है जब तक
प्राणों का आकर्षण
भरमाया सा
मद मोह माया से
छला जाता हूँ
मन के मत्सर से
अनियंत्रित हूँ
बेहाल हुआ
मेरे वश में नहीं
न अपना है
नहीं चंचल चित्त
ना ही वर्जना
तब भी अपनों ने
टोका ही नहीं
अनजान व्यक्ति ने
दी है हिम्मत
बढाया मनोबल
शूरवार हो
फिर कायरता कैसी
साहस बढ़ा
अंतर आत्मा
जागी
कर्मठ हुआ
निर्मल जीवन का
समझा अर्थ
हुआ कर्तव्य निष्ठ |
आशा