09 अप्रैल, 2013

नव वर्ष

आप सब को नव वर्ष के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं यहाँ नव वर्ष कैसे मनाया जाता है देखिये :-

नव संवत्सर का प्रथम दिवस
घर घर सजे दरवाजे 
साड़ी की गुड़ियों से 
  शुभ कामनाएं दे रहे परस्पर 
प्यार से गले मिल कर 
नौ दिन तक उपवास करते 
महिमा गाते दुर्गा माँ की 
जौ,तिल घी लौंग की आहुति दे
 हवन करते
वायुमंडल की शुद्धि करते
पूरम पूरी ,गुजिया और
देते प्रसाद चने की दाल का 
सौहाद्र का इजहार करते 
कच्चे आम की कैरी का पना 
लगता बड़ा स्वादिष्ट
आज भी है परम्परा इस दिन
सुबह नीम की कोपल खाने की
हल्दी कुमकुम  देने की 
भर गोद आशीष लेने की |
नव वर्ष हो शुभ  सभी को 
कामना है यही 
हर बरस से अच्छा हो्
सद ्भावना है यही |

वैसे तो यह परम्परा महाराष्ट्र की है पर यदि सब लोग इतनी खुशियाँ इसी प्रकार बांटे तो जितना आनंद मिलेगा शायद कम हो |
आशा



07 अप्रैल, 2013

मन की पीर

अनाज यदि मंहगा हुआ ,तू क्यूं आपा खोय |
मंहगाई की मार से बच ना पाया कोय ||
 
कोई भी ना देखता , तेरे मन की पीर  |
हर वस्तु अब तो लगती ,धनिकों की जागीर ||

रूखा सूखा जो मिले ,करले तू स्वीकार |
उसमें खोज खुशी अपनी ,प्रभु की मर्जी जान ||
 
पकवान की चाह न हो ,ना दे बात को तूल |
चीनी भी मंहगी हुई ,उसको जाओ भूल ||

वाहन भाडा  बढ़ गया , इसका हुआ प्रभाव  |
भाव आसमा छु रहे ,लगता बहुत अभाव  ||

इधर उधर ना घूमना ,मूंछों पर दे ताव  |
खाली यदि जेबें रहीं ,कोइ न देगा भाव  ||

भीड़ भरे बाजार में ,पैसों का है जोर  |
मन चाहा यदि ना मिला , होना ही है बोर ||

आशा


05 अप्रैल, 2013

बोझिल तन्हाइयां

आँखों की आँखों से बातें 
ली जज्बातों की सौगातें
कुछ हुई आत्मसात
शेष बहीं आसुओं के साथ
अश्रु थे खारे जल से 
साथ  पा कर उनका 
हुई नमकीन वे भी 
यह अनुभव कुछ कटु हुआ 
वह भाप बन कर उड़ न सका 
हुई बोझिल तन्हाइयां 
मलिन मन मस्तिष्क हुआ 
धीरज कोई न दे पाया 
कटु सत्य सामने आया 
कितनी बार किया मंथन 
आस तक न जगी झूठी
पर मैं जान गयी 
हूँ खड़ी कगार पर
कभी भी किसी भी पल 
यह साथ छूट जाएगा 
अधिक खींच न सह पाएगा 
जीवन डोर का बंधन 
जिसे समझा था अटूट 
टूटेगा बिखर जाएगा 
जाने कहाँ ले जाएगा |
आशा
 
 


02 अप्रैल, 2013

बेटा क्या सोच रहा

आज न जाने क्यूँ बाबूजी 
उदासी धेरे मुझे 
जैसे ही पलक मूंदता 
आप समक्ष होतेमेरे
आपका हाथ सर पर 
दे रहा संबल मुझे |
हो गया कितना बदलाव 
पहले में और आज में 
तब आप अलग से थे 
जब भी सामना होता था 
भय आपसे होता  था |
पर जाने कब आपका
 व्यवहार मित्रवत हुआ
आपका अनुशासित दुलार
गहन प्रभाव छोड़ गया 
दमकता चहरा  मृदु मुस्कान लिए
दृढ निश्चय और कर्मठता का
अदभुद  प्रताप लिए
आप सा कोइ नहीं लगता|
यही पीर  मन में है
होते हुए अंश आपका 
 आप सा  क्यूं न बन पाया
चाहता समेट लूं  सब को
मैं भी अपनी बाहों में
पर भुजाओं का वह  विस्तार 
मैं कहाँ से लाऊँ
आपकी प्रशस्ति के लिए 
शब्दों की संख्या कम लगती 
माँ सरस्वती ,लक्ष्मी और काली 
तीनो का था वरद हस्त
हाथ कभी न रहे खाली |
जीवन के हर मोड़ पर
 कर्मठता ने दिया साथ 
शरीर थका पर मस्तिष्क नहीं 
दृढ़ता कम न हुई मन की 
सार्थक जीवन जिया आपने 
बने  प्रेरणा सबकी  |
सोचता हूँ मैं हर पल
 हूँ कितना भाग्यशाली 
आपकी छत्र छाया मिली 
आपने इस योग्य बनाया 
उन्नत सर मैं कर पाया 
फिर भी कसक बाकी रही
आपसा क्यूं न बन पाया |
 
आशा





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30 मार्च, 2013

हसरतों की बारिशें

हसरतों की बारिशें 
जब कम थीं भली लगती थीं 
ख्वाइशें पूर्ण करने की 
मन में ललक रहती  थी
वे पूर्ण यदि ना हो पातीं
अधूरी ही रह जातीं 
बहुत दुखी करतीं थीं |
पर जब से बरसात इनकी 
थमने का नाम नहीं लेती 
कभी ओले का रूप भी लेती 
बन जाती सबब परेशानी का 
लगता डर हानि का 
उत्साह कमतर होता जाता
जाने कहाँ खो जाता 
प्यार के गुब्बारे की 
हवा निकलती जाती 
उदासी अपना पैर जमाती |
आशा 


29 मार्च, 2013

स्वच्छंद आचरण


सुनामी सा उनमुक्त कहर 
कुछ अधिक ही हानि पहुंचाता 
हो निर्भय अंकुश विहीन 
स्वच्छंद हो विनाश करता |
 निरंकुशता समुन्दर की
है कितनी विनाशकारी 
अनुभव कटु करवाती 
जब भी तवाही आती |
यही  आचरण उसका
ना सामाजिक ना भय क़ानून का
उत्श्रंखलता  से लवरेज विचरण
बनता नासूर  समाज का 
जीना कठिन कर देता |
आम आदमी निरीह  सा 
ज्यादतियां सहता रहता
यदि किसी ने मुंह खोला 
जीना मुहाल होता उसका |
आशा



22 मार्च, 2013

जन्म दिन तुम्हारा



याद है मुझे  
वह अमूल्य पल 
जब तुम सी  बेटी पा 
अपना भाग्य सराहा |
किलकारियां गूंजी 
धर के आँगन में
महकी क्यारी क्यारी 
प्यार  के उपवन में |
स्नेह तुम पर लुटाया 
हर लम्हा जिया 
खुशियाँ दामन में न समातीं 
तुम्हारी प्रगति देख 
वही प्यार की ऊष्मा 
अब भी कम नहीं 
तुम से दूर न रह पाती 
उदासी गहन छाती |
पहले तुम नन्हीं सी थीं 
रिश्तों के कई पड़ाव 
पार करते करते 
अब दादी भी बन गयी हो 
पर आज भी वैसी ही 
 हो मेरा नजर में |
है आशीष तुम्हें दिल से 
फलो फूलो प्रसन्ना रहो 
आगे अपने कदम बढाओ
अपना मार्ग प्रशस्त करो |
उन्नति का शिखर चूमो
बाधाओं का  करो सामना 
हार कभी ना मानो उनसे
वैभव कदम चूमें तुम्हारे
 जीवन जियो सफलतम |
आशा 



18 मार्च, 2013

होली न सुहाय



ना कर जोरा जोरी सांवरे
छोटा लालन रोवत है
भए लाल गाल गुलाल से
नन्हां देवरिया डरपत है |
मैं तेरे रंग में रंगी
भीगी चूनर सारी
फिर काहे की जोरा जोरी
ना कर मुझ से बरजोरी |
जाड़ा लगत
तन थर थर कांपत
मैं रंग में ऐसी रंगी
गहरे रंग छूटत नाहीं  |
है प्यार भरी अनुनय मेरी
 छींटे ही नीके लागत  हैं
ऐसी होली मोहे ना भावे
तेरा रंग ही काफी है |
तेरा रंग चढा ऐसा
बाकी रंग लागत फीके
उस के आगे कछु न भाए
मोहे  ऐसी होली न सुहाय |
आशा

17 मार्च, 2013

वे अबहूँ न आये

काटे न कटें रतियाँ ,वे अबहूँ न आए |
 बाट  निहारूं द्वार खडी,विचलित मन हो जाय ||
भूली सारे राग रंग ,कोई रंग न भाय |
पिया का रंग ऐसा चढा ,उस में रंगती जाय||
सब अधूरा सा लगता ,उन बिन रहा न जाय |
सब ठिठोली भूल गयी ,होली नहीं सुहाय ||

रातें जस तस कट गईं  ,पर दिन कट ना पाय |
बेचैनी बढ़ती गयी ,नयना छलकत जाय ||


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15 मार्च, 2013

दिग्भ्रमित

बड़ा शहर ऊंची इमारातें
शान से सर ऊंचा किये 
आसमान से बातें करतीं 
अपने ऊपर गर्व करतीं |
दूर  से वह निहारती
ऊँचाई और बुलंदी उनकी 
तोलती खुद को उनसे 
कहीं कम तो नहीं सबसे |
खुद को सब से ऊपर पा 
गुमान से भर उठती 
प्रसन्नवदना उड़ती फिरती 
बंधन विहीन  आकाश में |
दिग्भ्रमित होती जब भी 
खोज ही लेती सही राह
और खो जाती फिर से 
स्वप्नों की दुनिया में|
खुद का अस्तित्व खोजने में 
 ठोस धरातल पर जैसे ही 
धरती अपने कदम 
सारे स्वप्न बिखर जाते |
उनका विखंडन 
बिखरे अंशों का आकलन 
पश्चाताप से दुखित मन 
उसे कहीं का न छोड़ता 
जीवन का सत्व स्पष्ट होता 
आशा


12 मार्च, 2013

सफलता के पीछे

हर सफलता के पीछे 
कुछ तो छिपा है 
हाथ है किसी का
 या है साथ 
भीनी भीनी सी 
खुशबू किसी की 
अक्स या  अहसास 
है ऐसा अवश्य कोई
जो सब से छिपा है |
वह अदृश्य  
अनाम रह कर 
सींचता पौधे को
सहारा देता उसे 
जड़ें मजबूत होने तक |
है इहलोक बासी
या किसीअन्य लोक से
पर है अवश्य 
उसका हिताभिलाषी 
बिना किसी प्रलोभन के 
जीवन के हर मोड़ पर
साथ खडा है|
आशा

10 मार्च, 2013

कर भरोसा अपने पर

कर भरोसा अपने पर
रहता है क्यूं बुझा बुझा 
क्यूं आज की चिंता करता है 
आज का दौर है  कठिन पर 
कल सुधरेगा दिल कहता है |
तेरी उदासी दुखित करती 
मन उद्वेलित करती 
महंगाई की जटिल समस्या 
मुंह बाए खड़ी दीखती
 छाई रहती दिल दिमाग पर
तपती धुप सी लगती |
तू अधीर नहीं होना 
आपा अपना ना खोना 
वर्त्तमान तो बीत जाएगा 
कल सुधरेगा दिल कहता है |
कठिन परिश्रम की कुंजी हो तो
जटिल समस्या हल होगी
पुरसुकून जिन्दगी होगी 
समय बदलेगा दिल कहता है |
तू वर्त्तमान में जीता है 
तभी दुखित होता है 
जब आशा का दामन थामेगा 
बदलाव समय में होगा
तू सबसे आगे होगा 
कल बदलेगा दिल कहता है |
आशा

07 मार्च, 2013

मां से

तेरी एक निगाह ही काफी थी
गलत कदम रोकने को
 तब तुझे कभी  न समझा
दुश्मन  सी लगती थी |
दूर रही अक्सर तुझसे
तेरी ममता ना जानी
याद्र रहा तेरा अनुशासन
प्यार की उष्मा ना जानी |
 अब छोटी बड़ी घटनाएं
मन व्यथित करतीं
 हर पल याद तेरी आती
मन चंचल करती|
तेरी सारी  वर्जनाएं
जो कभी बुरी  लगती थीं
वही आज रामवाण दवा सी
अति आवश्यक  लगतीं |
कितने कष्ट सहे होंगे माँ
मुझे बड़ा करने में
तुझसे ही है वजूद मेरा
अब मैंने जाना  |
 कभी कोई शिकवा न शिकायत
आई तेरे चेहरे पर
तूने मुझे लायक बनाया
क्यूं न करू गर्व उस पर |
जब अधिक व्यस्त होती हूँ
बच्चों की नादानी पर
उनके शोर शराबे पर
बहुत क्रुद्ध होती हूँ |
 मन के शांत होते ही
तेरा शांत सौम्य मुखमंडल
निगाहों में घूम जाता है
सोचती हूँ माँ तुझ जैसा धैर्य
मुझ में क्यूं नहीं  ?
मैंने बहुत कुछ पाया
पर तुझ जेसे गुण नहीं|
आशा 











06 मार्च, 2013

अहसास

अहसासों की दुनिया
लगती सब से भिन्न
है जीवन का  हिस्सा अभिन्न
मन में भरती   रंग
जब भी मनोभाव टकराते
जोर का शोर होता
अधिकाधिक कम्पन होता
अस्तित्व समूचा  हिलता
मन में तिक्तता भरता
तब कलरव नहीं भाता
कर्ण कटु लगता
विचार छिन्न भिन्न होते
एकाग्रता को डस लेते
यदा कदा  जब भी
कोइ अहसास होता
बीता पल याद दिलाता
 वे यादें जगाता
जब थे सब नए
नया घर वर नए लोग
बर्ताव भी अलग सा
था निभाना सब से
था कठिन परिक्षा सा
वह समय भी बीत गया
कोमल भावों से भरा घट
जाने कब का रीत गया
कठिन डगर पर चल कर
जितने भी अनुभव हुए
एक ही बात समझ में आई
है यथार्थ  ही सत्य
यही पल मेरा अपना
यहीं मुझे जीना है
निस्पृह हो कर रहना है |

आशा 



03 मार्च, 2013

मकसद


गुनगुनाने का कुछ 
मकसद तो हो 
अपनेपन का कहीं
ख्याल  तो हो
सरल होता तभी 
जीवन का सफर 
जब सोच का कोई
कारण तो हो |
प्रीत की है रीत यही 
सुहावनी ऋतु हो 
प्यार की छाँव के लिए 
एक दामन तो हो  |
अपनी सोच पर खुद को 
कभी मलाल न हो 
ओस से भीगी रात हो
उदासी का आलम न हो
गुनगुनाया नवगीत
हो कर  मगन
स्वप्न में बुना
नया शाल पहन
तभी हुई दस्तक 
खोले पट स्वप्न से
बाहर निकल
पैर पड़े अब धरती पर
झूम कर आई महक
जानी पहचानी अपनी सी
दिल बाग़ बाग़ हुआ 
मकसद गुनगुनाने का
 अधूरा न रहा
जीवन के सफर में
कोई हमसफर मिला |
आशा



01 मार्च, 2013

एक कली

कली खिली बिरवाही में  
महकी चहकी 
पहचान बनी 
रंग भरा प्रातः ने 
संध्या ने रूप संवारा
जीवन हुआ 
 सरस सुनहरा 
पर धूप सहन ना कर पाई 
वह कुम्हलाई 
तब साथ निभा कर
 उसे हंसाया
 मंद पवन के झोंके ने 
तरंग  उमंग  की जगी
तरुनाई छाने लगी
है इतनी अल्हड़
जब  भी निगाहें ठहरती 
टकटकी सी लग जाती 
देखती ही रह जातीं 
वह सकुचाती 
अपने आप में 
 सिमटना चाहती 
यही है कुछ ख़ास 
जो  नितांत उसका अपना 
देखते तो हैं पर 
उसे छू नहीं सकते 
पर सपने में भी उससे 
दूर हो नहीं सकते |
आशा