02 मार्च, 2021

मेरे मन के मीत

                                     


क्यूँ विसराया मुझे

मेरे मन के मीत

मेरी क्या रही खता

जो तुम भूले मुझे |

मैंने रात भर जाग कर 

राह देखी तुम्हारी 

फिर क्यूँ मुझे विसराया

 दिया इन्तजार बदले में |

क्या तुम्हारे दिल में

मेरे लिए कोई जगह नहीं है

या मुझमें कोई

आकर्षण नहीं है |

क्यूँ  किसी और को

अपनाया तुमने

मन बैरागी  होने लगा है  

मैंने तो अपना

 तन मन धन सब वैभव

  सोंप दिया है   तुम्हें |

पर तुमने  दिल से

कभी न अपनाया मुझे

मेरे ही साथ

यह दुभात क्यूँ ?

 आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                                                    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

01 मार्च, 2021

आओ खेलें खेल

 


आओ खेले खेल

 राधा और कान्हां  का

तुम मेरी राधा बन जाओ

मैं हूँ  तुम्हारा कान्हा |

बरसाने से जल भरने आई पनिहारन  

पर मान लिया मैंने शक्ति अपनी तुम्हें

तुमने मुझे क्या समझा |

  भोलाभाला नन्हा सा  चोर माखन का

या करील की  झाड़ियों में   छिपे किशोर

  मोहन बंसीवाले  की छवि देखि है मुझमें

कैसा रूप देखना चाहोगी मेरा  आज के  खेल में |

मन मोहन मैं कुछ भी नहीं चाहती तुमसे

इस बाँसुरी के सिवाय क्यूँ कि

 वह तुम्हे लगती है अधिक  प्यारी मुझसे

वह सौतन सी लगती है मुझे  |  

28 फ़रवरी, 2021

राह भटका एक पक्षी



हूँ एक प्रवासी पक्षी  

समूह से बिछुड़ा हुआ

दूर देश से आया  हूँ

पर्यटन के लिए |

बदले मौसम के  कारण

 राह भटका  हूँ

समूह से बिछड़ गया  हूँ

पर अब तक नहीं हारा हूँ |

 नसीहत ली है मैंने जरूर

जब कहीं बाहर जाना हो

 अपने समूह का साथ

कभी न छोड़ना  चाहिए  |

चाहे मन न मिले सब से

सामंजस्य आपस में करना सीखो

नहीं तो राह भटक जाओगे

 जिद्द से परेशानी में उलझ जाओगे |

नया कोई न आएगा

तुम्हे राह दिखाने

यह सभी समझ जाएंगे

क्यूँ तुम सब से  बिछड़े हो |

आशा

 

27 फ़रवरी, 2021

हाईकु ( सावरिया )

 


१-मेरे दुलारे
मन मोहन प्यारे
माँ मन हारे
२-तुझे देखती
तन मन भूलती
मेरी अखियाँ
३-सारा जहान
खोज रहा तुमको
जाने किधर
४-हिम कणिका
ये हैं दवा के लिए
बड़ी कीमती
५-हे सावरिया
थाम तुम्हारा हाथ
हुई बाबरी
आशा




25 फ़रवरी, 2021

स्वप्नों का इतिहास



 स्वप्नों का इतिहास सजीला

कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा मैंने

इतिहास तो इतिहास है

मैंने भूगोल में  भी पढ़ा है|

प्रतिदिन जब सो कर उठती हूँ

अजब सी खुमारी रहती है

कभी मस्तिष्क रिक्त नहीं रहता

 उथल पुथल तो रहती ही है |

यदि एक स्वप्न ही 

रोज रोज आने लगे

  कहीं कोई अनर्थ न हो जाए

शुभ अशुभ के चक्र में फंसती जाती हूँ |

कई  पुस्तकें टटोलती हूँ

कहीं कोई हल मिल जाए

पर कभी कभी ही

यह  सपना सच्चा होता है |
महत्व बहुत दर्शाता है

 स्वप्नों का आना जाना

हर स्वप्न कुछ कह जाता है

ऐसा इतिहास बताता है |

 बड़े युद्ध हुए है इन के कारण

खोजे गए शगुन

अपशगुन के कारण |

पर  यह भी  कहा जाता

मन में हों जैसे विचार

 वैसे ही सपने आते  

वही इतिहास की पुस्तकों में

सजोकर रख दिए जाते हैं |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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24 फ़रवरी, 2021

इमली खट्टी है



हे इमली के पेड़

तुम्हारे स्वभाव में

इतनी खटास क्यूँ ?

क्या तुम कभी

 मीठे हुए ही नहीं |

क्या तुम्हें  मीठी बाते

 पसंद नहीं आतीं

हर समय खटास

 भरी रहती है

तुम्हारे मन में |

यहाँ तक कि

 पत्तियाँ भी खट्टी

इतनी खटास क्यूँ ?

क्या कभी मीठे फल

चखे ही नहीं

या तुम्हारे दिल ने ही

 स्वीकारे  नहीं |

कभी तो मन तुम्हारा भी

 होता होगा  

कि जो तुम्हें खाए

तारीफ करे अरे वाह

कितनी मीठी है इमली |

पर वह है स्वप्न

तुम्हारे लिए

ना कभी मीठे हुए

ना भविष्य में होगे

जैसे हो वैसे ही रहोगे |

आशा 

23 फ़रवरी, 2021

कान्हां तुम न आए


                                                             कान्हां तुम  न आए मिलने

जमुना किनारे

वट वृक्ष के नीचे

 रोज राह देखी तुम्हारी

 पर तुम न आए |

इतने कठोर कैसे हुए

यह रंग बदला कैसे

तुमने वादा किया था

आने का यहीं पर  |

आए  पर छिपे रहे  करील की

 झाड़ियों के पीछे

है यह कैसा न्याय प्रभू

 तुमने बिसराया मुझे | 

कहाँ तो कहा  कहते थे

जी न पाओगे मुझसे बिछुड़ कर

पर मैंने तुम्हें पहचान लिया है

तुम रह नहीं सकते

बांस की मुरली के  बिना  |

तुमने मुझे भरमाया

अपनी शक्ति मुझे बताया

पर यही गलत फहमी रही

मैंने तुम्हारी बात को सच माना |

राह देखी दिन रात तुम्हारी

पर तुम न आए

तुम तो मथुरा के हो गए

फिर लौट न पाए दोबारा |

मेरा विरही मन

 तुम्हारी राह देखता रहा

नयन धुधले हुए हैं 

वाट जोहते जोहते |

 श्याम तुम कब आओगे

मेरी मनोकामना पूर्ण करोगे

तुम भूले हो अपना वादा

पर मैं नहीं भूली अब तक  |

आशा

 

22 फ़रवरी, 2021

स्वप्नों की चौपाल

स्वप्नों की चौपाल सजी है
कोई व्यवधान न आने दूंगी
बंद आँखों पर चश्मा चढ़ा है
चित्र धूमिल न होने दूंगी |
एक ही अरमां रहा शेष अब
जागते हुए भी उसी में खोई रहूं
मेरा है विश्वास अडिग यह
भावनाओं पर नियंत्रण रखूँ |
केवल कल्पना ही कल्पना हो
और न हो कोई ठोस कार्य
क्या यह गलत नहीं है ?
दिन रात सपनों में खोए रहना
जीवन ऐसे नहीं चलता है |
मनुज को अकर्मण्य बना देता है
इसी लिए ठोस धरातल पर
सजाऊँगी चौपाल स्वप्नों की
वहीं उन्हें साकार करूंगी |
आशा

21 फ़रवरी, 2021

चंचल चपला हिरणी जैसी

 


कभी चंचल चपल हिरनी जैसी

दौड़ती फिरती थी  बागानों में

अब उसे  देख  मन में  ईर्षा होती

क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |

इतनी जीवन्त न हो पाई

बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने

लम्बा  समय काट दिया है 

अब घबराहट होने लगती है |

और कितना समय रहा शेष

कैसे जान पाऊँ कोई मुझे बताए

क्या बीता समय लौट कर आएगा

मुझमें साहस का संचार होगा |

फिर से कब आत्म विश्वास जागेगा

पर शायद यह मेरी कल्पना है

कभी सच न हो पाएगी

जिन्दगी यूं ही गुजर जाएगी |

आशा