीसे मत डरो
रहो दबंग 

राज़ की बात 
किया जो परिहास 
दुःख का राज़ 

दिया जलाया 
घर भी जला दिया 
क्यों दर्द दिया 

जागृत नैन 
सचेत तन मेरा 
मन जागृत 

खिलाये फूल 
थोड़ी सी भी रिश्वत 
बिना खिलाये 

आया सैलाब 
छिपा है आफताब 
तूफ़ान आया 

हवा जो चली 
पाश्चात्य फैशन की 
बिगड़ी हवा 

हुई आहट
द्वार पर किसकी 
आमद हुई ! 

सावन आया 
चमके बिजुरिया 
भाया सावन ! 

आशा सक्सेना 

20 जुलाई, 2017

मनमीत



फिर एक बार आनन पर 
मीठी मुस्कान आई है ! 
जाने कैसी है बात 
पुन: चमक आई है ! 
हर शब्द साहित्य का 
कुछ तो अर्थ रखता है 
हर अर्थ में नव भाव हैं 
हर भाव में एक बंधन है 
इस बंधन में स्पंदन है 
यहीं स्पंदन में है 
निहित भाव प्रेम का 
जिसने प्यास जगाई है !
यही भाव नहीं बदलते हैं 
स्थाई भाव बंधन 
प्यार के संचार के 
जिसमें है अनुराग भरपूर 
दमकता आनन दर्प से 
दर्प का नूर कभी न मिटता 
यही है निशानी सच्चे साथी की 
जो किताबों से है दूर 
पर सत्य के नज़दीक 
हर पल नया अहसास 
जगाने में लगा है ! 


चित्र - गूगल से साभार 
आशा सक्सेना 




16 जुलाई, 2017

न आई वर्षा



चहुँ ओर घिरे बादल 
बरसा न एक बूँद पानी 
जन-जन बूँद बूँद को तरसा 
बेहाल ताकता महाशून्य में 
यह कैसा अन्याय 
कहीं धरा जल मग्न 
कहीं सूखे से बेहाल 
आखिर यह भेद भाव क्यों 
क्यों नहीं दृष्टि समान 
कहीं करते लोग पूजा अर्चन 
बड़े-बड़े अनुष्ठान 
कहीं उज्जैनी मनती 
कहीं होते भजन कीर्तन 
यह है आस्था का सवाल 
हे प्रभु यह कैसा अन्याय 
जल बिन तरस रहा 
जनमानस का एक तबका 
दूसरा करता स्वागत वर्षा का 
दादुर मोर पपीहा करते आह्वान 
वर्षा जल के आने का 
कोयल मधुर गीत गाती 
पास बुलाती अपने जीवन धन को 
क्यों नहीं आये अभी तक 
देती उलाहना प्रियतम को 
धरा चाहती चूनर धानी 
अपने साजन को रिझाने को ! 


आशा सक्सेना 

13 जुलाई, 2017

नयी राह

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जब कोई अंग अक्सर कहने लगे 
रुक रुक रुक रुक 
समझ में आये 
कहीं कोई अकारण ही 
कहीं भी रुक जाए ! 
कभी परिवर्तन स्थान का होता 
कभी परिवर्तन सोच का होता ! 
कहीं मन में बिखराव होता 
तो जीवन के अंधे मोड़ पर 
कहीं किसी जगह 
केवल ठहराव आता ! 
मन को इस परिवर्तन की 
आदत सी हो गयी है ! 
दुनिया व्यर्थ सी लगती है 
जीवन में सब अकारथ है 
कहीं भी कुछ ऐसा नहीं है 
जिससे मन जुड़ा हो ! 
दिल की बगिया 
अकारण ही उजड़ने लगी है ! 
रंग बिरंगे फूलों की क्यारियों में 
फूल बेरंग हो गए हैं ! 
सूख गए हैं ! 
पर एक अनोखी उड़ान ने 
नई दुनिया के द्वार पर 
एक नई राह खोली है ! 
जीवन में हर पल नया है 
और इस पल से 
इसी मार्ग पर चल पड़ा है ! 
सुखद है या दुखद 
यह तो पता नहीं 
पर कुछ तो नया है 
जो मन को भाता है ! 


आशा सक्सेना 





11 जुलाई, 2017

प्रश्न चिन्ह

प्रश्न चिन्ह तस्वीरें के लिए चित्र परिणाम


ज़िंदगी के हर मोड़ पर 
खड़ा है एक प्रहरी 
सवाल या निशान लिए 
हर प्रश्न चिन्ह रोकता है राह 
मन में भभकता गुबार लिए 
हर प्रश्न का निर्धारित उत्तर 
पर बहुत से अभी भी अनुत्तरित 
बहुत उलझन है इन्हें सुलझाने में 
प्रयत्न बहुत करती हूँ 
पर उदास हो जाती हूँ 
जब इन्हें सुलझा नहीं पाती !
इन अनुत्तरित प्रश्नों का हल 
कहाँ मिलेगा नहीं जानती 
फिर भी प्रयत्न थमते नहीं 
मैं चारों ओर से 
भँवर जाल में फँस गयी हूँ 
और हर प्रश्न में असफल हो रही हूँ ! 
क्या है कोई मार्ग दर्शक 
जो मुझे सही उत्तर तक पहुँचाएगा ! 
या यूँ ही हार जाऊँगी
नहीं जानती क्या है प्रारब्ध में 
फिर भी आशा पर जीवित हूँ !
कोई तो मार्गदर्शक आयेगा 
जो सच्ची राह दिखाएगा ! 

आशा सक्सेना 






06 जुलाई, 2017

यायावर

घुमक्कड़ - तस्वीर के लिए चित्र परिणाम

हूँ यायावर 
घूमता हूँ जगह-जगह 
लिए भटकते मन को साथ 
हूँ गवाह 
बदलते मौसम का 
कायनात के नए अंदाज़ का 
कभी काले भूरे बादलों का 
तो कभी गर्मी से 
तपती धरा का 
कड़कड़ाती ठण्ड में 
ठिठुरते बच्चों का 
तो पावस ऋतु में 
मनोहारी हरियाली का 
जब वृक्षों ने पहने 
नए-नए वस्त्र 
हरे-हरे प्यारे-प्यारे 
कभी मन ठहरता 
इन नज़ारों को आत्मसात 
करने के लिए 
पर यायावर अधिक 
ठहर नहीं पाता 
चल देता अगले ही पल 
किसी और नयी 
मंज़िल की ओर ! 


आशा सक्सेना 

02 जुलाई, 2017

प्रवंचना


mystry - pics के लिए चित्र परिणाम

सूखे बगिया के फूल 
ना बरसा पानी 
है यही कमाल 
प्रीत की रीत 
न तुमने जानी ! 
जलते दिए की  
रोशनी तो देखी 
पर लौ की जलन 
न जानी ! 
फूलों की खुशबू 
तो जानी 
पर काँटों की चुभन 
न जानी ! 
प्रेम की बातें केवल 
किताबों तक रह गयीं 
सत्य कहीं खो गया 
प्रेम का माया जाल तो देखा 
प्रेम की प्रवंचना 
न जानी ! 
पायल की छम छम 
तो देखी 
घुँघरू की बात 
न मानी ! 


आशा सक्सेना !  


28 जून, 2017

हम किसीसे कम नहीं



आधे अधूरे समस्त अंग 
यदि एक अंग का छोटा सा भी भाग 
अनियंत्रित हो जाए 
मन विचलित हो जाए ! 
एक-एक अंग होता उपयोगी 
यदि उसका कोई भाग खराब होता 
तब शरीर पर 
बड़ा विपरीत प्रभाव होता ! 
और तो और स्वस्थ अंग का भी 
सुचारू रहना बाधित हो जाता ! 
विश्वास डगमगाता 
और यदि वापिस आता 
वह दबंगई न संजो पाता ! 
हर बार एक अंग के संतुलन खोने से 
दूसरा भी हार जाता ! 
लेकिन जब किसी दिव्यांग को 
सक्रिय सक्षम देखते हैं तो 
मन ही मन उसे सराहे बिना 
नहीं रह पाते ! 
और मन में विचार आता है 
जब ये सब सक्षम हैं 
हर कार्य करने में तो 
हम जैसे सामान्य व्यक्ति 
क्यों नहीं जीत सकते 
किसी भी कठिनाई को !
यह सोच ही मन में 
ऊर्जा भर जाती है ! 
उत्साह संचरित कर जाती है !


आशा सक्सेना 

20 मई, 2017

आइना



है वह आइना तेरा
हर अक्स का हिसाब रखता है
तू चाहे याद रखे न रखे
उसमें जीवंत बना रहता है
बिना उसकी अनुमति लिए
जब बाहर झाँकता है
चाहे कोई भी मुखौटा लगा ले
बेजान नजर आता है
यही तो है कमाल उसका
हर भाव की एक एक लकीर
उसमें उभर कर आती है
तू चाहे या न चाहे
मन की हर बात वहाँ पर
  तस्वीर सी छप जाती है
चाहे तू लाख छिपाए
तेरे मन के भावों की
परत परत खुल जाती है
दोनों हो अनुपूरक
एक दूसरे के बिना अधूरे
है वह आइना तेरे मन का
यह तू क्यूँ भूला |


आशा


17 मई, 2017

आदत वृद्धावस्था की





एक किस्सा पुराना
बारबार उसे दोहराना
है वृद्धावस्था का
अन्दाज पुराना
कोई सुने या न सुने
मजा आता है
उसे जबरन सुनाने में
अब तो आदत सी
हो गई है
एक ही बात
दस दस बार
दोहराने की
हर बात पर अपनी 

मनमानी करने की
जिद्द ठान लेने की
सही है की
मोहर लगा देने की
कोई हँसे या न हँसे
खुद ठहाके लगाने की |



आशा

12 मई, 2017

बिल्ली

एक बिचारी
 छोटी सी बिल्ली
न जाने कैसे
 घर अपना भूली
भाई बहिन से बिछड़ी 
 भूखी फिरती 
मारी मारी 
म्याऊं म्याऊं करती 
अपनी ओर 
आकृष्ट करती
चूहों का लगता अकाल 
या शिकार न कर पाती
उन्हें अभी तक
 पकड़ ना पाती 
अपनी क्षुधा मिटाने को 
दूध ही मिल पाता
जब दूध सामने होता
उसकी आँखों में 
चमक आजाती
 जल्दी से चट कर जाती
अपनी भूख मिटाती 
जब भी दूध नहीं मिलता 
अपना क्रोध जताती 
घर में आने की
 कोशिश में 
ताका झांकी करती 
दूध यदि
 खुला रह जाता
सारा चट कर जाती 
किसी की निगाह
पड़ते ही 
चुपके से दुबक जाती 
अवसर की तलाश में रहती
दरवाजा खुला देख
भाग जाती 
कभी दूध गरम होता 
उसका मुंह जल जाता 
क्रोधित हो फैला देती 
जोर जोर से गुर्राती
अब तो  वह
ऐसी  हिल गई है 
समय पर  आती है 
दूध ख़तम होते ही 
मुंह अपना चाटती है 
है सफाई की दरोगा 
जाने कहाँ  चली जाती है
जिस दिन वह ना आए 
बहुत याद आती है |
|
आशा





06 मई, 2017

जल की कमी जब हो





तप रही धरा
हुए लू से बेहाल
पर घर के काम
कभी न रुकते
सुबह हो या  शाम
चिंता ही चिंता
लगी रहती
खाली पड़े घट
याद करते
फिर बावड़ी
 रस्सी व गागर
इसके अलावा
कुछ न दीखता
चल देते कदम उस ओर
संग सहेली साथ होतीं
पता नहीं कब
वहाँ पहुँचते
 सीढ़ियाँ उतरते 
कभी थकते 
कुछ देर ठहरते
गहराई में 
जल दर्शन पा
मन में खुश हो लेते
जल गागर में भरते
कई काम 
मन में आते
ठन्डे पानी में
पैर डालते 
पर और काम
याद आते ही
 भरी गागर
सर पर धर
सीधे घर की
राह पकड़ते
यह रोज का है
खेल हमारा
इससे कभी न धबराते 
पर जल व्यर्थ न बहाते |
|
आशा



28 अप्रैल, 2017

आस अभी ज़िंदा है




जब साँझ का धुँधलका हो
मन कहीं खोया हुआ हो
  सूचना होगी ऐसी
मन में उदासी भर देगी
पर हर वक्त का 
 नकारात्मक सोच
जीवन का सुकून हर लेगा
यदि दीप जलाने का मन ना हो
  जान जाइए समय विपरीत हुआ है
बेमन हो दीप जलाया भी
कब तक बाती जलेगी
धीमी लौ होते ही
दीपक की पलकें झपकेंगी
बंद आँखों में झाँक कर देखिये
वहाँ कोई सपना सजा है
दीप बुझ भी गया तो क्या
कहीं जीवन में रस भरा है
यही अंदाज़ जीने का
आशाओं पर टिका है
जब तक साँस बाकी है
आशा का दीपक जल रहा है
दीप बुझ गया तो क्या
मन में आस अभी ज़िंदा है |

आशा

26 मार्च, 2017

प्राकृतिक अभियंता


तिनके चुन चुन
 घरोंदा बनाया 
आने जाने के लिए
 एक द्वार लगाया 
 मनोयोग से
घर को सजाया
दरवाजे पर खड़े खड़े 
अपना घर निहार रही 
देख दस्तकारी  अपनी
फूली नहीं समा रही 
कभी आसपास उड़ती 
बच्चे देख खुश होती 
अचानक अनजानी आशंका 
उसके मन में उपजी 
कहीं कोई घर न गिरादे 
बच्चों को हानि ना पहुँचाए 
इसी लिए है सतर्क 
दे रही सतत पहरा 
पूरी सावधानी से |

आशा


23 मार्च, 2017

फूलों की होली


रंग में भीगा
भीगा सा दीख रहा
रंगा हुआ पलाश
अपने ही फूलों से
भास्कर की किरणों ने
किया सराबोर उसे
प्राकृतिक नारंगी रंग से
अब फूलों की
बहार है तैयार 

गुल गैंदा संग
होली खेलन को
भक्त भी तैयार
अपने राधा किशन से
फूलों की होली
खेल रहे भक्त
मथुरा में राधा रमण से |
आशा


22 मार्च, 2017

बांसुरी कान्हां की

प्रश्न अचानक
 मन में आया 
राधा ने जानना चाहा 
है यह बांस की बनी
 साधारण सी बांसुरी
पर अधिक ही प्यारी क्यूं है 
  कान्हां तुम्हें  ?
इसके सामने मैं  कुछ नहीं 
मुझे लगने लगी 
अब तो यह सौतन सी 
जब भी देखती हूँ  उसे 
विद्रोह मन में उपजता 
फिर भी बजाने को 
उद्धत होती 
जानते हो क्यूं ?
शायद इसने 
अधर तुम्हारे चूमे 
उनका अमृत पान किया 
तभी लगती बड़ी प्यारी 
जब मैंने इसे चुराया 
बड़े जतन  से इसे बजाया 
स्वर लहरी इसकी
तुम्हें बेचैन कर गई
की मनुहार कान्हा तुमने 
इसे पाने के लिए 
मैं जान गई हूँ
इसके बिना तुम हो अधूरे
यह भी अधूरी तुम्हारे बिना 
चूंकि यह है तुम्हें प्यारी 
मुझे भी अच्छी लगने लगी |
आशा





19 मार्च, 2017

मौसम चुनावी



रहा मौसम चुनाव का
प्रत्याशियों की धमाल का
यह जब हाथापाई तक पहुंचा
ना शर्म रही न लिहाज रहा
वक्त भी क्या कमाल आया है
पहले जो न देखा आज देखा है
आवाज लाउडस्पीकर की
किसी को सोने नहीं देती
यह तक भूल जाते हैं
कि कहीं कोई बीमार है
या परीक्षा का समय है
बस धमाल ही धमाल है
शिक्षा दें भी तो किसे
कभी अनुशासन जाना नहीं
यही जब नेता होंगे
क्या विरोधी क्या सत्ता धारी
लोक सभा विधान सभा में
अखाड़े का आनंद देंगे
ऐसा उत्पात मचाएंगे
कान बहरे होने लगेंगे
आपस में तालमेल नहीं
भीतर क्या बाहर क्या
ये देश को क्या सम्हालेंगे
वक्त भी क्या कमाल आया है
देश पर संकट का साया है |
आशा